क्या कहेंगे?
कोई इतना संवेदनहीन कैस होे सकता है वह भी आज के वर्तमान समय में मेरा मन न जाने कैसा-कैसा हो रहा है घर से परिव्यक्ता बेटी न जाने कितने सालों से रह रही थी। कभी जिसकी किलकारियों से घर गुन्जा था, चंचल नटखट क्रिया कलापों ने हसाया था युवा किशोरी से युवा होती बहन के अरमान जगे विवाह हुआ मगर भाग्य की मारी को वापस अपने बाबुल घर आना पड़ा। पति घर में पटी नही 65 वर्ष तक का जीवन माता पिता भाई बहन भाभी भतीजे भतीजी के साथ बीता। बीमारी ने जो घेरा तो मौत की नींद सुला कर ही छोड़ा और उसकी तेरही के दस दिन बाद ही भतीजे का मुण्डन उसी घर में यह कह कर कि ये शुभ कार्य तो हो सकता है। वो जो मरी है वो तो लड़की थी घर की उसका क्या यहाँ से क्या मतलब लड़कियाँ तो इस घर की नही होती अब गई नही ससुराल तो क्या हुआ मुण्डन कराया जा सकता है और हो गया सब कुछ रीति रिवाज के अनुसार। वाह री समाजिकता, साथ सामीप्य, यादें सब धरी की धरी रह गये। गून्जने लगे मुण्डन संस्कार के गीत। रो रही थी तो बस दो आँखे, माँ की आँखों से झर रहे थे आंसू कोई देख न ले झट से भर-भर आती आँखों को पोछ लेती।
निर्णय भी किसने लिया एक स्त्री ने, एक स्त्री को नकारने का भयंकर निर्णय। क्या पुरूष है मेद-भाव का उत्तरदायी? क्या पुरूष है कठोरता का प्रतीक? यह नारी ही है नारी की हन्ता तो भेद भाव की सृजन कर्ता उसे क्षमा नही किया जा सकता पुरूषों को दोष न दे। सुधारना है तो नारी सुधरे। नारी को सजा मिले। नारी हो नारी की शोषक है शोषक है------
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