Sunday, May 3, 2015

Yaaden

              यादें                                       
बच्चो के बस स्टाप पर 
एक पेरेन्ट ने पूछा ड्राइवर से
‘खान’ सर चले गये क्या?
कहाँ
ऊपर
हाँ कल शाम पाँच बजे
आनमने से बस ड्राइवर न बस बढ़ा दी
मै पीछे बैठी सोच रही थी।
इन्सान चला जाता है रह
जाती है यादें और बातें
बाकी सब वैसे ही चलता है
वही सुबह, वही शाम वही संघर्ष
दौड़ धूप, आगे पीछे, मेन्यूपलेशन
का विचार विमर्श
एक अकेला घर का बापी
पीछे कुनबा नन्हे मुन्नोका
आपा धपी-----
यह सच है सबके पास
सब कुछ नही होता
लेकिन सबके पास कुछ
जरूर होता है। क्यों न हम उस याद करें
बात करे अच्छे स्मृतियों के फूलों से
खुद को भर ले, भर दे उसकी खाली झोली।



Matra Aandolan

                             मात्र आन्दोलन                                   
जब तक सेल्फ आॅनेस्टी नहीं आयेगी। भ्रष्टाचार नहीं हटेगा। हम में से हर आदमी भ्रष्टाचार के लिये जिम्मेदार है। आज हम अन्ना हजारे के अगस्त क्रान्ति में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे है। नारे भजन कीर्तिन अहिंसा के माध्यम से बाह्य कर रहें है लोकपाल बिल के पारित होने के लिये। सभाये और धरने दिये  जा रहे है। और एक बार जन लोकपाल बिल पारित हो गया, कानूनी संरक्षण बन गया तो फिर क्या होगा उसके बाद? इस अनशन धरने में आम जनता के हर व्यक्ति को यह भी  संकल्प लेना होगा कि वह व्यक्तिगत रूप से न भ्रष्टाचार करेगा, न रिश्वत लेगा ना ही देगा। केवल धन में ही भ्रष्टाचार नही है वरन् काम करने नियमों का पालन करने, करवाने आदि सभी में यह घोषणा स्वयं के प्रति, इमानदारी के लिये प्रतिबद्धता ही इस आन्दोलन को सही मायने में सफल बनायेगी। जो जहा है जिस पद पर है जिस उत्तरदायित्व को निभा रहा है उसे अपनी जगह इमानदारी, निष्ठा और उत्साह से पूरा करें। तभी राष्ट्र भ्रष्टाचार मुक्त हो सकता है और हम आने वाली पीढ़ी को एक स्वच्छ सुन्दर नैतिक समाज विरासत के रूप में दे सकेंगे।


Jeewan Darshan

जीवन दर्शन मानवीय सम्बन्धों की निरर्थकता पर अब मन में अजीब सा भय और विरक्ति सी आती जा रही है। जीवन में कब कौन सा पक्ष प्रधन हो जाये और (जिसे हम मूल मुख्य धारा समझते है) मूल मुख्य धारा से आदमी कट जाये या हट जाय कुछ पता ही नहीं चलता और जब पता चलता है तब मन शायद तटस्थ हो चुका होता हैं। कर्तव्य की प्रधानता की दुहाई देकर हर प्रतिक्रिया और कार्यों की वैधता, की मान्यता दी जाने लगी हे जब तक कोई स्वयं उन परिस्थितियों से नही गुजरता तब तक उस पक्ष की भावनाओं को, विचारों की सत्यता उपयोगिता पर मन को टिका ही नहीं पाता टिकाये भी तो कैसे? हर व्यक्ति, हर पक्ष हर पहलू सही है अपने-अपने दृष्टि कोण से वैसे तो हर व्यक्ति अपने परिस्थितियों के हिसाब से सर्वोत्तम निर्णय लेता है निर्णय और प्राथमिकता व्यक्तिगत है अन्ततः ‘‘ऐकला चलो रे की स्थिति आ जाती है’’ चाहे जहा से, चाहे जिस रास्ते से चलो गन्तव्य एक है। वृद्धावस्था की प्राप्ति और फिर मृत्यु का वरण। और जन्म से मृत्यु तक का यह पथ? यह मार्ग? इसे ही हम जीवन की संज्ञा दे देते है। समय सीमा ही जीवन है सारी भाग दौड़, धन सम्पत्ति न्याय अन्याय धोखा धड़ी इसी अन्तिम लक्ष्य की आपाधापी है शनैः-शनैः भावनाये मुस्काने लगती है। कार्यक्षमता कम होने लगती है टूटने लगता है और उजागर होकर यर्थाथता, स्र्वाथ सब हावी हो जाता है। मुख्य धारा में अनेक धारायें या यूँ कहिये अनेक नन्ही-नन्ही धाराये (सोते) फूट पड़ते हे और जीवन की नैया अनेक विभिन्न प्रकार के थपेड़े खाती, भाग्य के पतवार के सहारे हवा के रूख पर झकोले खाती डोलती रहती है। सागर का जल चंचल हे लहरे उत्ताल है कभी शान्त कभी आन्धी और तूफान। कभी हल्की और सूकून देने वाली ठंडी हवा। कुनमुनाती धूप। मगर किसी का स्थायित्व नही शायद कर्तव्य भावना से प्रधान है हर कोई यही कहता है एक जन्म से, एक बूँद से एक चैतन्य से विस्तृत होते-होते अति विशाल होकर फैल जाता है जीवन और पचास वर्षाें के बाद संकुचन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है वह विशाल तैल बिन्दु, खण्ड से बिन्दु में और छोटे बिन्दु में अपने में सीमित हो जाता है व्यक्ति