Sunday, October 9, 2016

Main Shithil

     मै शिथिल

मै शिथिल निस्पन्द हूँ
लड़ नहीं सकता किसी तूफान से
छोड़ दी यह जिन्दगी, कश्ती
तुम्हारे हाथ में
परिस्थितियाँ बन रहीं ऐसी विकट
भवर बनता जा रहा जलयान में
सफीना डूब ही तो जायेगी गर
छेद हो कोई सुरक्षागार में
भाग्य में क्या कुछ रचा है
कर्म ने क्या कुछ किया है
जिन्दगी के अन्त में क्या
फल लिखा है
उलझनों के जाल में घिर
गया मैं हर किसी की चाल में
कुछ इशारे मिल रहे है
कुछ सहारे दिख रहे है
किन्तु मन है सशंकित और आकुल
है बिछी शतरंज पग-पग इस धरा पर
बिखरती जा रही है शक्ति मन की
मै शिथिल निस्पन्द हँू
लड़ नही सकता किसी तुफान से
छोड़ दी यह जिन्दगी, कश्ती तुम्हारे हाथ मे।

Achha Lgata Hai

           अच्छा लगता है 

सुबह सबेरे सूरज की सतरंगी किरणों का छा जाना
अच्छा लगता है
फूलों पर भवरों का गुनगुन
आॅगन में पानी की रिमझिम धरती से बीजों का अंकुर का
बचपन ----
अच्छा लगता है।
मेघो की लुका छुपी और तरह-तरह के भेष बनाकर
अम्बर पर छा जाना नीले अम्बर पर फिर
शोर मचाना गरज-गरज कर
अच्छा लगता है
पंक्षी का कलरव, दाना चुनाकर
खेल-कूद कर इस डाली से उस डाली पर
फुदक-फुदक कर नाच दिखाना
वेफिक्री से हिलना-मिलना
अच्छा लगता है।
और हवा का हल्का झोका
 बहुत प्यार से बिखरा जाता बालों को 
मटक-मटक कर लट सवाॅरना
माँ की यादों से मन को सहलाना
अच्छा लगता है।
गिरते बूँदों का नर्तन पत्तों का कम्पन
नन्ही बगिया में बैठ देखना
अच्छा लगता है।

Nanha Paudha

       नन्हा पौधा
             
पिछले साल जो नन्हा सा पौधा
तुमने मुझे सौपा था
बसन्त में आधा अनगिनत कोपलो
से भर गया वह
कोमल, ताम्बाई रंग प्यारे नन्हें
आकार मेरे मन को आनन्द से भर
रहा है वह
रोज सुबह आँखे खुलते ही दौड़ जाती हूँ उस ओर
जहाॅ मेरी आशाएॅ, मेरी उमंगें उसके पोर-पोर से फूटेंगी
और छा जायेंगी मन के आकाश पर
आस-पास के पाताश पर
निखरेगा, पनपेगा, लहलहायेगा
वो नन्हा-सा पौधा जो तुमने मुझे पिछले साल सौंपा था
बसन्त में अहा! वह अनगिनत कोपलों से भर गया   

Aabhar

         आभार
पंख तो थे मगर हिम्मत न थी 
उड़ने का साहस तुमने दिया
आशायें तो थी मगर मन का
विश्वास तुमने दिया
कंप-कंपायें थे सहमें थे हर कदम
लड़खड़ाये फिर भी चल दिये हम
सोचा, कोशिश करने वालों की
हार नही होती, किसी ने हाथ थामा
किसी ने काँटे चुन लिये
हमने तो किसी से कुछ न मांगा
मगर रहनुमा मिलते गये
ऐसा लगा कि जो भी मिला
वह खुदा का भेजा बन्दा मिला
मौजो में कश्ती बहाये चले गये
कब और कैसे साहिल पर आ लगे
पंख तो थे मगर उड़ने का साहस तुमने दिया