महात्मा बुद्ध का यह वाक्य मुझे अत्यंत प्रिय है .मेरे जीवन का आदर्श है। संसार में कोई भी किसी का मार्ग दर्शक नहीं बन सकता ."अपना दीपक स्वयम बनो " .प्रकाश का पुंज चाहे कितना भी छोटा क्यूँ न हो गहन अन्धकार में मार्ग को प्रशस्त कर सकता है.लोगों के द्वारा सुझाये गये मार्ग' अनुभव .तर्क.ज्ञान , सब का अध्ययन क्र समझ कर मनकी कसौटी पर कस कर ही वह स्वीकार करने योग्य है । किसी ने कहा और हमने मान लिया क्यूँकी कहने वाला महापुरुष और संत है ? यह सच है की वह अनुभवी है ग्यानी है । नहीं ,जब तक अपने आप जांच परख न लिया जाय उसे ग्रहण नहीं करना चाहिए .यही उपदेश था बुद्ध का।" अप्प दीपो भव।
अपने को इतना ,सावधान,जागरूक , और विवेकी बनाओ की दूसरों के अनुभव को अपने अनुकूल बना कर ग्रहण करो कोई किसी का जीवन निर्देश करे यह मैं नहीं मानती क्यूँकी दिशा निर्देश ।तो भीतर का है आलोक {स्व चेतना}ही कर सकता है। जीवन की यात्रा में हर मोड़. हर चोवराहे परिस्थिति में खतरा {रिस्क} तो लेना ही होता है .इसके लिए हम दूसरों को उत्तरदायी नहीं बना सकते.अपनी बुद्धि , विवेक ,साहस और सिद्धांत के सहारे ही हमें आगे जाना होता है . निर्णय लेना होता है .उसके ज़िम्मेदार हम खुद हैं. दूसरों पर दोषारोपण कर अपने को बचा लेना "पलायन "है."कायरता "है।
उम्र चाहे युवा अवस्थाहो या बुढापा .हाँ .छोटे बच्चों को इसमें नहीं रखा जा सकता .सही ,सशक्त , निर्भीक ,व्यक्तित्व की नीवं तो किशोर अवस्था में ही पड़ने लगती है .सौभाग्य चपल है.चंचल है इसलिए सावधानी का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए .
Saturday, January 9, 2010
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