Sunday, February 23, 2014

Swatantra bhaart ---dasha evm disha



                                                       स्वतन्त्रत भारत-दशा एवं दिशा
       भारत के स्वतन्त्रता की कहानी लगातार संघर्ष् अथक प्रयासों और बलिदानों की कहानी हैं। 15 अगस्त 1947 को भारत एक स्वतन्त्र देश घोषित कर दिया गया और उसी दिन से प्रतिवर्ष इसी तिथि पर स्वतन्त्रता दिवस का राष्ट्रीय पर्व मनाया जाता रहा है। यह वह दिवस है जिस दिन अपनी मिली हुई आजादी को बनाये रखने का दृढ़ संकल्प करते है। देश की प्रगति का लेखा जोखा करते है विचार-विमश करते है और फिर से जागरूक व सतर्क रहने के लिये कटिबद्ध होते है कि पुनः किसी गलती या भूल के कारण अनेक संधर्षाें के बाद प्राप्त स्वतन्त्रता को खो न दें।
       आज हम लोग स्वतन्त्रता दिवस की 61वीं वर्षगाँठ मनाने जा रहे है। सभी भारतीयों के मन में यह विश्वास था कि अंग्रेजों की दासता से मुक्त होकर देश प्रगति करेगा, देश प्रगति करेगा, व्यक्ति सुखी सम्पन्न होगा तथा समाज पारम्परिक मूल्यों व संस्कृति को अपनायेगा। नई क्रान्ति के साथ नया समाज और नये विचार देश का सर्वर्तोन्मुखी विकास करेगें। पर स्थिति इसके विपरीत दिखती है।
       यह प्रपंचवाद का युग है, घोटालों का युग है, नारे और विज्ञापनों का युग बन गया है आज एक ऐसी उपभेक्तावादी संस्कृति अपने पैर पसार रही है, जिसने हर वस्तु उपभोग बना दिया है, यहाँ तक कि धरोहर के रूप में मिले उच्च जीवन मूल्यों को भी अवसरवादी मानसिकता, सुविधा भोगी जीवन ने ‘‘भ्रष्टाचार’’ को ‘‘शिष्ट’’ आचार बना दिया है। जिस बदलाव और प्रगति की आकांक्षा थी, वह परिणाम पारिवारिकसामाजिक और राजनैतिक विघटन में दिखाई पड़ता है। आज देश में गाँधी, विनोवा भावे और स्वामी विवेकानन्द जैसे कई कद्दावर नेता नही है जो राष्ट्र को एक नई दिशा दे सकें। क्या यह घोर अनैतिकता नहीं है? कि जिस पद या कुर्सी के लिये हम योग्य नहीं उस पर कूद कर जा बैठे है?
       ऐसे वातावरण व मानसिकता को तभी परिवर्तित किया जा सकता है जब हम शिक्षा द्वारा शाश्वत मूल्यों के महत्व को समाज में स्थापित कर सकें। हर अगली पीढ़ी अपनी पिछली पीढ़ी की अपेक्षा शाश्वत मूल्यों में अपनी आस्था खोती जा रही है। इस मूल्य विहीन होते राष्ट्र को बचाया सकता है केवल मूल्य परक शिक्षा से। जिसे देने का दायित्व परिवार, शिक्षालय व समाज का है।
       परिवार का वातावरण, माता-पिता का आचरण, उनके सौहार्दपूर्ण आपसी सम्बन्ध छोटे बड़े के प्रति उनका सद्व्यवहार पड़ोसियों से अच्छे सम्बन्ध आदि बालक में जीवन मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करते है क्योंकि बाल मस्तिष्क कच्ची मिट्टी के समान होता है उस पर जो आकृति बना दी जाती है वह जीवन पर्यन्त नहीं मिटती।
        इसके बाद विद्यालय की भूमिका आती है। मूल्यों की शिक्षा पुस्तकों व प्रवचनों से छात्र आत्मसात नहीं कर सकते आदर्श को देखना, उसे सुनने की अपेक्षा अधिक विश्वसनींय होता है। इसलिये वह सहज अनुकरणीय बन जाता है। आदर्श शिक्षक अपने कार्य और जीवन शैली से शिक्षार्थी को प्रभावित करता है और वे मूल्य जिन्हें वह शिक्षक स्वयं आत्मसात कर चुका होता है, उन्हें आत्मसात करने के लिये बालकों में इच्छा उत्पन्न कर देता है। यही वास्तविक मूल्य शिक्षा होगी।
        डा0 राधाकृष्णन के शब्दों को मैं उद्धत करना चाहूँगी-
‘‘एजुकेशन इज नाट लीमिटेड टू द इम्पार्टिंग आॅफ इनफारमेशन आॅर  द ट्रेनिंग
 इन स्किल बट इट हैज टू गिव द एजुकेशन इन ए प्राॅपर सेंस आॅफ वैल्यूज’’      
     वाह्य रूप से यदि हम देखें तो इन 60 वर्षों में भौतिक सुख सुविधाओं की उपलब्धियों से आम आदमी का जीवन भले ही बेहेतर हुआ है किन्तु समग्र रूप में व्यक्ति और जीवन शैली में असन्तुलन बढ़ा है जो चिन्ता का विषय है-साकारात्मक सोंच और क्रियाशीलता पर भौतिकता और धन की महत्ता का प्रभाव नकारात्मक दिखाई पड़ने लगा है। विभिन्न आंकड़े यह दरशाते है कि प्रगति कुछ विशिष्ट वर्ग क्षेत्रों और समाज के कुछ स्तरों पर ही हुई है। अधिकतर सामान्य वर्ग के लोग मानसिक तनाव-कुण्ठाओं और दोहरी मानसिकता के दंश को झेलते हुये जी रहे है। उनके जीवन में परिवर्तन आया तो जरूर है मगर वह सुख शान्ति प्रदान करने वाला व प्रशंसनीय नही है।

