Sunday, February 23, 2014

Babu aur bil


                                                                       बाबू और बिल
    एक प्राइवेट कम्पनी के सेल्स विभाग में मैं कार्यरत था बिलों को सरकारी दफ्तरों में जमा करना, बिल पास करवाने के लिए बाबुओं और अधिकारियों के ापास जाना, अनुरोध कर चेक प्राप्त करना मेरे लिए, नौकरी को बचाने के लिए जरूरी था। एक बार मैं बहुत परेशान था। बिल जमा किये हुए 20 दिन से अधिक हो चुका था। अधिकरी रोज मुझे बुलाते, बाते करते, और कहते ‘‘आज नहीं। हर बार यही उत्तर पाकर मैं उनके सामने हठ कर बैठ ही गया। उन्हें भी शायद मुझ पर दया आ गयी थी। बोले आप फिर आ गये, हो जायेगा, ‘‘मगर आज नही’’ं। मैने दुख से कहा, सर प्लीज दो लाख का बिल है’’।
      अब आप इतने दिनों से चक्कर लगा रहे है तो आपको बता ही दँू’’ अधिकारी ने कहा
      ‘‘इधर आ जाइये’’ उन्होंने अपनी कुर्सी के बगल में बुलाया और टेबल के तीन दराजों को दिखातें हुए कहा। ‘‘ये देखिये, तीन दराज है? पहला- ‘‘ आज नहीं, ’’ दूसरा अभी नहीं, और सबसे नीचे तीसरा कभी नहीं’’ जिन बिलों के साथ ‘‘कुछ’’ दिया जाता है एडवान्स में। उसी के अनुसार उन्हें इसमें डाल दिया जाता हैं। जो कुछ नही देते उनके बिल ‘कभी’ जो ‘कुछ’ देते है वे अभी नहीं में। तो आपका बिल आज नही के दराज में है। आशा है आप समझ गये होंगे।
       परसेन्टेज (प्रतिशत) के हिसाब से दौ सौ रूपया मैने दिया और दूसरे दिन दो लाख का चेक मेरे हाथ में था।




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