एक पेरेंट ने पूछा ड्राइवर से ।
' खान सर चले गये क्या ?
'कहाँ'?
ऊपर'
हाँ , कल शाम पांच बजे '
अनमने से बस ड्राइवर ने बस आगे चला दी
मैं पीछे बैठी सोच रही थी
इंसान चला जाता है .रह जातीं हैं बस यादें ।
और बातें बाक़ी सब वैसे ही चलता है ।
वही सुबह ,वही शाम , वही संघर्ष ।
दौड़ -धूप , आगे पीछे ,का विचार विमर्श
एक अकेला घर का बापी , मुखिया
पीछे कुनबा नन्हे मुन्नों का , आपा धापी
यह सच है सबके पास सब कुछ नहीं होता .
लेकिन सबके पास 'कुछ' जरूर होता है ।
क्यों न हम उसे याद करें ,
बात करें अच्छे स्मृतियों के फूलों से
भर दें उसकी झोली , खुद को भी भर लें
2 comments:
बहुत अच्छी कविता लगी आपकी।
यक्ष प्रश्न प्रसंग में ’किमाश्चर्यम’ आज भी प्रासंगिक है। सब अपने में ही इतने व्यस्त हैं कि जाने वाले को एक बार याद कर लिया तो कर लिया, फ़िर वही चूहा दौड़ में शामिल।
और मैडम्म, ये वर्ड वैरिफ़िकेशन टिप्पणी करने में बाधा करता है।
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ........माफी चाहता हूँ..
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