कुछ तो बताइये
परिवर्तन सृष्टि का नियम है चलते रहना जीवन और रूक जाना मृत्यु है। समाज के विकास में भी यही नियम है मान्यतायें बदलती है आवश्यकतानुसार विचार बदलते है सोच और दिशायें बदलती है। नही बदलते है तो हमारे शाश्वत नैतिक मूल्य। नैतिक मूल्यों के व्यवहारिक प्रयोग में निरंतर गिरावट देखी जा रही है। माता-पिता परिवार विद्यालय अध्यापक शिक्षा शास्त्री सभी हैरान परेशान है मौखिक रूप से हर व्यक्ति अपने स्तर पर दया करूणा सहयोग सम्मान आदि मानवीय गुणों की संवेदनाओं के लिये उपदेश देते रहे है लेकिन नतीजा कुछ भी नही। जितना नैतिक शिक्षा पर बल दिया जा रहा है लोग सर्तकता और सावधानी बरत रहे है उतने ही भयानक और विपरीत प्रभाव हमें दिखाई पड़ रहे है।
क्या है इसका कारण कहाॅं हम चूक रहे है कौन है जिम्मेदार? कौन सी चीज हमें पतन की ओर खीच रही है सभी अपने-अपने दायित्व निवर्हिन को सही बता कर मीडिया पर दोष मढ़ रहे है। इसी पृष्ठ भूमि को लेते हुए वर्तमार समाज में गिरते नैतिक मूल्यों को कारण मीडिया ही है क्या सोचती है हमारी युवा पीढ़ी? भुक्त भोगी अनुभव करने वालों का किशोरों की क्या सोच है अनुभवों के धनी हमारे वरिष्ठ जन इसे किस तरह समझाना और समाधान देना चाहेंगे। यदि कुछ समय दे कर दिशा बोध हो सके तो आभारी रहँूगी मैं----