शुभ संकेत
हम लौट रहे है हाँ -अपनी जमीं अपनी संस्कृति और दर्शन ने हमें वापस बुला लिया है। भौतिकता की तेज रफ्तार सोच ने हमारे मन मस्तिष्क को ऐसा छा लिया था कि हम भ्रमित और सशंकित थे। भयभीत थे। समय का पहिया घूम रहा है। अपनी पुरानी संस्कृति और विचारों को तर्क बुद्धि और व्यवहारिकता की कसौटी पर खरा उतर कर अपनी सत्यता को प्रमाणित कर दिया है। विचार प्रभावित करने लगे है। वातावरण चाहे सामाजिक हो आर्थिक हो या राजनैतिक जागरूकता की लहर दौड़ पड़ी है। भौतिकता दिखावा धन दौलत वैभव को चमक-दमक फीकी पड़ने लगी है एक वर्ग या समूह ऐसा विकसित हो रहा है जो सोच रहा है सम-हजय रहा है उसे दिन प्रतिदिन के जीवन में व्यवहार में उतार रहा है पाप का घड़ा अब भर गया है फूटने को है। वह अपनी चरम पर है जहा से प्रत्यावर्तन होता है। अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर पहुचने वाला भ्रष्टाचार का सच्चा रूप सामने खुल पड़ा है शर्म को भी शरमिन्दा कर इस भ्रष्ट आचरण ने सबकी नही तो कुछ लोगों की आखें जरूर खोल दी है। सच ही तो कहा गया था भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती। कब किस अन्याय का फल किसके सिसकियों की आह किसरूप में कहर बरसाये किसी को पता नहीं हैं।
कितनी अनहोनी घटनाये किसका फल है किसी को पता नही है। तन, मन, घन से शान्ति के लिये भटकते मन अकेले पड़ कर उन रहस्यों का परदा हटाने में लगा है कर्म काण्डों को हटा कर मूलभावना, विचार को समझ करमूल शिक्षा को अपने जीवन में उतारने की कोशिश कर रहा है यह एक शुभ संकेत है हम लौट रहे है अपनी सभ्यता और संस्कृति की गरिमा की ओर जमीं से जुड़ने के लिये।
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