Sunday, June 21, 2015

Kya Kahenge



                                     क्या कहेंगे?
       कोई इतना संवेदनहीन कैस होे सकता है वह भी आज के वर्तमान समय में मेरा मन न जाने कैसा-कैसा हो रहा है घर से परिव्यक्ता बेटी न जाने कितने सालों से रह रही थी। कभी जिसकी किलकारियों से घर गुन्जा था, चंचल नटखट क्रिया कलापों ने हसाया था युवा किशोरी से युवा होती बहन के अरमान जगे विवाह हुआ मगर भाग्य की मारी को वापस अपने बाबुल घर आना पड़ा। पति घर में पटी नही 65 वर्ष तक का जीवन माता पिता भाई बहन भाभी भतीजे भतीजी के साथ बीता। बीमारी ने जो घेरा तो मौत की नींद सुला कर ही छोड़ा और उसकी तेरही के दस दिन बाद ही भतीजे का मुण्डन उसी घर में यह कह कर कि ये शुभ कार्य तो हो सकता है। वो जो मरी है वो तो लड़की थी घर की उसका क्या यहाँ से क्या मतलब लड़कियाँ तो इस घर की नही होती अब गई नही ससुराल तो क्या हुआ मुण्डन कराया जा सकता है और हो गया सब कुछ रीति रिवाज के अनुसार। वाह री समाजिकता, साथ सामीप्य, यादें सब धरी की धरी रह गये। गून्जने लगे मुण्डन संस्कार के गीत। रो रही थी तो बस दो आँखे, माँ की आँखों से झर रहे थे आंसू  कोई देख न ले झट से भर-भर आती आँखों को पोछ लेती।
               निर्णय भी किसने लिया एक स्त्री ने, एक स्त्री को नकारने का भयंकर निर्णय। क्या पुरूष है मेद-भाव का उत्तरदायी? क्या पुरूष है कठोरता का प्रतीक? यह नारी ही है नारी की हन्ता तो भेद भाव की सृजन कर्ता उसे क्षमा नही किया जा सकता पुरूषों को दोष न दे। सुधारना है तो नारी सुधरे। नारी को सजा मिले। नारी हो नारी की शोषक है शोषक है------

Park mein ek Sham



                                पार्क में एक शाम
बैंगलूर के पाॅश इलाके व्हाइट फिल्ड का सुन्दर पार्क चारों-ओर लम्बी ऊँची मल्टीस्टोरीड इमारतें, भव्य और आकर्षक, समस्त आधुनिक सुविधाओं से लैस मगर शाम होते-होते ही 5-7 के बीच पार्क भर जाता बिल्डिंग में रहने वाले 10-12 वर्ष तक के बच्चों और उनकों लेकर आने वाले आयाओं से। कुछ बच्चे झूलों पर झूल कुछ सीढ़ी से फिसलते, सी-साॅ में उछलते तो कुछ छड़ो को पकड़ कर बन्दरों की तरह लटकते व्यायाम करते। रंग-बिरंगे फूलों की तरह-तरह की नयी ड्रेस, शोर गुल दौड़ते भागते। ऊपर से सातवीं मंजिल की बालकनी में खड़े होकर इस मोहक दृष्य को पास से जाकर देखने का लोभ मैं रोक न पाई और लिफ्ट से नीचे आ गई। अभी कुछ ही दिनों पहले अपने बेटे-बहू के घर हम लखनऊ से आये थे।
पोती का और बेटे-बहू के पास कुछ दिन बिताने का सुनहला अवसर। और फिर बैंगलोर से माॅर्डन का आन्नद कुछ दिन बिताने का सुनहरा अवसर और फिर बैंगलोर के ऐसे माॅर्डन सिटी का आनन्द और अमेरिका के लाइफ स्टाइल का रूप बताया जाता था मन में थोड़ा सा वह भी लालच भी था।
     लिफ्ट से उतर कर हम उसी पार्क में आ गये जहाँ जिन्दगी शायद अपने सबसे सुन्दर रूप  में खेल रही थी चारों तरफ देखा बड़े बुजुर्गों के बैठने के लिए बेंचेज भी बनी थी पार्क का एक चक्कर लगा कर हम भी वही बैठ गये जिया भी वही थी अपने दोस्तो में मस्त थी बहुत देर तक तो इधर-उधर दौड़ती भागती दिखाई दी मगर कुछ देर बाद नजर न आई उसकी आया अपने अन्य आया दोस्तों के साथ गप्प मारते दिखाई दी जिया की ओर उसका ध्यान न था पेड़ के नीचे बेंच पर बैठे हम उसके दादा-दादी देख रहे थे अचानक कि अपने से छोटे बच्चों के साथ छुआ छुई खेल रही थी खिलखिला रही थी उन्हें प्यार से खेला रही थी मगर उसके  अपने हम उम्र बच्चे उसके साथ नही थे कहा गई उसकी दोस्तें वे भी आयी होंगी यहाँ मैने भी एक चक्कर लगाने की सोची और धीरे-धीरे चल पड़ी उस ओर। उसकी चारों दोस्त झूला झूल रही थी मगर जिया, तो अलग ही अपने नन्हे दोस्तों में मस्त थी किसी को झूला झुलाती किसी के पीछे भागती सहलाती दुलराती। कही रेत के ठेर पर बैठ कर घर बनाती खुद लीडर बनी उन छोटे बच्चों की टोली को ले चलती लेकिन अपनी उम्र के लड़कियों के साथ नही बड़ा आश्चर्य हुआ उसका यह रूप देखकर अचानक उसके दोस्त ने पीछे से धक्का देकर गिरा दिया गिर कर उठी गुस्से से जिया ने उसे देखा आर तड़ से एक झापड़ जड़ दिया अरे! यह क्या इतना गुस्सा क्या हुआ मै दौड़ी उसकी मम्मा भी आ गई सब आया अपने-अपने बच्चों के लिए दौड़ पड़ी बच्चे उनसे चिपक गये कुछ मम्मियां भी जुट गयी तमासा सा खड़ा हो गया और घेरे के बीच जिया अपने रेत के बनाये घर के पास छोटे राहुल का हाथ पकड़े खड़ी थी चुप एकदम चुप घूर-घूर कर सबको देखती हुई। कोई उसको कुछ कहने का साहस न कर सका
    आगे बढ़कर अन्याय के बिरोध करने का गुण साहस शायद जन्मजात ही होता है कोई सिखा नही सकता केवल परिष्कृत कर सकता है सही दिशा दी जा सकती है आवश्यकता है बच्चो के क्रिया कलापों को ध्यान से देखा जाय उसके पीछे भावनाओं को समझकर गुणों को विकसित किया जाय।