Monday, June 9, 2008

साथ

जीवन के इस भागदौड़ में
आओ कुछ पल साथ बैठ लें।
हँस लें गा लें ,मौज मना लें
मधुर मधुर हम रच बस जायें,
जीवन के इस भाग दौड़ में,
आओ, कुछ पल साथ बैठ लें।

कहीं बीत जाये ना ये दिन,
इक दूजे में दोष खोजते,
जलते, भुनते, रोते कुढ़ते
एक दूसरे से टकराते।
आओ कुछ पल साथ बैठ ले।

कभी शांत लहराता सागर
और कभी उत्ताल तरंगें,
कभी रूठना और मनाना,
कभी जीतना और हारना।

कभी तनिक ,छोटी सी खुशियाँ,
और कभी अनबुझी उमंगें
जीवन के इस भागदौड़ में
आओ कुछ पल साथ बैठ ले।

बीता पल छिन कभी न आना
जीवन का कुछ नहीं ठिकाना
कभी छिटक कर और भटक कर
बिछड़ जाये ना हम तुम मिल कर।

बीत गई जो, बात गई वो यही सोच कर
आगे बढ़ कर मिल जाये बस यही मान कर,
आओ कुछ पल साथ बैठ लें,
जीवन के इस भाग दौड़ में,
कहीं बीत जाये ना ये पल,
आओ कुछ पल साथ बैठ लें।

3 comments:

Satish Saxena said...

सामान्य शब्दों में एक बहुत सुंदर एवं सामयिक रचना ! इस सौम्यता के लिए बधाई !

khushi said...

These thoughts are written very nicely and very true to life

khushi said...

These thoughts are written very nicely and are very true to life