Sunday, October 20, 2013

MAIN AUR MERE BABA DADI



                                                                 मैं और मेरे बाबा, दादी
    मैं बातूनी, बात करने में चटर-पटर, मोटा-छोटा भीम, गनपति बप्पा मौरया, कालिया और बहुत से देख-देख कर मैं सब समझ लेती हँू उन चीजों को बोल कार व्यक्त भी कर लेती हँू। अभी-अभी मैने अपना चैथा जन्मदिन मनाया है। कम्प्यूटर चलाना, टेली शाॅपिंग के लियेे माउस क्लिक करना, हर बटन के बारे में जानकारी मुझे है। गेम खेलना, सी0 डी0 लगाना, गााने सुनना मुझे खूब अच्छा लगता है। कितनी नई-नई बाते, नये वर्ड्स जिनका अर्थ (मीनिंग) तो मुझे मालूम नही मगर जब-तब बोल देती हँू और वह फिट भी बैठ जाता है। अरे, बुद्धु, कही के, स्टुपिड, हमला, नौटी, व्यस्त हँू डिस्टर्ब मत करो, मूड नही है, बत्तमीज दिल, जोे भी टी0 वी0 ने सिखाया और सुनाया है वह मुझे बहुत सही से आते है। गाने में बत्तमीज दिल, चक-चक धूम, चुनरिया मेरी, कोलोविरा-कोलोविरा, पनघट पर छेड़ गयों रे मेरे प्यारे गाने है जिन पर मै नाच सकती हँू
      मगर स्कूल में, पढ़ने लिखने में मेरा मन नही नहीं लगता। बहुत समझाये फुसलाये जाने पर, मम्मी-पापा के कने पर बड़ी मेहनत से थोड़ा बहुत लिख लेती हँू। मगर किसी को जमता नहीं। बारबी डाल से खेलना, बिन्दी लिपिस्टक,  नेलपाॅलिश लगाना सजाना मै बहुत मन लगा कर करती हँू। साइकिल चलाना लूडो खेलना, टीचर-टीचर बन कर खेलना, डाॅक्टर बन सबको देखना मुझे बड़ा ही अच्छा लगाता है छोटी बेबी को नहलाना धुलाना, तैयार करना कमरे को ठीक कर सजाना इन्ज्वाय करती हँू।
       मुझे खूब समझ में आता है कब मुझे कहना मान लेना चाहिए और कब जिद कर अपने मन का काम कराया जा सकता है। मौका पड़ने पर मै जमीन पर लोट भी सकती हँू। थैंक यू और साॅरी कहना मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता। पता नहीं क्यों? सब लोग मुझे इसके लिये बार-बार टोका करते है। अरे ये लोग कितने अजीब है बच्चों को समझते ही नही। मैं तो अभी छोटी हँू ओनली 4 इर्यस (साल)की।
       मेरे स्कूल की छुट्टी है 5 दिन की हाॅलिडे। बाबा, दादी आ रहे है। मम्मी पापा ने बहुत सी चीजे बताई है। बाबा, दादी के पैर छूने है नमस्ते करना है तंग नही करना है। कहानी सुनना है। अपनी पोयम हिन्दी इग्लिश की सुनाना है। चिल्लाना नहीं है। अपने स्कूल की कापी किताबे दिखाना है गुड गर्ल बनना है। ओह गाॅड! कतनी बाते याद करूँ। याद रहेगा क्या? मुझे ये सब?
