Saturday, August 4, 2012

mun ke paakhii

   मन    के   पाखी

उड़  जा ,उड़  जा   मन   के पाखी ,
 तू   अनंत    की    ओर .
 तन का   पिंजर    छोड़ ,
उड़  जा , उड़  जा , मन के  पाखी ,
 तू  अनंत की    ओर .

 अंगों   के बंधन  में कसमस ,
और  छूटने को  फिर   . बेबस
उड़   जा, उड़  जा , मन  के पाखी ,
तू अनंत   की   ओर .
 दूर  दूर  फिर ऊंचा ऊंचा  ,
धरती  का फिर कुछ   ना  दीखे
यह  संसार भरम  की  बाती ,
इसका  ना  कोई   छोर .

उड़   जा   उड़   जा ,मन  के   पाखी .
तू  अनंत की ओर.

चहक   रहा था ,महक  रहा .था
जीवन  का यह उपवन सारा .
मौसम  का जब  तेवर बदला ,
सब  कुछ तहस नहस कर डाला .
समय ,भाग्य  को किसने   जाना?
जाना  ,फिर भी  कब पहचाना

उड़   जा , उड़ जा ,मन  के पाखी .
 नए  भोर की ओर   ,
 नव बसंत  की ओर   .
तू  अनंत की ओर .




No comments: