"पापा चाय कमरे में ही ले आऊं,या आप सामने वाली बालकनी में आयेगें ?" मैंने किचेन में अदरख कूट कर चाय में डालते हुए जरा ज़ोर से कहा ।।" सुबह हो गई क्या? खोलो , खोल दो खिड़कियाँ , सरका दो परदे , बानी? m एरा दम baani घुट रहा है , साँस नही आ रहीहै। " पापा जी की परेशानी भरी आवाज़ सुन कर मैं चौंक गई । अस्सी वर्षीय पापा जी को मम्मी के नरहने पर हम लोग बरेली वाले पुश्तैनी घर से दिल्ली अपने यहाँ ले आए । सब कुछ ठीक ही था । फ़िर भी अकेले कैसे छोड़ दिया जाए । चुस्त दुरुस्त , खाने पीने के शौकीन तने खड़े , कहीं पर भी झुके नहीं । याददाश्त इतनी तेज़ की छोटी छोटी बात या घटनाओं को भी फ़िल्म सरीखी सुना दें । हिसाब किताब में माहिर , अपनी बात मनवाने और समझाने के लिए jidd और hathii । बहस तर्क और अपने अनुभवों आधार अधिवक्ता रहें थे।
दिल्ली के पाश इलाके अनोखा बहु मंजिली इमारत दस मंजिल तक के गगनचुम्बी और भव्य फ्लैट । उसी में हमारा सातवें मंजिल पर तीन बेड रूम का हमार फ्लैट । सुख सुवि धाओं से सम्पन्न , सुंदर आकर्षक । नीचे पार्क् फ़व्वारे स्विमिंग पूल , बच्चों के खेलने के झूले । की हो डर न परेशानी f सुथरा दो दो लिफ्ट , अच्छा पड़ोस , कहाँ पापा -- पापा को t बस एक ही रट -- मेरा घर , मेरी धरती , मेरी की सोंधी मिटटी , मेरे लोग kahaan ,---"। हो ----मिट , कहाँ Sunday, February 24, 2019
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