Sunday, October 9, 2016

Nanha Paudha

       नन्हा पौधा
             
पिछले साल जो नन्हा सा पौधा
तुमने मुझे सौपा था
बसन्त में आधा अनगिनत कोपलो
से भर गया वह
कोमल, ताम्बाई रंग प्यारे नन्हें
आकार मेरे मन को आनन्द से भर
रहा है वह
रोज सुबह आँखे खुलते ही दौड़ जाती हूँ उस ओर
जहाॅ मेरी आशाएॅ, मेरी उमंगें उसके पोर-पोर से फूटेंगी
और छा जायेंगी मन के आकाश पर
आस-पास के पाताश पर
निखरेगा, पनपेगा, लहलहायेगा
वो नन्हा-सा पौधा जो तुमने मुझे पिछले साल सौंपा था
बसन्त में अहा! वह अनगिनत कोपलों से भर गया   

No comments: