यादें
बच्चो के बस स्टाप पर
एक पेरेन्ट ने पूछा ड्राइवर से
‘खान’ सर चले गये क्या?
कहाँ
ऊपर
हाँ कल शाम पाँच बजे
आनमने से बस ड्राइवर न बस बढ़ा दी
मै पीछे बैठी सोच रही थी।
इन्सान चला जाता है रह
जाती है यादें और बातें
बाकी सब वैसे ही चलता है
वही सुबह, वही शाम वही संघर्ष
दौड़ धूप, आगे पीछे, मेन्यूपलेशन
का विचार विमर्श
एक अकेला घर का बापी
पीछे कुनबा नन्हे मुन्नोका
आपा धपी-----
यह सच है सबके पास
सब कुछ नही होता
लेकिन सबके पास कुछ
जरूर होता है। क्यों न हम उस याद करें
बात करे अच्छे स्मृतियों के फूलों से
खुद को भर ले, भर दे उसकी खाली झोली।
बच्चो के बस स्टाप पर
एक पेरेन्ट ने पूछा ड्राइवर से
‘खान’ सर चले गये क्या?
कहाँ
ऊपर
हाँ कल शाम पाँच बजे
आनमने से बस ड्राइवर न बस बढ़ा दी
मै पीछे बैठी सोच रही थी।
इन्सान चला जाता है रह
जाती है यादें और बातें
बाकी सब वैसे ही चलता है
वही सुबह, वही शाम वही संघर्ष
दौड़ धूप, आगे पीछे, मेन्यूपलेशन
का विचार विमर्श
एक अकेला घर का बापी
पीछे कुनबा नन्हे मुन्नोका
आपा धपी-----
यह सच है सबके पास
सब कुछ नही होता
लेकिन सबके पास कुछ
जरूर होता है। क्यों न हम उस याद करें
बात करे अच्छे स्मृतियों के फूलों से
खुद को भर ले, भर दे उसकी खाली झोली।