Sunday, July 27, 2014

ANUBHUTI

                                                                   अनुभूति
      मेरे घर के किचन की खिड़की के सामने एक सफेद देशी गुलाब के फूलों का झुरमुट है कलियों और फूलों से गहराया हुआ, जो अपनी भीनी-भीनी सुगन्ध और खूबसूरती, से किचन में काम को करने के उत्साह को दोगुना कर देता है। मस्त होकर काम किया जा सकता है। इधर दो चार दिनों से देख रही हूँ एक युवा बुलबुल का जोड़ा बार-बार उस झुरमुट में आते है फूल हिलने लगते है कलियाँ मुस्कुरा उठती है और वह सारे पत्तियों को हिलाते झुलाते निकल जाता है। दिन भर उनका नियमित आना-जाना तो मैं देख ही रही हूँ। उत्सुकता और कुतूहलवश जब मुझसे नहीं रहा गया तो मै अपनी जासूसी निगाहों से खोजने चली कि आखिर वहाँ है क्या? धीरे-धीरे कदमों से पहुँची तो देखा कि कोमल पत्तों के दोनों पर, दो टहनियों के मिलन स्थान पर एक नन्हा-सा सीधा-साधा आडम्बर विहीन प्यारा-सा टोकरी नुमा घोंसला हल्की-हल्की सींकों से बिना गया ताना-बाना सुन्दर आकार में जिसमें बैठी मुकुटधारी गर्वाेन्नत बुलबुल आह-----कितना आनन्दित कर देने वाला स्वर्गिक दृश्य! इसी के निर्माण के लिये यह युगल पूरे जोर शोर से तिनका जोड़ने में लगा था? वर्षा के पानी की फुहारें पड़ती, सूरज की पहली किरण छन-छन कर आती और दोपहर की तेज धूप को भी अंगूर की लता का वितान बचाता और झूले पर उसको झुलाता। मन खुश हो गया नये जीवन के आने का इतना सुन्दर व भव्य आयोजन। नैसर्गिक दृश्य, आनन्द की गहन अनुभूति न पिंजड़ा, न सुरक्षा के लिये बाह्य आडम्बर सुविधाये, न पहरेदार बस ईश्वर द्वारा प्रदत्त नैसर्गिक सुविधाओं और साधनों में ही जीवन का आनन्द-आनन्द तो आस-पास बिखरा पड़ा है खुशियाँ ढ़ूढ़ रहे है मोबाइल सिनेमा, टी0 वी0 के सीरियल माॅल शाॅपिंग में। यदि तन-मन दोनों स्वस्थ्य है तन के चाहिये थोड़ा-सा आराम और मन को सुकून। आनन्द की विभोरता। सब पक्षियों, प्राणियों के लिये समान रूप से उपलब्ध व सुगम। जिसका जितना आँचल, आवश्यकता, उसी के अनुपात में लेकर संतुष्ट और सुखी, न ईष्र्या न द्वेष।
    मेरे मन! क्या तू इस पाखी की तरह नहीं हो सकता? मस्त, तुष्ट और ईष्र्या विहीन।