आगमन
नवमी तक तो देवी के अर्चना के फूल उपवन में इक्का-दूक्का ही दिख रहे थे। चढ़ाने के लिये फू लों की माँग थी। अंधेरे मुँह ही यू ये फूल , चहरदिवारी से फांद कर भक्तों के द्वारा तोड़ लिये जाते थे। सुना है चोरी से तोड़े गये इन फूलों को जब देवी पर चढ़ाया जाता तब आधा पुण्य और आशीष फूलों की देख-रेख करने वाले व्यक्ति को भी प्राप्त हो जाता है लेकिन दशमी के दो दिनों के बाद ही घर के बगीचे मे एक आनन्दमय उल्लास सा छा गया। गुड़हल के लाल बिन्दों जैसे लटकते फूलों से पेड़ो की झाड़ी भर गयी पीले फूलों वाली लतर गदरा कर खिल गई। पीली आभा चारों ओर फैल कर दिव्य वातावरण बना रही थी। आम के पेड़ों पर असमय ही बौर थे एक मात्र आम को टिकोरा /छोटा फल/ लटक कर शुभ आगमन की सूचना के पट लहरा रहा था। उसके नये कोमल पल्लव पहले ताम्बई, फिर धानी रंग में कुछ अनोखा सौंदर्य बिखेर रहे थे। द्वार पर खड़े दो कदम के पेडों के फूल पीले और हरे लड्डुओं के रूप में हॅंस कर अठखेलिया करते प्रतीत हो रहे थे। लगता था छोटे बच्चों के खेलने के लिये ललचाते टपाटप धरती पर आकर फुदकने लगते। नन्हे मुन्ने बच्चों /कन्याओं की टोली ने/भोजन पर आकर घर आँगन गुलजार कर दिया। सबने खुश होकर भर पेट खाया। तश्तरियाँ ली और भोली मुस्कान से चहकते हुए अपने बारे में जानकारी दी। पता नहीं कैसा अजीब सा पवित्र वातावरण दैनिक अनुभूति सी हो रही थी।
कई वर्षों से उदास निराश मन मे अचानक इक जोत सी जगी घर में मेहमान तो आने ही वाला था। बार-बार विचार आने लगे। अब की सब कुछ बदल दो। दस वर्षों से एक ही रंग बदलवा दों। और समय पर पेन्ट भी आ गया और सब मनचाहा होने लगा। नया बाथरूम, छोटा-सा बेडरूम छोटी-सी पैसेज, मेरी इच्छा है कि किचन का प्रवेश उधर से ही हो। ड्राईंगरूम से नहीं। नीला, हरा, गुलाबी हर कमरे का अलग रंग। बहुत खुशनुमा। कितनी बिलनियों के घर बने, चिडि़यों का झूले पर एक दूसरे को चारा खिलाना, लड़ना झगड़ना चलकना। फाख्ता का सिर उठा कर गर्वीली मुद्रा में चहल-कदमी करना और हाँ प्यारे गुलाबी रंगों के गुलाब के फूलों की लतर जो नारंगी के पेड़ के साथ गले मिलकर फूलों के सखा बन बैठे है। उपर से मानों आशीषों की वर्षा कर रहे हो। फिशपाम के बड़े गमलों ने श्रीमान जी की प्रेरणा पाकर ग्रील के सामने प्रवेश द्वार पर सामने मण्डप सा बना दिया है मानों कुटिया का प्रवेश द्वार अंगूर की लता का किचन की खिड़की के उपर जाकर छा जाना मन को भा रहा था कटिंग-शटिंग के बाउ कोमल पल्लवो का अंगूरी रंग उमंग की हिलोरे मन में जगा रहा था। घर के अन्दर द्वार पर गणेश जी विराज गये। श्री राम लक्ष्मण सीता एवं हनुमान जी, स्वागत कक्ष को भव्य बनाया। न मालूम कौन सी दिव्यात्मा के आने के शुभ संकेत मिल रहे थे पिछले व महीनों से।
24 सितम्बर अष्टमी के दिन अकाएक दिन के 1ः30 बजे फोन की घण्टी घनघना उठी। गुड न्यूज जिसकी आप आशा कर रही थी। वह आ गया एक नन्ही सी परी जादू की छड़ी, फूलों की लडी, खुशियों की शायद इसके आगमन के लिये ही इतनी तैयारियाँ चल रही थी ‘गौरी’ के आगमन के स्वागत का इतना भव्य और आलौकिक आयोजन शुरू हो गई दौड़ धूप, हलचल, गाड़ी चालक नाना नानी बाबा दादी और मामी बुआ की प्यारी दुलारी। बाबा दादी की सुन्दरी-मुन्दरी, सोना-मोना गौरी के आने से गूजने लगा घर आँगन । कमरे की दीवारों की नीली आभा और गौरी के गुलाबी के कपड़ों का काम्बीनेशन में कुछ अधिक ही मोहक लग रहा था।