       वह दिन भी आ गया। बार-बार यही पूछने से कि टेªन कितनी देर में आयेगी। बाबा दादी कब पहुँचेंगे? परेशान कर दिया मैने! और जब कार उन दोनों को लेकर घर पहुँची तो मैं दौड़ कर सामने के कमरे मे छुप गई। खिड़की से झांक कर देखा मेरा प्यारा डाॅगी पूछ हिलाता पोपेम दौड़ कर पूँछ हिलाता सबसे पहले पहँच गया और कूद-कूद कर खूब प्यार करवाया बाबा दादी से। मै परदे के पीछे से देखती रही।
       ये कैसे बाबा दादी? इतने फरक, अलीशा अनवर केतकी के बाबा, दादी से कितने फरक?(डिफरेन्ट)! गोल मटोल मोटे से बाबा, बाल तो सर पर है ही नही? कहाँ चले गये सारे बाल? मम्मी कहती है जो चाकलेट ज्यादा खाते है वो ऐसे ही मोटे हो जाते है और दादी? मुझे तो असीता की दादी याद है उनसे तो यह कही नही मिलती? सलवार कुर्ते में? स्कूल की टीचर की तरह दादी?
       अरे! गौरी कहाँ है भाई? पापिंस तो आ गया? गौरी कहाँ छिप गई? दादी की आवाज मुझे सुनाई पड़ रही है। मैने अपना स्कूल का बैग उठाया और उनके सामने खड़ी हो गयी। मैने पोनी टेल बनाई है हेयर बैण्ड लगाया है। मम्मी ने कहा है स्मार्ट और स्वीट लग रही हूँ काले सफेद रंग का छोटा सा स्कर्ट ट्यूनिक पहने मै सचमुच प्यारी लग रही हूँ। अरे गौरी! मेरी मीठी कैसी है? दादी की मीठी’’ पैर छूना तो मै भूल ही गई। मेरा बैग देखिये कापी में काम किया हे मैने आओ मेरी गोद मे आओ पहले खूब ढ़ेर सा प्यार कर लूँ तब। मै गोद में जा चढ़ी खूब प्यार किया दादी ने। फिर ड्राइंग रूम में बैठ कर मेरी हिन्दी, मैथ और इग्लिश की कापी देखी। कई बार गुड कहा। कहा कितना साफ और सुन्दर लिखा है? मैने बताया मेरा बैग यूरो किड का? मेरे स्कूल का नाम --- है। मेरा दोस्त भी ऊपर रहता है उसका नाम है------
        फिर मम्मी की पुकार पर चाय पीने चली गई। मै चुप देखती रही कितनी अच्छी है दादी, बाबा!
        कब आयेगा मेरा दोस्त अरनव अभी मै सोच ही रही थी कि दरवाजे पर थपथप का शोर मचाता वह आ ही गया। ओह बड़ा मजा आयेगा। आओ--- आओ मै तुम्हे अपने बाबा को दिखाऊँ। देखोगे वो अपने कमरे में फ्लैट है? हाँ तुम्हारे बाबा आये है चलो-चलो मै कमरे में लेकर उसको आ गई। बाबा बिस्तर पर लेटे है मेरा डाॅक्टरी का इक्पिमेन्ट वाला बाॅक्स। हम दोनो ही चिपक गये। चलो बाबा का पेट देखते है ये पेट क्या बोल रहा है।‘‘ मै बहुत मोटा हूँ मैने बहुत चाकलेट खाई है इसीलिये!’’ बाबा आप चाकलेट खाना बन्द कर दीजिए। अरनव ने मोटा इन्जेक्शन सिरिंज निकाला और इन्जेक्शन लगाने की तैयारी करने लगा। तुम इन्जेक्शन लगाओ। मैं आला लगाकर देखती हूँ कि बाबा के सिर पर बाल क्यों नही हे कहाँ चले गये बाल! मैने उनके सिर पर आला लगा कर पूँछा- कौन सा तेल लगाते है? नारियल का लगाया कीजिए। मेरी मम्मी कहती है नारियल का तेल सबसे अच्छा। आपके बाल तो है नही जो हे वह भी रूखे। नारियल तेल जरूरी है। कह कर मैने दाँत दिखाने को कहा- ओ हो ये क्या दाँत तो एक दम पीले! जीवाणु हमला करेंगे पेप्सोडेन्ट लगाइये। बेचारे एक बाबा------और हम दो डाॅक्टर मैं और अरनव!
