Sunday, February 17, 2013

Atma Chintan

                                             आत्म चिन्तन
                               गुरू ब्रम्हा , गुरूःविष्णु गुर्रूदेवो महेश्वरः
                               गुरूः साक्षात परमब्रहम् तस्मै श्री गुरूवे नमः।।
गुरू  है, गुरू ब्रम्हा विष्णु है गुरू सब देवों के देव महेश्वर हैं वास्तव में गुरू साक्षात परमब्रहम् है इसलिए गुरू को नमस्कार है।
     भारतीय दर्शन और संस्कृति में जो गौरव गुरू को प्रदान कियया गया है वह अन्यत्र कहीं नहीं। अन्धकार से प्रकाश की ओर अज्ञान से ज्ञान की ओर असत से सत की ओर अग्रसर कराने वाला गुरू ही है। ज्ञान की शलाका से मनुष्य की बन्द आंख  को खोलता है। विवके, चेतना को जगता है। आत्म चिन्तन, आत्ममंथन की प्रक्रिया द्वारा अपनी उन्नति के उपाय को बताकर लक्ष्य प्राप्ति के लिये प्रेरित करने वाला गुरू ही है।
      शिक्षक के पद पर आते ही वह मनुष्य सामान्य से विशेष हो उठता है। ईश्वर और परमब्रहम् स्वरूप हो जाता है। युग बदल देने का अदम्य साहस और शक्ति गुरू के पास ही है। नये स्वच्छ, स्वस्थ विचारों वाले समाज का सजकि, निर्माता, प्राणदाता सृष्टि कर्ता हो उठता है शिक्षक।। और आज का छात्र कल के नागरिक, समाज की इकाईयों को शिक्षको का व्यक्तित्व प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं गहरा प्रभावित करता है।
      आइये, आज हम सब अपने-अपने गुरूओं का स्मरण करें, उनके प्रति श्रद्धा से नत मस्तक हो जिन्होंने हमारे जीवन को, किसी भी क्षेत्र में स्पर्श किया हो, जिन्होंने अपने ज्ञान, प्रेरणा और लगन से हमको शिक्षक के पड़ाव तक पहुंचाया  है इस योग्य बनाया है कि हम शिक्षक के पद पर आयें है। उत्तर दायित्व कठिन है मार्ग दुर्गम है। तप का है, साधना का है। पग-पग पर सावधानी अपेक्षित है। हमें अपने चरित्र पर सतत नजर रखनी हैं क्योकि छात्र अनुकरणशील है।

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