नवमी तक तो देवी के अर्चना के फूल उपवन में इक्का-दूक्का ही दिख रहे थे। चढ़ाने के लिये फू लों की माँग थी। अंधेरे मुँह ही यू ये फूल , चहरदिवारी से फांद कर भक्तों के द्वारा तोड़ लिये जाते थे। सुना है चोरी से तोड़े गये इन फूलों को जब देवी पर चढ़ाया जाता तब आधा पुण्य और आशीष फूलों की देख-रेख करने वाले व्यक्ति को भी प्राप्त हो जाता है लेकिन दशमी के दो दिनों के बाद ही घर के बगीचे मे एक आनन्दमय उल्लास सा छा गया। गुड़हल के लाल बिन्दों जैसे लटकते फूलों से पेड़ो की झाड़ी भर गयी पीले फूलों वाली लतर गदरा कर खिल गई। पीली आभा चारों ओर फैल कर दिव्य वातावरण बना रही थी। आम के पेड़ों पर असमय ही बौर थे एक मात्र आम को टिकोरा /छोटा फल/ लटक कर शुभ आगमन की सूचना के पट लहरा रहा था। उसके नये कोमल पल्लव पहले ताम्बई, फिर धानी रंग में कुछ अनोखा सौंदर्य बिखेर रहे थे। द्वार पर खड़े दो कदम के पेडों के फूल पीले और हरे लड्डुओं के रूप में हॅंस कर अठखेलिया करते प्रतीत हो रहे थे। लगता था छोटे बच्चों के खेलने के लिये ललचाते टपाटप धरती पर आकर फुदकने लगते। नन्हे मुन्ने बच्चों /कन्याओं की टोली ने/भोजन पर आकर घर आँगन गुलजार कर दिया। सबने खुश होकर भर पेट खाया। तश्तरियाँ ली और भोली मुस्कान से चहकते हुए अपने बारे में जानकारी दी। पता नहीं कैसा अजीब सा पवित्र वातावरण दैनिक अनुभूति सी हो रही थी।
कई वर्षों से उदास निराश मन मे अचानक इक जोत सी जगी घर में मेहमान तो आने ही वाला था। बार-बार विचार आने लगे। अब की सब कुछ बदल दो। दस वर्षों से एक ही रंग बदलवा दों। और समय पर पेन्ट भी आ गया और सब मनचाहा होने लगा। नया बाथरूम, छोटा-सा बेडरूम छोटी-सी पैसेज, मेरी इच्छा है कि किचन का प्रवेश उधर से ही हो। ड्राईंगरूम से नहीं। नीला, हरा, गुलाबी हर कमरे का अलग रंग। बहुत खुशनुमा। कितनी बिलनियों के घर बने, चिडि़यों का झूले पर एक दूसरे को चारा खिलाना, लड़ना झगड़ना चलकना। फाख्ता का सिर उठा कर गर्वीली मुद्रा में चहल-कदमी करना और हाँ प्यारे गुलाबी रंगों के गुलाब के फूलों की लतर जो नारंगी के पेड़ के साथ गले मिलकर फूलों के सखा बन बैठे है। उपर से मानों आशीषों की वर्षा कर रहे हो। फिशपाम के बड़े गमलों ने श्रीमान जी की प्रेरणा पाकर ग्रील के सामने प्रवेश द्वार पर सामने मण्डप सा बना दिया है मानों कुटिया का प्रवेश द्वार अंगूर की लता का किचन की खिड़की के उपर जाकर छा जाना मन को भा रहा था कटिंग-शटिंग के बाउ कोमल पल्लवो का अंगूरी रंग उमंग की हिलोरे मन में जगा रहा था। घर के अन्दर द्वार पर गणेश जी विराज गये। श्री राम लक्ष्मण सीता एवं हनुमान जी, स्वागत कक्ष को भव्य बनाया। न मालूम कौन सी दिव्यात्मा के आने के शुभ संकेत मिल रहे थे पिछले व महीनों से।
24 सितम्बर अष्टमी के दिन अकाएक दिन के 1ः30 बजे फोन की घण्टी घनघना उठी। गुड न्यूज जिसकी आप आशा कर रही थी। वह आ गया एक नन्ही सी परी जादू की छड़ी, फूलों की लडी, खुशियों की शायद इसके आगमन के लिये ही इतनी तैयारियाँ चल रही थी ‘गौरी’ के आगमन के स्वागत का इतना भव्य और आलौकिक आयोजन शुरू हो गई दौड़ धूप, हलचल, गाड़ी चालक नाना नानी बाबा दादी और मामी बुआ की प्यारी दुलारी। बाबा दादी की सुन्दरी-मुन्दरी, सोना-मोना गौरी के आने से गूजने लगा घर आँगन । कमरे की दीवारों की नीली आभा और गौरी के गुलाबी के कपड़ों का काम्बीनेशन में कुछ अधिक ही मोहक लग रहा था।
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