Friday, September 5, 2008

MORTALITY AND MORALITY

Today in the rat race for the betterment even one in engulfed in indulging in all sort of deciet, forgery, knavery, fraudulence, dishonesty and even bribery. The corruption is reaching its peak. Each one is pushing the other and trying to make away for himself irrespective of the route taken. People have become careerist idealism has lost. Its charm has virtually vanished in the attempt to make a back and promote one self to newer heights.

The moral values, honesty, humanity culture and religion are the main burning issues of the society. Every where comities are being formed, conferences are being held seminars are organized. Stress is on inculcating moral values in children from childhood. After having imbibed in them these precious values, when they grow up and enter their working field, they are shocked and surprised to see what is happening around them. Contrary to what they had learnt and what they were taught, there is no match. He becomes perplexed and confused and feels misfit.

He gets caught in the complaxcity of the politics and undergoes serious mental tension unable to copeup. He starts blaming the parents and the well wishers who had not made them competent enough to fight these ells. In fact they prepared these children for "Satya-Yug" in "Kal-Yug".

The believers of the moral values console themselves by saying that he who chooses wrong path will have to repent one day and reap the sorrow in his life, but how many? 5%. They live their life lavishly, keep the money for generations to come and if they suffer in the end of their life for few days. It is not a bad bargain. Mental satisfaction and idealism cannot keep a man alive. He needs money, name, fame, facilities, nice living and good future also. The person following the other path is achieving every thing in their life, by hook and crook and the ideal one is being defeated.

While giving them the moral values shall we make them aware of the tricks to copeup and handle the situation in their practical life to save themselves and their jobs also by the conspiracy of the so called modern society or leave the like Abhimanyu of Chakravyuh to die premature and untimely।

Why it is so? What one should do? Why this controversy? Views are invited suggesting ways and mean to encounter the living problem. How they should maintain the morals in the society which they have learnt.

Tuesday, September 2, 2008

Lord Ganesha - A Concept

" May the Ganesha who has curved trunk, large body and who is bright and radient as hundred sons always remove all the hurdles and difficulties of our work and projects."
This is popular Sanskrit Shlok which we chant in our prayer before starting any new work or project. This is my attempt to explain the significance of this Shlok. It is my belief that faith and confidence comes from within which enriches both the mind and the soul.
For our young generation it is desirable to tell them the significance of this Pooja logically the faith and confident also comes from inside to perform this which satisfies the mind and the soul both.
In Indian mythology Lord Ganesh is the symbol of wisdom (Buddhi & Vivek)who guides and leads us to success. Moral strength also plays important roll in our life's once you start your work with full concentration, planning foresight, persuasion and with all your positive affords the success is sure to be there that is why you always find the sign of " Subh & Labh" (good ad profit in the business). In another way you can call Subh & Labh the sons of Lord Ganesha. Riddhi & Siddhi are wife's of Lord Ganesh

Ganesha



Riddhi Siddhi


Shubh Labh


Success

So if you start a new work or project with the blessing o Lord Ganesha you think and have confidence that you will be able to cross all the difficulties and hurdles challenges. He is the Purushartha in every persons life.

Sunday, June 15, 2008

अपने पाठकों से

वर्षों से छात्र -छात्राओं के बीच पठन पाठन से जुड़े रहने के कारण बाल- अवस्था से संवेदनशील किशोर और किशोर से कर्मठ युवा में विकसित होते बच्चों ने विशेष रूप से मुझे प्रभावित किया है। उन्हें बहुत करीब से देखने का मुझे मौका मिला है । मैं स्वयं को उनसे जुड़ा हुआ महसूस करती हूँ और उनके बारे में सोचना तथा लिखना मुझे अच्छा लगता है ।

दौड़ती भागती दुनिया , एकल होते परिवार , हैरान होते माता पिता ,गिरते नैतिक मूल्य ,पाश्चात्य संस्कृति का अन्धाकुरण एक ऐसी 'अपसंस्कृति' को जन्म दे रहा है जहाँ नई पीढ़ी हतप्रभ है और पुरानी पीढ़ी दुखी बेबस - क्या करें , कैसे करें ? अपने विचारों और सिधान्तों का व्यावहारिक फल कार्यरूप में आते आते नई पीढ़ी के लगभग २० से २५ वर्ष का अंतराल निकल जाता है , तब लगता है -'अरे यह क्या ? ऐसा हो जायेगा ,यह तो कभी सोचा ही न था ।' परिवार की परिभाषा बदल रही है , सोच और दिशा बदल रही है। हर बच्चा बूढ़ा जवान नितांत अकेला है , दिग्भ्रमित है , मन ही मन डरा हुआ है । मुट्ठी से रेत की तरह फिसलती जा रहीं है खुशियाँ । यही सब बेचैन कर देती है मुझे । और आप ही उठ जाती है कलम।

मेरी रचनाओं के विषय विविध और अलग अलग हैं - भाषा भावों के अनुकूल कहीं सरल सहज है तो कहीं अंग्रेज़ी शब्दों से युक्त जो दिन प्रतिदिन में प्रयोग होते रहते हैं और हिन्दी के ही बन गएँ हैं - जिसे आप समझ कर आनंद ले सकते हैं ।
हाँ, इतना ज़रूर कहना चाहूंगी की अगर कभी थोड़ा सा समय हो- पाँच मिनट ही सही --कुछ पढ़ें ज़रूर। कोई ज़रूरी नहीं की यही हो । पढिये और लिखिये ज़रूर निःसंकोच । हिन्दी या अंग्रेज़ी में - जिसमे स्वयं को सहज महसूस करें । भावों और विचारों की अभिव्यक्ति ही हम सब को जोड़ती है । हिन्दी या अंग्रेज़ी - या फिर हिन्दी के शब्द में अंग्रेज़ी के अक्षरों का प्रयोग करते हुए । जैसे 'समय' के लिए - samay .

