Friday, June 6, 2008
डैडी
सुबह सबेरे घर के बाहर
सीढ़ियों पर "बाय बाय" करते,
देख रही हूँ मैं वर्तमान और
भविष्य को साथ साथ चलते।
अपने अपने गंतव्य - स्कूल,
और ऑफिस की ओर
तेजी से कार की तरफ़ बढ़ते।
डैडी के सधे क़दमों के चिन्हों पर,
अपने नन्हे नन्हें पैरों को जमाते,
उनके हर व्यवहार ओर क्रियाओं को
अपने मन में गौर से समाते।
सांझ सकारे हँसता, मुस्कुराता, खेलता खिलाता
झूले पर झूला झुलाता पार्क में,
भूल भूलैया लुका छिपी , अंदर बाहर
कंधो पर झूलता , कभी ऐनक
चढ़ाकर मुँह चिढ़ाता;
कभी "हाय बडी" कह कर
हाथों को कस कर दबाता,
डैडी सा बन जाने की ललक
देख कर सोचती हूँ ये
आँखों की चमक क्या कह रही है?
डैडी, मेरे अच्छे डैडी तुम बिल्कुल मत
बदलना, तुम जादूगर हो!
अपने को मैं आप में देखता हूँ
आप सा बनना चाहता हूँ ।
दोनों हाथों को उठा कर
गले से लिपट कर आंखों
में आँखे डालकर पूछता हो,
क्या तुम सचमुच जादूगर हो ?
जादूगर डैडी ! ज़रा धीरे धीरे ,
मैं आपके पीछे ही आ रहा हूँ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment