एक पेरेंट ने पूछा ड्राइवर से ।
' खान सर चले गये क्या ?
'कहाँ'?
ऊपर'
हाँ , कल शाम पांच बजे '
अनमने से बस ड्राइवर ने बस आगे चला दी
मैं पीछे बैठी सोच रही थी
इंसान चला जाता है .रह जातीं हैं बस यादें ।
और बातें बाक़ी सब वैसे ही चलता है ।
वही सुबह ,वही शाम , वही संघर्ष ।
दौड़ -धूप , आगे पीछे ,का विचार विमर्श
एक अकेला घर का बापी , मुखिया
पीछे कुनबा नन्हे मुन्नों का , आपा धापी
यह सच है सबके पास सब कुछ नहीं होता .
लेकिन सबके पास 'कुछ' जरूर होता है ।
क्यों न हम उसे याद करें ,
बात करें अच्छे स्मृतियों के फूलों से
भर दें उसकी झोली , खुद को भी भर लें