Sunday, January 25, 2015

Gulmohar

                               गुलमोहर                                         
तुम मेरे गुलमोहर
हरे-हरे पत्तों के गुल्मगुच्छ में
प्रिय तुम मेरे गुलमोहर
कड़ी धूप में शीतल छाया
अम्बरतम में विधु की माया
हरे-हरे पत्तों के गुल्म-गुच्छ में
प्रिय, तुम मेरे गुल मोहर
कितना भी हो आहत मन
बोझिल आँखें, तन्द्रिल मन
पोर-पोर हो टूट रहा जब
तुम निद्रा की एक लहर
प्रिय तुम मेरे गुलमोहर
कितना लम्बा, कितना सूना
कभी-कभी यह जीवन का पथ
चुकती लगती जीवन शक्ति
और शिथिल मन जाता थक,
तुम, धनी भूत पीड़ा के अश्रुतरल
प्रिय तुम मेरे गुलमोहर।

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