Saturday, August 21, 2010

यादें

बच्चों के बस स्टाप पर ,

एक पेरेंट ने पूछा ड्राइवर से ।

' खान सर चले गये क्या ?

'कहाँ'?

ऊपर'

हाँ , कल शाम पांच बजे '

अनमने से बस ड्राइवर ने बस आगे चला दी

मैं पीछे बैठी सोच रही थी

इंसान चला जाता है .रह जातीं हैं बस यादें ।

और बातें बाक़ी सब वैसे ही चलता है ।

वही सुबह ,वही शाम , वही संघर्ष ।

दौड़ -धूप , आगे पीछे ,का विचार विमर्श

एक अकेला घर का बापी , मुखिया

पीछे कुनबा नन्हे मुन्नों का , आपा धापी

यह सच है सबके पास सब कुछ नहीं होता .

लेकिन सबके पास 'कुछ' जरूर होता है ।

क्यों न हम उसे याद करें ,

बात करें अच्छे स्मृतियों के फूलों से

भर दें उसकी झोली , खुद को भी भर लें

Tuesday, August 3, 2010

बुलबुला पानी का

इस जीवन का क्या?
अरे बुलबुला पानी का
साँसों का आना जाना ,
पलकों का गिरना उठना
होगा क्या जिंदगानी का
अरे बुलबुला पानी का ,
आस लगी तब तक जीवन से ,
डोर बंधीं जब तक जीवन से ,
टूटा धागा , कच्चा धागा ,
अरे बुलबुला पानी का .
दया ,प्रेम करुना की करनी ।
सब कुछ जीव यहीं पर भरनी .
मुट्ठी में जो दाने हैं,
जीवन के कुछ लम्हें हैं .
पल पल है कितना अनजाना ,
सोच समझ कर उसे बिता ले
होगा क्या जिंदगानी का .
अरे बुलबुला पानी का ।
यहीं नर्क है ,यहीं स्वर्ग है
यहीं मोह की ममता माया ,
यहीं मोक्ष है ,यहीं परम है ,
यहीं ईश की कोमल छाया ।
इस जीवन का क्या ?
अरे बुलबुला पानी का
सोच समझ कर उसे बिता ले
होगा क्या जिंदगानी का ,
अरे बुलबुला पानी का .



का,