        चलो भाग कर लौन में चलते है। अभी नहीं-नहीं अरे चलो न, देखो बाहर मिट्टी में शार्क मछली है क्या? बुद्धु मछली कहीं मिट्टी में होती है वहाँ तो क्रोकोडाइल होगी। भागो, मेरी साइकिल पर पीछे बैठों। मुझे तो साइकिल भगानी पड़ेगी यार। आओ साइकिल के पीछे बैठ जाओ। अरनव की पुकार पर मै दौड़ी।
         दादी आप कहाँ है? पार्क चलेगी? नही, क्यो? तो मैं आपको गाना सुनाऊँ? चक चक धूम। डान्स भी देखेंगी? हाँ ये आइडिया आपको अच्छा लगेगा। तो मै शुरू हो जाऊँ? आँखें मटकाती लटके-झटके मेरी मस्ती! दादी अब तो आप यहीं रहेंगी न। वापस नहीं जायेंगी न? मैं आपसे कहानी सुनुँगी। पढ़ूँगी भी, होम वर्क आप करा देना। बहुत मजा आयेगा। आप जो क्लाक लाई है अलार्म लगा कर मैं जल्दी उठ जाऊँगी। रात में बैग ठीक करूँगी और सुबह नाश्ता कर स्कूल के लिये तैयार। यू तो मुझे चुलबुल, नटखट, बुलबुली भी कहती है मगर मुझे अच्छा लगता है मीठी बस मीठी दादी की मीठी।         
                          

Prakriti aur maanav


             
                                                      प्रकृति और मानव
                                                                                 जोड़ें टूटी कड़ी
   प्रकृति में और मनुष्य के जीवन में बहुत सी ऐसी साम्यताये है जो यदि गौर से देखी जाये तो हमारा मार्गदर्शन करने में अहम भूमिका निभा सकती है। यह हमारे निरीक्षण और ओब्जर्वेशन की सूक्ष्मता निर्भर पर करता है। किसी किताब, किसी के समझाने और अनुशासित करने की जरूरत नहीं।
    हिमालय को देखा है आपने- सफेद वर्फ से घिरा शान्त, ठंडा शीतल, दृढ़ मजबूत अडिग, हजारों वर्षों से अपनी गोद में घने वृक्ष, घाटियाँ, झरने, फूल जड़ी-बूटियाँ पत्थर चट्टान को प्यार से समेटे दुलराते, सभालते अपने पुरूषार्थ के बल पर खड़ा है और संदेश दे रहा है-अपने पुरूषार्थ,  पवित्र विचारो, साहस, प्रेम, हृदय की सहृदयता और सहानुभूति के बल पर जीवन में पुरूष (मानव) भी अपना स्थान बना सकता है नदियों की अजस्र धारा, के समान स्नेह और सहानुभूति, और पवित्र सिद्धांतों नैतिक निष्पक्ष निर्णय जीवन को सफल और सुगम बना सकते है। बाधाये कहाँ नही आती? कोई भी मार्ग सरल सीधा नहीं है अतः चलना, और चलना ही है----
   बेंत क्या होता है? वह तेज हवा से सामने झुक जाता है। विपरीत परिस्थियों-समय के अनुकूल होने तक विनम्र और झुक कर रहने की सीख सिखाता है बेंत के झुरमुट। हवा के तीव्र झोकें, सह कर अनुकूल वातावरण बनाने तक धैर्य धारण कर लेना इन्हीं से सीखा जा सकता है।
    और तो और ऋतुओं का बदलना, रात के बाद दिन और दिन के बाद रात का क्रम यह सत्य जाने आनजाने रोज एक बात तो याद दिलाता ही रहता है कि सुख-दुख और दुख के बाद सुख, अधेरे के बाद उजाला, कुछ भी चिर स्थाई नही है। परिवर्तन ही जीवन, गति और स्पन्दन है। उसके बिना सब मृत, स्पन्दनहीन और जड़।
