अपना घर
उफ पन्द्रह दिनों से लगातार सामानों की पैकिंग करते- मानों कमर ही टूट गयी हो। रिटायरमेंट के बाद प्रायः जीवन कितना खाली और बेगाना सा हो जाता है। कितने शौक से यह घर बनवाया था। हमने राची के इस पाश कलोनी में अपना घर दस वर्ष बाकी थे तब सरविस के एक या दो बेडरूम में काम कैसे चलेगा कम से कम तीन बेडरूम तो होने ही चाहिए और एक गेस्टरूम तो होने ही चाहिये और एक गेस्टरूम एक रानी के लिए, एक राजू पप्पू का और एक हम लोगों का यानी मिस्टर एंड मिसेज प्रकाश का। ऐसा लग ता था इससे कम में तो हो ही नहीं सकता औकात से ज्यादा लोन लेकर सजाया सँवारा घर। बाथरूम में मार्बल, सफेद संगमरमर टाईल्स। बड़े से लान के लिए खुली जगह, अगल बगल सुन्दर फूलों की क्यारियों की जगह। मखमली घास के लाॅन को आहलादकारी कल्पना, प्रयास भी किये लेकिन जब घर बन कर तैयार हुआ तो जैसे अपनी नींव ही खोखली हो गई थी।
नौकरी के तो आभी दस साल बाकी है लोन भी काफी हो गया है और अभी तो इस घर में आया नहीं जा सकता? क्यों न इसे किराये पर लगा दिया जाय लोन भी सध जायेगा और घर भी मेन्टेन हो जायेगा। दूसरा सु-हजयाव प्रकाश का था मैं बच्चों का लेकर इस घर मे रंहूँ पढ़ाई वगैरह के लिए एक ही जगह टिक कर रहना ठीक होगा। प्रकाश आते-जाते रहेंगे। समय बीतते देर नही लगती लेकिन मै प्रकाश के इस सु झाव पर किसी हाल में राजी न हुई। ललक भरी आखों सक देखते हुए सुन्दर सजा कर बना कर घर दे दिया बड़ी प्राइवेट के जनरल मैनेेजर को और लौट आये हम लोग उसी पुराने से बदरंग, सीमेंन्ट उखड़े सरकारी क्वार्रटर में।
सोचा यहाँ क्या? तबादले वाली सरकारी नौकरी है इस घर से क्या मोह क्या इस पर मेहनत करना जब अपने जायेंगे शौक पूरे कर लेंगे। मध्यमवर्गीय परिवार के सरकारी अफसर की पत्नी की हैसियत मैने भी यही सोच लिया था। पर तब क्या पता था कि जब सब तरफ से ठीक-ठाक सुविधा सम्पन्न घर बन कर तैयार होगा और उसमे आने का अवसर मिलेगा तो उसे भोगने के आनन्द से सहेजने सवारने की, परिवार के साथ मिलकर रहने की जीवनी शक्ति ही चुक जायेगी।
60 वर्ष की उम्र में अपने इस विशाल घर के बरामदे में चारों ओर फैले 30 वर्षांे की गृहस्थी का सामान पैकटों और बोरियों में लिपटा पड़ा मानों हम पर हॅंस रहा था। प्रकाश जी सामानों की गिनती करवाने और कुलियों से उतरवा कर अभी सुरक्षित स्थान पर रखवा रहे थे और मैं उन सबके बीच कुर्सी पर बैठ कर चुपचाप सोच रही थी।
अपने, हाॅं अपने इस चिरप्रतीक्षित घर में आकर इतना गहरा सूनापन क्यों वह उछाह क्यों नही? हाँ शायद, रानी राजू और पप्पू नही है जो इसको बनवाते समय चहक-चहक कर अपने-अपने कमरों की प्लानिंग और घर की सजावट सोच रहे थे। इस सामने वाले कमरे मे यह बड़ी खिड़की तो इसलिए बनी थी कि रानी को बहुत शौक था कि वह खिड़की और बाहर रात की रानी की भीनी-भीनी खुशबू उसमें नई स्फूर्ति और ताज़गी देती रहेगी। मगर वह तो इस कमरे में एक दिन भी बैठ करपढ़ी नहीं। जहां जहाँ पोस्टिंग हुई वहां पर छोटे-छोटे कमरों में तीनें भाई बहन लैम्प की रोशनी से जू झते जूझते कालेज की पढ़ाई खत्म हो गई और फिर तो हास्टल और हास्टल। अभी पिछले हीे साल तो शादी की उसकी। खुश है अपने घर में। कितना सुन्दर है उसका छोटा सा सुन्दर और सलोना सा फलैट।मगर यह कमरा उसी के लिये बनवाया था। आयेगी भी तो साल दो साल मे आठ दस दिनों के लिये। अमेरिका में बसी दूर इतनी दूर कि----
