Sunday, January 12, 2014

SAMAAJ MEIN PARIWRTAN


                                                 समाज में परिवर्तन
                                                                              एक दिशा, सोच
    आधुनिक युग में भ्रष्टाचार, बेइमानी, धोखा विश्वासघात और छल-कपट से आगे बढ़ने की मदान्धता तीव्र मदान्धता के चरमोत्कर्ष पर पहँुच जाने पर ही अचानक नैतिक मूल्यों, मानवीय गुणों और धर्म के प्रति लोगों की आसक्ति और मोह अधिक बढ़ चला है। फलस्वरूप अक्सर ही इससे सम्बधित सभाओं, आयोजनों समीतियों का निर्माण हो रहा है गोष्ठियाँ हो रही हैं। धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय अपने-अपने माध्यम से चेतना जगाने का प्रयत्न कर रहे है। लाखों की संख्या में दर्शकश्रोता प्रवचन सुनने और मानसिक संतोष पाने के लिये बेचैन है।
    विभिन्न धर्मों के सुन्दर-सुन्दर सूत्र कागजों पर छपवा कर पं्रेफ्पलेट बाटे जाते है इस बात का हर संभव प्रयास किया जाता है कि बच्चों तथा बड़ों में भी आन्तरिक चेतना का, मानवता का विकास हों। सभी के कार्य और प्रयास प्रशंसनीय है।
    परन्तु इस क्षेत्र में लोगों के अन्र्तचेतना जागरण की प्रक्रिया इतनी मंद है कि कभी-कभी तो निराशा ही होने लगती है किन्तु क्या निराश हुआ जाय! नहीं।
    उस दिन युग निर्माण संस्था के द्वारा आयोजित महायज्ञ आयोजन में निमन्त्रित मित्रों के साथ उपस्थित थी। सामूहिक मंत्रोचारण, हवनकुण्डों से प्रज्वलित अग्नि में लोगों को हवन प्रक्रिया सुगधित पवित्र वातावरण। मन में स्वच्छ व सुन्दर विचार जगा रहे थे। लग रहा था सचमुच ही दुर्भावनायें इस धमराशि में विलीन हो रही है असीमशान्ति दायक
     किन्तु हवन समाप्ति के बाद जैसे ही मै उस ओर बढ़ी जहाँ तरह-तरह की किताबें, कागजों पर लिखे उद्बोधक सूत्र, तस्वीर बिक रही थी हर स्टाल पर खरीदने वालों की देख-देख कर आगे बढ़ रहे थे और यह कहते कुछ संभ्रान्त आगे बढ़ रहे थे’’ दीवालो में चिपाकाकर, दफतरों और कारखानों के बोर्ड मे टाँगकर क्या करेंगे भाई। ये सब बाते आज के जमाने की नहीं है काजल की कोठरी में भी क्या कोई ऐसा टिनोपाल का पुतला टिक सकता है? भाई ऐसा कुछ दीजिए जो हमें व्यवहारिक रूप में सफल बना सके सब तो किताबी है।
     थोड़ी देर के लिये मै उक्त उज्जन को देखती ही रह गई। कितनी विरक्ति ऐसी तिरक्तता? शायद कोई जीवन का कटु देश ही होगा। शायद मध्यम वर्गीय परिवार का मध्यआयु वाला चोट खाया ही कोई होगा जो बड़े लालयित नेत्रों से उन पोस्टरों में कुछ ढ़ूढने की कोशिश कर रहा था। मुझसे रहा नही गया पूछा ही बैठी भाई साहब सब लोग धर्म विश्वास और ईश्वर की ओर बढ़ रहे है और आप---। बातचीत के दौर पता चला वह उच्चपदासीन अफसर थे जिन्होंने घूस लेने से इन्कार किया था। और उस घूस देने वाले करोड़ों के मालिक ने धमकी देते हुये कहा था’’ बड़ी खुशी से पकड़वा दीजिये मुझे और अपने कत्र्तव्य की रक्षा कीजिए। मै आपकों कुछ नहीं करूँगा मगर आप ही के अन्य साथी जिन्होंने इस काम में मेरा साथ दिया हैं इसमें मिले हुये है आपकों जीवित न छोड़ेगे। बात भी सही ही थी। वह उच्च अधिकारी दर-दर ठोकरे खाने के लिये नौकरी से निकल जाने के लिये बाध्य हुये।
