झिर -झिर ,झिर-झिर ,लगातार
वर्षा की फुहार ,
धरती पर है सहज प्यार ,
नभ का अपार बरसे बहार
झिर -झिर ,झिर -झिर लगातार
वर्षा की फुहार ।
कुछ हरा - हरा ,कुछ भरा - भरा,
पावस ऋतु का भण्डार नया ।
अंकुर,किसलय ,नदियाँ , पहाड़
सोंधी सुगंध फिर मलय बहार ।
झिर - झिर झिर -झिर लगातार ,
वर्षा की फुहार .
Sunday, June 26, 2011
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2 comments:
सुन्दर कविता।
स्नेह जी बहुत सुन्दर ..और लिखिए ..सार्थक आनंद दाई .. ....शुभ कामनाएं
शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्र.
कुछ हरा - हरा ,कुछ भरा - भरा,
पावस ऋतु का भण्डार नया ।
अंकुर,किसलय ,नदियाँ , पहाड़
सोंधी सुगंध फिर मलय बहार ।
झिर - झिर झिर -झिर लगातार ,
वर्षा की फुहार .
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