Thursday, June 2, 2011

यादें

यादों के गलियारों में
कुछ भूले बिसरे चित्र जड़े
कुछ धुंधले कुछ चमक रहे
यादों की गलियारों में

चलते चलते बरसों बीते
बीज वृक्ष बन हुए खड़े
शाखाएं फूटी, बचपन बीता
यौवन की दहलीज पार कर
अंतिम पड़ाव पर थके पड़े

सुस्ताते, बैठे, वानप्रस्थ के द्वार
जीवन में हम जीते या फिर पाई हार
काश लौट आते वे दिन और फिर
जी पाते सारा जीवन
करके भूल सुधर

यादों के गलियारों में
कुछ भूले बिसरे चित्र जड़े
कुछ धुंधले कुछ चमक रहे
यादों की गलियारों में

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