Mangal kaamnaa


                                                      !!मंगल कामना!!
मंगलमय हो गमन तुम्हारा
जगमग-जगमग पथ आलोकित
होवे जीवन सफल तुम्हारा,
                                                              नई डगर की नई परीक्षा
                                                              नई उमर की, नव अभिलाशा
                                                              कंटकमय पथ, सभी अपरिचित
                                                              कहीं चकित हो भटक न जाना
मंगलमय हो गमन तुम्हारा
जगमग-जगमग पथ आलोकित
होवे जीवन सफल तुम्हारा,
                                                          बाहर की उस चकाचैंध में
                                                          जीवन के उन्मुक्त प्रांगण में
                                                           होना होगा बहुत संतुलित
                                                          तट बन्धों में डूब न जाना
सोच समझ की चंचल मन
में रखना ताकत
जगमग-जगमग पथ आलोकित
होवे जीवन सफल तुम्हारा--                                                                                 स्नेह चन्द्रा                      

Babu aur bil


                                                                       बाबू और बिल
    एक प्राइवेट कम्पनी के सेल्स विभाग में मैं कार्यरत था बिलों को सरकारी दफ्तरों में जमा करना, बिल पास करवाने के लिए बाबुओं और अधिकारियों के ापास जाना, अनुरोध कर चेक प्राप्त करना मेरे लिए, नौकरी को बचाने के लिए जरूरी था। एक बार मैं बहुत परेशान था। बिल जमा किये हुए 20 दिन से अधिक हो चुका था। अधिकरी रोज मुझे बुलाते, बाते करते, और कहते ‘‘आज नहीं। हर बार यही उत्तर पाकर मैं उनके सामने हठ कर बैठ ही गया। उन्हें भी शायद मुझ पर दया आ गयी थी। बोले आप फिर आ गये, हो जायेगा, ‘‘मगर आज नही’’ं। मैने दुख से कहा, सर प्लीज दो लाख का बिल है’’।
      अब आप इतने दिनों से चक्कर लगा रहे है तो आपको बता ही दँू’’ अधिकारी ने कहा
      ‘‘इधर आ जाइये’’ उन्होंने अपनी कुर्सी के बगल में बुलाया और टेबल के तीन दराजों को दिखातें हुए कहा। ‘‘ये देखिये, तीन दराज है? पहला- ‘‘ आज नहीं, ’’ दूसरा अभी नहीं, और सबसे नीचे तीसरा कभी नहीं’’ जिन बिलों के साथ ‘‘कुछ’’ दिया जाता है एडवान्स में। उसी के अनुसार उन्हें इसमें डाल दिया जाता हैं। जो कुछ नही देते उनके बिल ‘कभी’ जो ‘कुछ’ देते है वे अभी नहीं में। तो आपका बिल आज नही के दराज में है। आशा है आप समझ गये होंगे।
       परसेन्टेज (प्रतिशत) के हिसाब से दौ सौ रूपया मैने दिया और दूसरे दिन दो लाख का चेक मेरे हाथ में था।