    क्या झोपड़ी क्या महल! जब सोने की लंका नहीं बची तो किसलिये धनसम्पत्ति को जोड़ना। साँई उतना दीजिए जामें कुटुम समाय। सहज बस सन्तोष ही सबसे बड़ा धन है और जीवन का सरल, समान यापन। इसकी उपलब्धि। छल, दम्म द्वेष से दूर ही रह पाना मानव जीवन पाने की सार्थकता है। शान्ति और बिना किसी पश्चाताप के मरण का वरण शायद इस जीवन का लक्ष्य। और क्या चाहिये-सब कुछ धन दौलत कर्म और उसके फल सब यही रह जायेंगे। क्या होगा मृत्यु के पश्चात ये तो अनन्त का रहस्य है। इसे रहस्य ही रहने दिया जाये और जो है, वर्तमान को बिता लिया जाय यही सच्चा कर्मयोग है-साधना है ईश्वर की ओर बढ़ता पहला कदम है।
                                                      

Meri pahli videsh yatra


                                                       मेरी पहली विदेश यात्रा
                                                                                                               एक संस्मरण
     जब नई दिल्ली एयर पोर्ट से हवाई जहाज ने उड़ान भरी तो एक पल के लिये लगा-कुछ छुट रहा है अजीब सी घबराहट बेचैनी शायद आकाश मार्ग का पहला सफर, और उम्र का 62वाँ पड़ाव और बुढ़ापे का जुड़ाव घर आँगन घरती मही फूल उपवन घर के पेड़ों पर लटके फूलों पर दाना चुगते गौरैयों  का झुण्ड, गोलकी श्यामा पक्षियों का कलरव, मछलियों की कदमों की आहट सुनतें ही पानी में तालाब में हलचल। अंगूरों की लता पर बुलबुल कावन घोंसला और सीटी बजाना। सारे के सारे चित्र सिनेमा की रील की तरह आँखों के सामने घूमने लगें। जीवन के अन्तिम समय में जब साँस टूटने लगती है तो बीता हुआ सारा जीवन याद आने लगता है शायद वही स्थिति लग रही थी मानों धरती ही छूट रही हो सारा संसार आकाश छूट रहा हो।
    रन वे पर धीरे-धीरे सरकता जहाज अचानक सर्र से आकाश छूने लगा ‘‘आपकी यात्रा मंगलमय हो की उद्घोषणा---- ओह तो हम आकाश के शून्य में है?
    बड़ा पागल है मन पिछला पिछला छूटा और सपने तिरने लगे आँखों में कैसी होगी विदेश की धरती, हवाये, आकाश बादल लोग रहन-सहन। सुना तो बहुत था जितने लोग उतनी बाते उतने ही अनुभव हर का अपना देखने का नजरिया और सोच पास-पास सट कर बैठे लोग। शान्त चुपचाप, धीरे-धीरे चलते। सब आवश्यकताओं की सुविधाओं से सम्पन्न। मानों मिनी रूप में हमारा दिन प्रतिदिन का संसार।
     छोटी-छोटी सीटे, सामने छोटा सा टी0वी0 उसके नीचे छोटी-सी फोल्डेबल टेबल प्रत्येक यात्री के लगभग। वर्ग गज के क्षेत्रफल में। चलने-फिरने के लिये हाथ पैर सीधा करने के लिये गैलरी लगभग 200 यात्री। बाथरूम की व्यवस्था। सीटिंग व्यवस्था तो हमारे बस की तरह ही था बस फर्क इतना था कि यह एयर बस थी और बाथरूम की, खाने-पीने की व्यवस्था साथ ही थी। स्मार्ट एयर होस्टेस सुन्दर-सुन्दर परियों की तरह ट्राली पर खाना नाश्ता ड्रिंक सर्व करते शालीन सभ्य होंठो पर मुस्कान चिपकाये ये