आज का विद्यार्थी व विद्यालय
एक चिन्तन
प्यारे बच्चों,
आज मैं आपसे आपकी, बिल्कुल आपकी अपनी बाते करना चाहती हूँ । आपका मार्ग प्रशस्त है उज्जवल है। बालमन से विकसित होता हुआ किशोर मन भावी जीवन के तैयारी के दिन!
विद्यार्थी ही तो हमारे विद्यालय का आधार है आप को ही केन्द्र बिन्दुबना कर हमारे सभी शिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है परन्तु आपके व्यक्ति के विकास की पूर्णता की एक लम्बी प्रक्रिया है।
दुख की बात तो यह है 9, 10, तक उत्तरदायित्वों से रहित परिवार की गहन छत्र छाया में रक्षित (प्रोटेक्टेड) रहते है पग-पग पर आपकी सहायता के लिये बन्धु-बान्धव, माता-पिता। और एक दिन में जैसे ही हाई स्कूल या इण्टर का रिजल्ट निकला (परीक्षाफल) हम आपसे एक जिम्मेदार, स्वयं निर्णय लेने वाले गंभीर जागरूक व्यक्तित्व की अपेक्षा करने लगते है। एक ही दिन में खींच कर बड़ा बना देने की कल्पना बड़ी हास्यास् पद है।
नवम् वर्ग के विद्यार्थियों से बातचीत के दौरान यह पूछे जाने पर कि आप आगे क्या करना चाहते है? क्या कुछ सोच रहे है? पहले तो किंकत्र्वव्य विमूढ़ से वे सोचते रहे और कुछ रूक कर कहा जैसा पिता कहेगे वही करूंगा उनका कहना है की साइन्स और मैथ्स की डिमान्ड ज्यादा है वही लेना होगा। यह पूछे जाने पर कि क्या तुम कुछ नही सोचते? मै क्या सोचूं? फिर एक लम्बा मौन। लगभग 80 प्रतिशत सामान्य साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले बच्चों को ऐसा कुछ उत्तर रहा।
ये कैसी दयनीय स्थिति है? कैसी विडम्बना है जीवन आपका है और सोच, निर्णय किसी दूसरे का। कक्षा 9-10 तक आप स्वयं निर्णय ले सकने की स्थिति में नहीं। सब कुछ दूसरे आपके लिये कर देते है। आप प्रयत्नशील नहीं होते है आप? यन्त्रवत काम क्यो करते है? क्यो उदासीन हो जाते है। अन्र्तमन से प्रेरणा क्यों नही आती आप में अपने लिये?
आपका अपना जीवन है, भविष्य है, आपकी मेहनत है, यही समय हे कि आप इस दिशा में सोचना शुरू कर दे, अच्छे सुसंस्कृत लोगों से बातचीत विचारों का आदान प्रदान। खुल कर बात कीजिए। सूचानाओं के लिये कितने साधन उपलब्ध है आपके ही विद्यालय के स्तर पर। इण्टरनेट, कम्प्यूटर टी0वी0 चैनल अपनी सोचकी दिशा को उस ओर बदलिये सही गलत का विवेक पूर्ण विश्लेषण कीजिए अपनी योग्यता (कपैसिटि) या साम्यर्थ को पहचानिये इफ्ारमेशन का भण्डार आपके सामने खुला पड़ा है अधिक से अधिक लाभ उठाइये। विद्यार्थी जीवन को गंभीरता से लीजिए। बीता समय लौट कर नहीं आता। कम्पटीशन का युग है। अपने अदिश जीवन शैली की कल्पना की ओर उसे प्राप्त करने का साधन ढ़ूढिये और स्वयं को तैयार कीजिए। विद्यालय का सजग और जागरूक वातावरण तैयार करेगा आपके भावीजीवन की कर्म भूमि। यही समय है इसी आयु में आप अपना रास्ता बना सकते है।
संघर्ष परिश्रम और आपकी अँतरबुद्धि ही सही मार्ग दर्शन करेगी। परिवार बन्धु-बान्धव शिक्षक शिक्षिकायें उसमें सहायक बनेगी।
डा0 कैलाश गौतम की एक कविता का उल्लेख करना चाहँूगी।
मिट्टी के ढ़ेले से घड़े ने पूछा
मुझ पर जब पानी पड़ता है मै
गल जाता हूँ घुल जाता हूँ पानी के संग बह जाता हूँ
लेकिन तुम मूर्तिवत खड़े रहते हो
घड़ा बोला, पात्रता के लिये मै
कुटा हूँ पिसा हूँ आग में तपा हूँ
इसीलिये मै पानी से नही डरता
पानी मेरी सीमाओं में रहता है।
कितनी सुन्दर है ये कविता, भाव और संदेश
संघर्ष, धैर्य, सहनशक्ति और साहस और विवेक अन्ततः मनुष्य के आवश्यक गुण है।
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