Sunday, October 26, 2014

SANGHARSHA HI JEEWAN HAI

                                                             संघर्ष ही जीवन है
      सुख-दुख, आनन्द शोक उतर-चढ़ाव, अंधेरे-उजाले की अनुभूति है। यह संघर्ष किसके के लिये? अपने लिये, विश्वव्यापी प्रभु के लिये, माता-पिता पुत्र-पुत्री, पति-पत्नी परिवार के सुख के लिये? या अपनी मुक्ति के लिये? बड़ा ही गूढ़ रहसयमय प्रश्न है। सुबह होते ही
      परिस्थितियों से जब मनुष्य जीवन पशु पक्षी किसी भी चेतन जगत की क्रियाये टकराती है तो प्रतिक्रयायें अवश्य भावी सत्य है। यह न केवल जीवन के अस्तित्व के लिये जरूरी है अपितु विकास, उन्नत संवेदनाओं, और गूढ़ परम आत्मा के अनुभूति के लिये भी आवश्यक है। कैसे परिष्कृत करती है हमें ये संघर्ष के विभिन्न आयाम। कैसे तीव्र बनाते है अनुभूतियों के रंग। कैसे विकास तो है प्रेम, दया, करूणा, अपनापन, सहयोग की कोमल अंकुर और यही नहीं क्रोध ईष्र्या, प्रतिशोध की भवनायें, ये भी प्रस्फुटित होते है मनोभूमि में। इसे नकारा नही जा सकता।
       सक्रियता, किसी भी उद्देश्य को लेकर हो तभी प्रशंसनीय वाँछनीय है। निष्क्रयता जड़ बना देती है। बुद्धि को कुन्द कर देती है विवेक को सुप्त कर देती है और ये सब मृत्यु के ही तो प्रतीक है। ठहराव के उदाहरण है जहाँ से कोई मार्ग नहीं दिखता है सब निश्चल शान्त और चेतन रहित। क्योंकि रूक जाना मृत्यु हे चलते रहना जीवन।
        संसार गतिशील है परिवर्तन ही सत्य है प्रकृति भी परिवर्तनशील है ऋतुयें बदलती रहती है परिस्थितियाँ बदलती है कभी धूप कभी छाँव तो कभी बादलों का गरजना बिजलियों का तड़कना तो कभी प्रातः काल की सुन्दर लाल किरणें उगते सूरज का आश्वासन आनेवाले दिन का सुप्रभात। मन को ताजगी से भर कर आशाओं से सिंचित कर ऊर्जावान कर देता है। प्रेरित करता है कुछ कर गुजरने के लिये। यही उद्देश्य प्राचीन समय में भी रहा होगा। कुछ भाग्य कुछ कर्म दोनो की ही आवश्यकता है सब संवेदनशील बने यही ईश्वर से प्रार्थना है।                                                     

AUR TOTA UD GAYA

                        
                                                             और तोता उड़ गया-------
       मेरी बहुत-बहुत शुभकामनायें और जीवन के उन्मुक्त आकाश में क्रियाशील होने के लिये आशीष प्यार पिछले छः महीने से तम्हारी देख-रेख, खान-पान, साफ-सफाई, नहलाने-घुलाने के साथ-साथ शारीरिक विकास, पुष्ट होते पंख, नुकीली तेज चांेच और उसमे। चोखपन स्वाद के नये-नये रूप। मजबूत पुष्ट उड़ने के लिये तैयार। पिंजड़े के दो फिट के कारा में बन्द व्याकुल, बेचैनी में कभी लोहे के तार काटना बर्तनों को पटकना उलटना। पानी में रोटी, मिर्चा भिगोना भुट्टे के दाने, आनार के दाने कुतरना तरह-तरह की कसरतें सब तैयारी ही तो थी खुले आकाश में उड़ने की।
        यही नहीं मुझे सिखा गये एक सत्य कटु सत्य मगर प्यारा सा। बच्चे इसी तरह पलते है बढ़ते है और सीखते है पुष्ट होते है व्यवहारिक बनते है जिम्मेदारियाँ  उठाते है परिस्थितियों को समझ आती है और उड़ जाते है अपने मिशन पर खुले कर्म क्षेत्र में। दुख क्यों पीड़ा क्यों। वे उड़ रहें हे खुली हवा पानी धूप बरसात छाव-ताप यही तो जीवन है समय ही जीवन है जीवन को खुद जी पाना भी उपलब्धि है उद्देश्य आशा अरमान है। हर परिवार की आज के वर्तमान युग में सोच होनी चाहिये।
   गम न कर, ऐ मेरे मन
   तैयार कर दिया, समुन्दर पार कर।
   मोतियाँ ला, आसमा से चाँद तारे तोड़ कर।