हेल्पर हैट्स आॅफ टू देम हर किसी से वेज और नाॅनवेज की च्वाइस पूछते एक बार तो सोचा इतने सारे ड्रिंक्स पहले तो ट्रायल के लिये चाय ली कुछ जमी नही तो सोचा अबकी काॅफी चखी जाय। मगर यह क्या! एक घूँट  ने ही मुँह का जायका खराब कर दिया। शायद कोई नई ब्रैन्ड रही होगी। तुरन्त ट्रे में रखी अपनी प्रिय कोक ही मुझे संतुष्ट कर सकी। खाना नाश्ता का स्वाद बिल्कुल फरक था मगर नाम था एशियन फूड कुल मिला कर अच्छा फाॅर अ चेंज।
         परिवर्तन का अनुभव होने लगा था।
    हमारा गन्तव्य था डी0सी0 ----और फिर वहाँ से वर्जीनिया निकट का एक उपनगर आठ घण्टे की हवाई यात्रा के बाद पहला ठहराव था पेरिस एयर पोर्ट। वहाँ की सुन्दरता स्वच्छता और भव्यता का प्रतिनिधित्व कर रहा था। वहाँ से हम बाहर नहीं जा सकते थे। एकदम चमचमाता, समस्त आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न। रोबोट की तरह चुपचाप भाव विहीन चेहरों से चलते-फिरते लोग केवल खटखट ट्राली के हिलने-डुलने की आवाज। अपने-अपने सामानों को स्वयं ही सुन्दर हल्की फुल्की ट्रालियों में ढ़केलते यात्री। शारीरिक                                                       रूप से स्लिम ट्रिम, कुछ लोग दुबले पतले चूसे चुसके आम की तरह कांति विहिन चेहरे तो कुछ हृष्टपुष्ट मगर बहुत कम। शारीरिक मापदन्ड के अनुसार परफेक्ट फुर्तीले मगर रौनक नही तेजहीन अपने में खोये हुये मैं ढ़ूढ़ रही थी उस जीवन की उत्फुल्लता को, उस जिन्दगी को जो मेरे साथ-साथ हँसती खेलती इलाहाबाद से दिल्ली तक घरों, बाजारों रेलवे स्टेशनों यहाँ तक कि रेल के कम्पार्टमेन्ट में बच्चों बड़ो और यात्रियों के चेहरे तथा व्यवहार में झलक रही थी। ऐसा भी कठोर अनुशासन, भावों का नियन्त्रण किस काम का। अति सर्वत्र वर्जयेत। अस्वाभाविक असहज और कृत्रिम।
      मशीन की तरह नियन्त्रित ढ़ंग से पारो बोट की तरह सधे और नपे तुले कदम। चहल-पहल तो कहीं दिखाई ही नही दे रही थी। कभी एक कहानी पढ़ी थी कि एक राजा ने वरदान माँगा था कि वह जिस-जिस चीज को छुयेगा वह सोना हो जायेगी। शायद यहाँ पर लोगों को वरदान था कि यहाँ की धरती पर पैर रखते ही सब कुछ यंत्रवत रोबोट की मुड़ी में आ जायेगा। भौतिकता एश्वर्य की चकाचैंध से किंकित्वयं विमूढ़ तो मै भी थी। ठहराव के समय में मेरे बगल में बैठी एक यात्री अपनी गोद में लेपटाॅप रख कर कानों में म्यूजिक के लिये इयरप्लग लगाये काम में व्यस्त थी और थोड़ी-थोड़ी दूर पर टेलीविजन स्क्रीन पर लगातार आती जाती चित्रावलियाँ थोड़ी देर के लिये अपनी ओर आकर्षित कर लेती।
      अभी अपनी सफर पेरिस तक ही रखते है उसके आगे का सफर वाशिंगटन तक का अगले किश्त में।
  जब दिल्ली से चाल्र्स डी गौल एयर हवाई अड्डे से उड़े तो ऐसा लग रहा था कि हम किसी लोकल एयर बस में बैठे हो क्योंकि आधे से अधिक यात्री तो फ्रेन्च लग रहे थे। यात्रियों की संख्या कम थी आठ घण्टे की यात्रा थी।