Sunday, January 25, 2015

Zid aur zindagi

        जिद और जिन्दगी                                     

जिन्दगी को अपनी शर्तों पर जिया है मैने,
अंगारो की जलन, नफरत की तपन, पिया है मैने!!
जो चाहा सोचा, समझा वही, बस वही किया मैने।
जिन्दगी को अपनी शर्तों पर जिया है मैने।
किसी के आँखों की किर-किर, मन का नश्तर हूँ मैं,
क्या कहूँ किसी के दिल का, दुख का मंजर हूँ मैं
आना-जाना तो मुकद्दर का सिला है प्यारों
हर आह! से निकला दुआ का समन्दर हूँ मैं
जिन्दगी को अपनी शर्तों पर जिया है मैने।
जो भी जिया है बड़ी शान से जिया है मैने
बड़ी गहरी है नीवें, बड़े पक्के है इरादें
बड़े सच्ची है दुआयें, बड़ी ताकत है शहादत
न गिलवा न शिकायत, बड़ी हिकमत है ‘‘जरूरत’’
प्यार से, मगर भरपूर जिया है मैने
जिन्दगी को अपनी शर्तों पर जिया है मैने।
 









   

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