बेटा राजू, कितना रोया था कि मेरा कमरा अलग-ंउचयथलग होना चाहिए मेरे दोस्त आयेगें ,तो कंबाइंड स्टडी करूँगा अपनी तरह -सजाऊँगा । उसको भी तो अब देश विदेश के चक्कर लगाते क्या कभी इस कमरे की याद आती होगी जिसमें वह रहा ही नहीं। बचपन और किशोरावस्था के सपने, माँ -बाप के इर्दगिर्द घूमने वाले बच्चों की दुनिया कब परिपक्व होकर अपना दायरा खुली दुनिया में सजाने लगी कुछ पता ही न चला और अब मर्चेंट नेवी में बहू के साथ समुद्र की लहरों पर जलयानों पर अठखेलियाँ करता वह जीवन की ऊंचाइयाँ नाप रहा है।
एक गाड़ी सामान आ चुका है दूसरा आने वाला है।पेड़ पौधे गमले क्राकरी सोफा टी.वी. वी.सी.आर. सब। प-सजय़ लिख लो अच्छी नौकरी उददेश्य रखो हर बार बच्चों को यही शिक्षा दी। अब सब कुछ है तो साथ बैठकर देखने के लिये बच्चे नही हैं। घोसलांे से चिडि़योे के बच्चे पर उगते ही उन्मुक्त आकाश में उड़ानें भरनी शुरू कर देते है अब नीड़ से मोह कैसा? आत्मविश्वास आया बच्चों में व्यक्तित्व निखरा पुष्ट हुए। जिनके लिए नीड़ बना समय बीता। उन्हें अपना नया नीड़ रचना है उनके लिए तिनके जुटाने है बड़ी लम्बी यात्रा करनी है अब उनके इस नीड़ रहने की आशा कहाँ ?
किरायेदारों ने घर खाली कर दिया और जाने से पहले कुछ भी देख भाल नही की उन्हे पता जो चल गया था कि हम लोग आने वाले हैं।
अब सामने उजाड़ पड़ा लाॅन, फूलों की आस लगाये क्यारियाॅ, नौकरी पर तो नौकर चाकर माली मिल भी जाते थे।
पेंशन के पैसों से क्या-ंउचयक्या करेंगे कभी तो इस कालोनी में आकर रह नही जीवन की इस सन्ध्या मंमें क्या नये लोगो से वह अपनापन इस नये जगह पर नये तरह से जीवन शुरू करना आसान नहीं। ऐसा लग रहा हैभविष्य की आशा में शायद मैनें अपना वर्तमान खो दिया। तात्कालिक सुख तो मैं शायद भूल ही गई थी बच्चे ही जीवन रथ की धुरी है हर व्यक्तिव का जीवन उनमें ही केन्द्रित होकर घूमता है उनको पालने-ंउचयपोसने के लिये सुविधा जुटाना है नौकरी करता है जीवन इतना अधिक व्यस्त और यान्त्रिक हो उठता है कि वे गौण हो जाते है। भविष्य की सुरक्षा का भय, क्रोध, हड़बड़ी जीवन की भागदौड़, घबराहट इतनी हावी हो जाती है कि हम जीवन के छोटे सुखों और खुशियों के आनन्द को भूल जाते है। अथक परिश्रम भागदौड़ जमा की गई भौतिक उपलब्धियाँ शारीरिक सुख तो दे देती है मगर सामीप्य-सानिध्य प्यार बच्चों का साथ, जीवन के हर पल, हर क्षण के भरपूर आनन्द लेने से वंचित कर देती है।
अरे! अनु उठो किस सोच में डूबी हो। जरा इन आदमियों के लिए चाय वगैरह बनाओं। बड़ी मेहनत की है इन्होंने, मु झे निष्क्रिय देखकर फिर बोले-उठोदेखो यह तुम्हारा घर अब चाहे जैसे सजाओ अपनी सारी इच्छायें पूरी कर लो।मेरी आखों से आ सूँ गिर रहें है३ण्ण्अकेले इस घर मे अब हम और तुम अकेले रहेंगे। मैं तो सोच रही थी हम सब साथ रहेंगे रानी राजू पप्पू मगर यह कैसे हो सकता हैसमय बीत गया है
भारी कदमों से मै किचन की ओर बढ चली।
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