समय समय पर जब भी आप मेरी नई रचना पढ़ें - अपने विचार अवश्य दें । आपकी प्रतिक्रियाओं का मुझे विशेष इंतज़ार रहेगा ।
'अनुषी'

Monday, June 9, 2008

साथ

जीवन के इस भागदौड़ में
आओ कुछ पल साथ बैठ लें।
हँस लें गा लें ,मौज मना लें
मधुर मधुर हम रच बस जायें,
जीवन के इस भाग दौड़ में,
आओ, कुछ पल साथ बैठ लें।

कहीं बीत जाये ना ये दिन,
इक दूजे में दोष खोजते,
जलते, भुनते, रोते कुढ़ते
एक दूसरे से टकराते।
आओ कुछ पल साथ बैठ ले।

कभी शांत लहराता सागर
और कभी उत्ताल तरंगें,
कभी रूठना और मनाना,
कभी जीतना और हारना।

कभी तनिक ,छोटी सी खुशियाँ,
और कभी अनबुझी उमंगें
जीवन के इस भागदौड़ में
आओ कुछ पल साथ बैठ ले।

बीता पल छिन कभी न आना
जीवन का कुछ नहीं ठिकाना
कभी छिटक कर और भटक कर
बिछड़ जाये ना हम तुम मिल कर।

बीत गई जो, बात गई वो यही सोच कर
आगे बढ़ कर मिल जाये बस यही मान कर,
आओ कुछ पल साथ बैठ लें,
जीवन के इस भाग दौड़ में,
कहीं बीत जाये ना ये पल,
आओ कुछ पल साथ बैठ लें।

Friday, June 6, 2008

डैडी


सुबह सबेरे घर के बाहर
सीढ़ियों पर "बाय बाय" करते,
देख रही हूँ मैं वर्तमान और
भविष्य को साथ साथ चलते।
अपने अपने गंतव्य - स्कूल,
और ऑफिस की ओर
तेजी से कार की तरफ़ बढ़ते।

डैडी के सधे क़दमों के चिन्हों पर,
अपने नन्हे नन्हें पैरों को जमाते,
उनके हर व्यवहार ओर क्रियाओं को
अपने मन में गौर से समाते।
सांझ सकारे हँसता, मुस्कुराता, खेलता खिलाता
झूले पर झूला झुलाता पार्क में,
भूल भूलैया लुका छिपी , अंदर बाहर
कंधो पर झूलता , कभी ऐनक
चढ़ाकर मुँह चिढ़ाता;
कभी "हाय बडी" कह कर
हाथों को कस कर दबाता,
डैडी सा बन जाने की ललक
देख कर सोचती हूँ ये
आँखों की चमक क्या कह रही है?
डैडी, मेरे अच्छे डैडी तुम बिल्कुल मत
बदलना, तुम जादूगर हो!
अपने को मैं आप में देखता हूँ
आप सा बनना चाहता हूँ ।

दोनों हाथों को उठा कर
गले से लिपट कर आंखों
में आँखे डालकर पूछता हो,
क्या तुम सचमुच जादूगर हो ?
जादूगर डैडी ! ज़रा धीरे धीरे ,
मैं आपके पीछे ही आ रहा हूँ।

Wednesday, June 4, 2008

एहसास

यह मन ही तो है जिसके इर्द गिर्द , वातावरण से प्रभावित होकर हमारे जीवन की हर क्रिया प्रतिक्रिया संचालित होती है । मन अगर खुश है , आशान्वित है तो सारा संसार, संघर्ष और सुख-दुःख के थपेड़े सहन करने की असीम ऊर्जा आ जाती है। और मन पर निराशा और संशय के बादल छाये हों तो सबकुछ वैसा ही निष्क्रिय, उदास और गहन पीड़ा से भरा हुआ लगता है। आलस्य घिर आता है । हिम्मत टूट जाती है । जीवन की डोर की पकड़ ढीली होने लगती है। ऊर्जा, स्फूर्ति और अदम्य साहस का स्त्रोत है प्यार ,संवेदना और सुरक्षा की भावना । प्यार का एक मीठा बोल ; सांत्वना का एक कोमल स्पर्श और साथ साथ सदैव बने रहने का विश्वस्त आश्वासन । कितने आश्चर्यजनक परिवर्तन , साहस ही नहीं दुस्साहस, संघर्षों से जूझने और जीतने की जिजीविषा । सफलता - सफलता - सफलता । पीछे मुड़ कर ना देखने की आवश्यकता । प्रशस्त और उज्जवल पथ । यह सब एहसास ही तो है - केवल एहसास

ज़िंदगी खूबसूरत और बेहद
खूबसूरत नज़र आती है।
जब एहसास होता है कि
कोई मुझे प्यार करता है॥
कल्पनाओं के पंख लग जाते हैं,
मन हर ऊंचाईयों को छूना चाहता है ।
निस्सीम गगन में उड़ना चाहता है ,
जब एहसास होता है कि
कोई मेरे लिए दिल से सोचता है ।
मंजिलें साफ, बिल्कुल साफ नज़र आतीं हैं ,
दीवानगी हद से गुज़र जाती है -
क़दमों की चाल में निखार आ जाता है ।
गर लड़खड़ाऊं, कोई थाम लेगा
गले से लगा कर कोई प्यार देगा।
ज़िंदगी खूबसूरत बेहद खूबसूरत नज़र आती है ।