Sunday, March 24, 2013

Shiksha---jeene ki kala

                                                    शिक्षा-जीने की कला
समाज के वर्तमान समय में बच्चों में शिक्षा के प्रति लोगों में एक क्रान्ति की भावना का विकास हुआ है। चली आई हुई वर्तमान शिक्षा पद्धति और उसके प्रभाव ने लोगो को निराश और हतोत्साहित किया है। और जब चारों ओर से सब दरवाजे बन्द दिखाई पड़ते है तो एक नया झरोखा और आशा की किरण, प्रकाश का दीपक प्रस्फुटित हो उठता है। जनमानस उद्विग्न और व्याकुल होकर सोचने लगता है नई दिशाये, नये विचार सिद्धांत बदलाव तथा परिवर्तन। यह परिवर्तन सकारात्मक होता है, उद्देश्यपूर्ण होता है और अनेक लोगों का सामूहिक प्रयास सार्थक होने लगता है। जन समर्थन मिलने लगता है। परिणाम, प्रभाव अपनी पूरी सक्रियता से दिखाई पड़ने लगता है। प्रायः संघर्षों में नये संकल्प बनते है।
आप सबकी चिन्ता का विषय यही है कि शिक्षा में गुणवत्ता का विकास किस प्रकार हो तथा उसके सुधार से वह आज के युवा वर्ग को किस प्रकार सहायता कर सकती है। सही और गलत उचित और अनुचित की पहचान करने में तथा समाज के आस-पास के वातावरण के पति जागरूकता तथा उसे समझने तथा जानने मे।
    शिक्षा हमारे देश में कल के सक्षम नेताओं के विकास करने में कैसे सहायक हो सकती है? ऐसे नेता जो सबको समान रूप् से न्याय दिलाने में समर्थ हो। जो जड़ से जाति -पाति , उच-नीच, गरीब और अमीर के भेद को जड़ से उखड़ फेके और देश को सुरक्षा प्रदान कर प्रगति के पथ पर अग्रसर करें। हमारे सपनों के भारत को मूर्त रूप दे सकें।
नैतिकता का पतन सही गलत अनुचित की सीमा को पार कर जाना। विवके बुद्धि का। यह बताता है कि शिक्षा अपनी गुणवत्ता के प्रभाव को जमा पाने में असफल सी हो रही है। दोष किसे दिया जाय। यह समय इन आलोचनाओं पत्यालोचनाओं का नही है वरन् ठोस कदम उठाने का है। शिक्षा का व्यापक अर्थ है मानवीय संवेदनाओं के साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समुचित विकास छात्रों के सन्दर्भ-कक्षाये उत्तीर्ण करते हुए अंको और डिग्री के प्रशस्तिपत्र किसी को शिक्षित नही बनातें। वह ज्ञान का भण्डार विकसित करते है सूचनाओं को एकत्रित करते है यह भी शिक्षा का एक भाग, अंग है जिसे हम थेओरी  कह सकते है। परन्तु डिग्री वास्तविक शिक्षा में तभी कार्यान्वित /बदलती है/ जब उन सूचनाओं और ज्ञान को हम नित्य प्रति दैनिक जीवन में आवश्यकता पड़ने पर समाज, मनुष्य के कल्याण के लिये इस्तेमाल करने में स्वतंत्र सफल और सक्षम हो। वह तभी सार्थक है। संवेदनाओं के साथ सामाजिक नैतिक आर्थिक रानैतिक सभी क्षेत्रों में उसे लागू कर सके।
यह एक कठिन कार्य अवश्य है। मगर असंभव नहीं। कहा जा सकता है बचपन से जो बच्चों के अन्दर नैतिकता के बीज बोये जाये वो बड़े हेकर पनपेंगे और समाज तथा मानवीय स्तर पर, हर वर्ग को ऊंचा  उठायेगे उसकी जड़े काफी गहरी और मजबूत होगी। है तो बड़ा ही आदर्शात्मक। परन्तु विडम्बना यह है कि ऐसी नयी पौध बढ़ने से पहले ही समाज के तथाकथित महान ठेकेदारों द्वारा कुचल दिये जाते हैं। इससे पहले कि नये स्वच्छ वातावरण का निर्माण वो कर सके वर्तमान जीवन के भ्रम के चकाचैंध में खो जाते है।
      आवश्यकता है कि उन्हे भी युक्तियाँ  मालूम हो कि इस विषम चक्रव्यूह से सफलतापूर्वक निकल कर अपने आदर्शों और सिद्धांतो का परचम लहरा सके। उन्हे अपने आदर्शो पर हर हालत में सफल होकर दिखाना होगा। तभी सारे प्रयास सफल होंगें। सुझाव मात्र यह है कि जिस प्रकार वट वृक्ष की लम्बी जटाये वृक्ष के उपरी भाग से लटक कर जमीन में गहरी मजबूत जड़े बनाती है उसी प्रकार समाज में, घर में परिवार में, कार्यक्षेत्र में, आॅफिस में बाजारों  में उपर-नीचे, अगल-बगल चारों दिशाओं से परिवर्तन की प्रक्रिया क्रियाशील हो एक ही समय में एक ही साथ तो अपेक्षित परिवर्तन होने में समय न लगेगा।
 जिनके पास वर्तमान में यह शक्ति / धन, पद, बल/है उन्हें जाग्रत करना होगा। उन्हें विश्वास कर इस कार्यक्षेत्र के लिये उन्मुख करना कहीं अधिक व्यवहारिक होगा। उसके परिणाम तुरन्त दिखाई पड़ेगे अपेक्षा इसके कि जमीन को खोद कर नीव ही बदली जायें।
सत्यता, इमानदारी, कार्यकुशलता नैतिकता के धनी व्यक्तियों को ढ़ूढ कर अधिक से अधिक संख्या में उजागर किया जाये। मान्यता दी जाये ।तो वही दूसरो के लिये आदर्श और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का विषय और प्रेरक बनेगा सही दिशा में सोचने के लिये लोग बाध्य होने लगेंगे और जब लोगों को इसकी प्रमाणिकता व्यवहारिक जीवन में अधिक से अधिक मिलने लगेगी तो समाज का वातावरण बदलने में समय न लगेगा। यह परिवर्तन उपर-नीचे, बड़े-छोटे, नये पुराने अगल-बगल चारों ओर से होगा और इसके हवा पानी में ये कोमल स्वस्थ नैतिकता के बीज पनपेंगे, विकसित होंगे, लहलहायेंगे और कोई भी भ्रष्टाचार, बेइमानी धोखाधड़ी षड़यंत्र का प्रचण्ड झोंका उन्हें मुरझा नहीं सकेगा।

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