Hariyaali ke sang jeewan ke rang


                                   हरियाली के संग, जीवन के रंग
    पेड़-पौधे शारीरिक स्वास्थ्य के लिये उपयोगी है वे और उनकी कोमलता और हरापन हमारे जीवन को सुन्दरता से भर देता है। कुछ सुगन्ध फैलाने वाले पौधे और उनकी हरियाली हमारे तन-मन को विभोर कर देती है तो, कुछ पौधे हमें दिन प्रतिदिन की कठोरता से परिचित कराते है।
    अनुसंधान बताते है कि पौधों के बीच रहने और उनमें काम करने से ब्लडप्रेशर कम होता है तनाव घटता है और आदमी सामान्यतः अच्छा महसूस करता है। पेड़-पौधे उगाना चाहे वे सब्जियों के हो या फूलों के , क्रोटन हो या फर्न अपनी विशेषताओं और सुन्दरता से लगभग सब का मन मोह लेते है और एक क्षण के लिये ही सही मुस्कान चेहरे पर आ जाती है।
    घर के अन्दर रखे जाने वाले पौधे हमें एक अवसर प्रदान करते है प्रकृति के साथ रहने का। जब कम हम प्यार से उनकी देखभाल करते है तो बदले मे वे हमें आनन्द देते है जो मनुष्य की स्वाभाविक और सहज भावात्मक आवश्यकता होती है
     कही-कही पर आजकल इन पौधों का उगाना रोगों के उपचार में सहायक मानकर विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे है जैसे ----
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     इनकी योजनाये औषधि के क्षेत्र में वृद्धों और अपंग रोगियों की देखभाल और हास्पिटलों कैंसर के रोगियों, कीमियोथेरेपी के रोगियों के नर्सिंगहोम में स्वास्थ्य लाभ में सहायता मिल सकती है। अगर व्यक्ति थोड़ा सा मानसिक सुकून हरियाली और पेड़-पौधों के बीच महसूस करता है तो शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ हो सकता है।
     इस विचार धारा को मानने वालो का कहना है कि ये पेड़ पौधे किसी न किसी रूप में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन इन्द्रियों को स्पर्श करते है जो थोड़े क्ंउंहमक या कपउपदपेी हो गये है।
      चमकदार चटकीले रंगों वाले फूल या पौधे आँखों को --  या (उत्तेजित) करते है। मिट्टी की सोधी गन्ध, नमी और हल्की महक ( )    हमें सुख और शान्ति का अनुभव कराती है और अच्छा सुखद स्मृतियों को जगाती है।
       पेड़-पौधों को छूना, सहलाना हमें शान्त करता है जब हम उसके साथ होते है। पत्तों को पानी से धोते है, उन्हे नहलाते है भिगाते है या सूखे पत्तों को हटा कर उसे सुन्दर बनाते है तो हमें बहुत अच्छा महसूस होता है। कोमल, सुखद और आनन्ददायक
       यदि कोई बीमार व्यक्ति जब स्वस्थ होने की प्रक्रिया से गुजर रहा होता है तब बगीचे में थोड़ी देर के लिये टहलना, थोड़ी देर हरियाली के बीच बैठना और अपनों के बीच होना उन्हे जल्दी ठीक होने में सहायक होता है। उनकी निराशा, दुख, पीड़ा, थोड़ी कम होती है। सहन कर सकने की शक्ति बढ़ती है।
        ये सब यदि देखा जाय तो पेड़-पौधों के साथ के सकारात्मक प्रभाव है। अपने काम करने के स्थान पर भी हरे-भरे पौधों को गमले में रखा जा सकता है। जो सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते है। वातावरण को आरामदेय आकर्षक और स्वस्थ बनाते है। तथा कार्य क्षमता को बढ़ाते है।
   यही नही पौधे घर के अन्दर के प्रदूषण को भी कम करते है और बेहतर स्वस्थ वातावरण प्रदान करते है। वे अपने पत्तों के माध्यम से प्रदूषित कणों को अपने में निहित कर लेते है और साफ हवा छोड़ते है अपने सहज प्रक्रिया से ही वह हमारे
ॅंेजम चतवकनबजे कार्बनडाई आॅक्साइड को ग्रहण कर लेते है और आॅक्सीजन तथा नमी प्रदान करते है। हरियाली के संग, जीवन के रंग सचमुच ही एक नई स्फूर्ति और ऊर्जा प्रदान करते है इसमें कोई दो राय नहीं।