Monday, July 23, 2012

 बुढ़ापे     का     बचपन
लौट   रहा है  शायद बचपन ,याद  आ रही है पलपल की .
घिसी  बर्फ के गोलों पर ,रंग बिरंगे  मीठे  शरबत 
 बेसन की स्वादिष्ट lataii   चट पट  चाट   रसीले गुपचुप
कालेज  के बाहर  की gupshup खिल खिल
 ,ठिलठिल मस्त मौज की .


शायद  बचपन   लौट रहा है ,याद आ रही है पल पल की         
काँधें  पर  लटकाए   कांवर  फेरी वाला  आता  था , 
रबडी    दही  और   मलाई  ,पूछ पूछ खिलवाता था
" फेरी वाला कब  आएगा  ?उसे  देखने  जाती  हो  "
पेपर ,फिल्टर  और सोख्ता    मिली  मलाई     खाती  हो ?

ऊपर से माँ  थी चि ल्लाती ,डांट -डपट  कर  मुझे बुलाती
शायद बचपन लौट रहा है ,याद आ रही है पल पल की .
वही  रूठना , वही मनाना ,वही फूलना वही पिचकना .

तब अम्मा और बाबूजी थे ,अब है बेटा बेटी अपना ,
फुसलाते बहलाते रहते ,तरह  तरह के मान मानते .
क्यूँ  रुठी हो ?क्यूँ बिफरी हो ?क्यूँ भूखी हो?क्यूँ फूली हो?

 मुझको खाना है जुबजूबी या फिर   चाकलेट  की गोली '
छोडो  भी माँ ,अब  यह जिद  अपनी . मधुमेही हो यह क्यूँ भूलीं ?
अच्छा  .... देखो टच मोबाइल ,तुम्हें चाहिए था ना  बोलो ?
लैपटाप  पर काम करोगी ....मीठे की जिद छोड़ो .....?

चलो घूमने ,तुम्हें दिखाएँ पिक्चर .या ...गाने सुनवाएं


होने वाली मैं    सत्तर की ,बता रही मैं अपने मन की
शायद बचपन लौट रहा है  याद आ रही है पलपल की 

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