     ये कहना कि बचपन से बच्चों के अन्दर नैतिकता के बीज बोये जाये जो बड़े हो कर पनपेंगे और समाज तथा समाज के मानवीय स्तर को ऊँचा उठायेंगे है तो बड़ा आदर्शात्मक उसकी जड़े भी काफी गहरी और मजबूत होगी। परन्तु सत्यता तो यह है कि नये पौधे बढ़ने से पहले ही समाज के कथाकथित महान ठेकेदारों द्वारा कुचल दिये जाते है। इससे पहले कि नये स्वच्छ समाज का निर्माण वे कर सके वे नये जीवन के भ्रम की चकाचैंध में खो जाते है।
    आवश्यकता है कि उन्हे यह भी युक्तियाँ मालूम हो कि इस विषय चक्रव्यूह से सफलतापूर्वक अपने निकल कर आदर्शों का परचम किस प्रकार लहराया जा सकें? उन्हे अपने आदर्शों मंे हर हालत में सफल होकर भ्रष्टाचार को पराजित दिखाना ही होगा। तभी सारे प्रयास सफल होंगे। वैसे जहाँ इस प्रकार के प्रयास कुछ-कुछ स्तर पर जारी शुरू हुये है। वहाँ उनकी सफलता का प्रसार जानकारी कम संख्या में उपलब्ध है। परन्तु सुझाव मात्र है कि जिस प्रकार वटवृक्ष की लम्बी जटाये वृक्ष के ऊँपरी भाग से लटककर जमीन में गहरी वह मजबूत जड़े बनती है उसी प्रकार समाज परिवर्तन की प्रक्रिया ऊँपर नीचे दोनों दिशाओं में क्रियाशील हो, तो अपेक्षित परिवर्तन होने में अधिक समय न लगेगा।
    बड़े-बड़े पूँजीपतियाों कल कारखानों के मालिक चेयर मैन डायरेक्टर जिनके पास यह शक्ति है कि वे किसी के भी भाग्य का वारान्यारा कर सकते है उन्हे जाग्रत करना होगा। उन्हे विश्वास कर इस क्षेत्र के लिये उन्मुख करना कही अधिक व्यवहारिक होगा तथा उसके परिणाम तुरन्त दिखाई देंगे अपेक्षा इसके कि जमीन को खोद कर नींव ही बदली जाये।
    यदि हर मालिक यह निश्चय कर ले कि सत्यता इमानदारी कार्य कुशलता, नैतिकता के धनी व्यक्ति को अपनी-अपनी संस्था से खोज-खोज कर अधिक से अधिक संख्या में उजागर करें मान्यता दे ंतो वहीं अन्य लोगों के लिये आदर्श और ईष्र्या का विषय प्रेरक बनेगा। सही दिशा में सोचने के लिये लाग बाध्य होने लगेगें और जब लोगों को इसकी प्रमाणिकता व्यवहारिक जीवन में अधिक से अधिक मिलने लगेगी तो समाज में परिवर्तन होने में समय न लगेगा। बचपन से लोगों में सही गलत का ज्ञान, मानवीय गुणों, नैतिकता के बीजों का रोपण, समाज में आदर्शों और शाश्वत सत्यों की सफलता और मान्यता यह परिवर्तन ऊपर, नीचे अगल-बगल चाारों-ओर से होगा और इसके हवा, पानी में ये कोमल होंगे लहलहायेंगे और कोई भी भ्रष्टाचार, बेइमानी, षड्यंत्र का प्रचण्ड झोंका उन्हें मुरझा नहीं सकेगा।

   

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