Sunday, October 9, 2016

Main Shithil

     मै शिथिल

मै शिथिल निस्पन्द हूँ
लड़ नहीं सकता किसी तूफान से
छोड़ दी यह जिन्दगी, कश्ती
तुम्हारे हाथ में
परिस्थितियाँ बन रहीं ऐसी विकट
भवर बनता जा रहा जलयान में
सफीना डूब ही तो जायेगी गर
छेद हो कोई सुरक्षागार में
भाग्य में क्या कुछ रचा है
कर्म ने क्या कुछ किया है
जिन्दगी के अन्त में क्या
फल लिखा है
उलझनों के जाल में घिर
गया मैं हर किसी की चाल में
कुछ इशारे मिल रहे है
कुछ सहारे दिख रहे है
किन्तु मन है सशंकित और आकुल
है बिछी शतरंज पग-पग इस धरा पर
बिखरती जा रही है शक्ति मन की
मै शिथिल निस्पन्द हँू
लड़ नही सकता किसी तुफान से
छोड़ दी यह जिन्दगी, कश्ती तुम्हारे हाथ मे।

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