पहला कदम
यह उत्तरदायित्व लड़कियों का ही है कि वह स्वयं को जानबूझ कर किसी खतरे में न डालें। वर्तमान में समाज की स्थिति, लोगों की मानसिकता को समझाते हुए लड़कियों, माताओं और बहनों को अपनी समझ बढ़ानी होगी। सोच समझ कर निर्णय लें ऐसी जगह जाने से बचें जहाँ दूसरों को हावी होनें का मौका मिल जायें और आप या बच्ची अकेले पड़ जाये। सावधनी हटी दुर्घटना घटी। मजे और मजाक से दूर रहे क्योंकि इसी में दुरव्यवहार होता है और हो जाता है। समझदारी से भी मजा और आनन्द लिये जा सकता है। प्रदूषित वातावरण में न जाने में ही समझदारी है कहाँ खतरा है और कहाँ सुरक्षा यह समझ विकसित करना, स्वयं को दूरदर्शिता में सबल बनाना ही महिलाओं के सशक्तीकरण का पहला कदम है। आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक सुरक्षा के लिये स्वयं को मजबूत बना सकने में ही बुद्धिमानी है। वैसे कानून तो मजबूत और कड़े होने चाहिए लेकिन हम यह भी जानते है कि कानून की न्यायिक प्रक्रिया अत्यधिक लम्बी और लचर है। इसलिए लड़कियों का स्वयं निर्णायक दूरदर्शी और सर्तक होना अनिवार्य है तभी कुछ हो सकता है अन्यथा इसी आशा में कि तभी तो समाज सुधरेगा सिर्फ एक सपना ही रह जायेगा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए माता-पिता लड़कियों के किसी भी निर्णय लेने में अगर मदद करें तो काफी हद तक दुर्घटनाये टल सकती है। माता-पिता यह कर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते कि वे अपने-अपने काम में इतने व्यस्त है कि उन्हे समय ही नहीं मिलता। बच्चों में सही समझ की नींव डालना माता-पिता का पहला नैतिक कर्तव्य है यह उन्हें नहीं भूलना चाहिए। बाद में पछताने से कोई लाभ नहीं।
समय चूकि पुनि का पछताने
का वर्षा जब कृषि सुखाने।।
यह उत्तरदायित्व लड़कियों का ही है कि वह स्वयं को जानबूझ कर किसी खतरे में न डालें। वर्तमान में समाज की स्थिति, लोगों की मानसिकता को समझाते हुए लड़कियों, माताओं और बहनों को अपनी समझ बढ़ानी होगी। सोच समझ कर निर्णय लें ऐसी जगह जाने से बचें जहाँ दूसरों को हावी होनें का मौका मिल जायें और आप या बच्ची अकेले पड़ जाये। सावधनी हटी दुर्घटना घटी। मजे और मजाक से दूर रहे क्योंकि इसी में दुरव्यवहार होता है और हो जाता है। समझदारी से भी मजा और आनन्द लिये जा सकता है। प्रदूषित वातावरण में न जाने में ही समझदारी है कहाँ खतरा है और कहाँ सुरक्षा यह समझ विकसित करना, स्वयं को दूरदर्शिता में सबल बनाना ही महिलाओं के सशक्तीकरण का पहला कदम है। आर्थिक, पारिवारिक, सामाजिक सुरक्षा के लिये स्वयं को मजबूत बना सकने में ही बुद्धिमानी है। वैसे कानून तो मजबूत और कड़े होने चाहिए लेकिन हम यह भी जानते है कि कानून की न्यायिक प्रक्रिया अत्यधिक लम्बी और लचर है। इसलिए लड़कियों का स्वयं निर्णायक दूरदर्शी और सर्तक होना अनिवार्य है तभी कुछ हो सकता है अन्यथा इसी आशा में कि तभी तो समाज सुधरेगा सिर्फ एक सपना ही रह जायेगा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए माता-पिता लड़कियों के किसी भी निर्णय लेने में अगर मदद करें तो काफी हद तक दुर्घटनाये टल सकती है। माता-पिता यह कर अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते कि वे अपने-अपने काम में इतने व्यस्त है कि उन्हे समय ही नहीं मिलता। बच्चों में सही समझ की नींव डालना माता-पिता का पहला नैतिक कर्तव्य है यह उन्हें नहीं भूलना चाहिए। बाद में पछताने से कोई लाभ नहीं।
समय चूकि पुनि का पछताने
का वर्षा जब कृषि सुखाने।।