Sunday, December 30, 2012

main roii

  मैं रोई .
मैं रोई ,फूट -फूट कर रोई .
क्यूँकी ,

आज वह  मर  गई .
तेरह दिनों तक ज़िंदा लाश थी
.अहसास था ,स्पनंदन था
.ज़िंदगी से हार गई
..हाँ ,आज वह मर गई
 वह कौन  थी तुम्हारी ?
न देखा .न जान न पहचान ,
न बेटी ,न माँ न बहन .हाँ
वह सामाजिक रिश्ते में न सही ,
मगर मेरे मन का हिस्सा थी
,तन का टुकड़ा थी खून  से सिंची
.।मेरे सीने  से जकड़ी थी  मेरी अपनी थी
पीड़ा  हर आह सिहराया ,तड़पाया .
वह इंसानियत थी जो इतने करीब थी .
हैवानियत  के दरिंदों बोटी -बोटी काटी
 मासूमियत का परिंदा ,सपनों  का गुलिंस्ता
 .वह मासूम फाख्त्ता थी ,वह इंसानियत थी ,
जिसकी मौत   पर  मैं रोई फूट फूट कर रोई
,अपनी लाचारी पर ,अपनी कमजोरी पर
 ,मैं कुछ कर न सकी ,क्यों कुछ कर न सकी
मैं रोई  फूट -फूट कर रोई 

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