Sunday, June 1, 2014

Apshakun

                                                                    अपशकुन                       
     जब कभी आपका दिन अच्छा बीतता है तो अनायास मन चहक कर सोचने लगता है कि आज किसका मुँह देख कर उठा था कि सब कुछ इतना अच्छा और सफल बीत रहा है। और यदि कहीं सुबह से ही कुछ गड़बड़ होने लगे तो दुखी मन से आह निकल पड़ती है ‘‘न मालूम किस मनहूस का चेहरा देखा था, कौन सा अपशकुन हुआ जो सारा दिन ही बिगड़ गया शकुन और अपशकुन सब मन का भ्रम है। इसी को बताती प्रस्तुत हे एक लघुकथा का व्यंग्य नाट्य रूपान्तर-देखने में छोटी लगे घाव करे गंभीर। विचारों और सोच में उथल-पुथल मचाने वाली, अकबर और बीरबल के माध्यम से उनकी कहानी का नाट्य रूपान्तर अपशकुन।
(कमरे की सजावट- दीवार घड़ी, पलंग पर मखमली पलंगपोश, सिरहाने दोनो तरफ तिपाई पर सुराहीदान, पानी, फूलदान, पलंग के साने पायदान उस पर मखमली जयपूरी जूती। अकबर के गले में मोतियों की माला, कानों में कुण्डल सिल्कन शेरवानी या अचकन, अलीगढ़ी पायजामा पलंग पर लेटे सोने की मुद्रा में लेटे हुये अकबर सुन्दर शान्त शयन कक्ष। परदा खुलता है।
     दीवार की घड़ी ने दस बजाये और उसकी आवाज के साथ ही हड़बड़ कर अकबर उठ बैठे
अकबर (मन ही मन जोर से आँखे मलते हुए अगड़ाई लेकर)
अरे यह क्या। आज तो इतनी देर तक हम सोते ही रह गये? दिन के दस बज गये और पता ही नहीं चला? (चारपाई से उतर कर जूती पहनते है बालों को हाथों से सवारते है) जोर से।
‘‘या खुदा, परवरदिगार! आज मन कुछ उदास और उदास परेशान सा क्यों लग रहा है’’
(उठ कर आगे बढ़ते है सामने मंच की ओर अचानक सामने ही सफाई करने वाले जमादार से आँखे मिलती है।
ज्मादार: (सकपका कर) आदाब बजाता हूँ जहाँपनाह झुककर तीन बार जमीन को छूते हुये सलाम करता है और धीरे-धीरे पीछे खिसकते हुये आँखों से दूर कर मंच से बाहर निकल जाता है।) (नाखुश अकबर जैसे ही वापस पीछे मुुड़ते है कालीन में पैर फँस कर गिरने का अभिनय कर झुझलाते हुए)
अकबर - आज मैने यह किसका चेहरा सुबह-सुबह देख लिया। न जाने यह क्या-क्या दिखायेगा? (अचानक उनका ध्यान अपनी उगलियों पर जाता है आश्चर्य से)
अकबर- अरे मेरी रूबी अगूँूठी! कहाँ गई  (ढ़ूढने का प्रयास करता है)
यह कैसी है दिन की मनहूस शुरूआत!
दूसरा दृृश्य
(कमरे में चुपचाप बैठे हुये, कपड़े बदलते हुये सामने टेबल पर कुछ फल रखे है। अपने ठुढ्ढी को बार-बार सहला रहे है और स्वयं से बात कर रहे है।)
अकबर - नाई ने दाढ़ी बनाते समय उस्तरे से कुछ ज्यादा ही गहरा जख्म (घाव) कर दिया।
(थोड़ा दुखी हो कर चुपचाप फलों की ओर देखते है एक फल को उठा कर काटते है फिर खाते हुयेू अलग रख देते है।
अकबर- छिः कितने बेस्वाद है ये फल! छोड़ कर पुनः टहलते है इधर से उधर
(अचानक दूत का प्रवेश)
दूत- जहा पनाह अत्यन्त दुख की खबर है आपके चचेरे भाई का इन्तकाल हो गया है।‘‘ कह कर एक ओर खड़ा हो जाते है (अकबर सिर पकड़ कर चिल्लाते हुये)
अकबर- दूर हो जाओ मेरी आँखों से, यह तो परेशानियों और दुख का इन्तेहाँ है। बीरबल ------ बीरबल कहाँ है? इसी वक्त बीरबल यहाँ हाजिर हों जाओं ----जाओं  उन्हें मेरे पास भेजों।
(दूत का बाहर निकल जाना और बीरबल का मंच की दूसरी ओर से प्रवेश) बीरबल को देखते ही लगभग चीखते हुये
अकबर- बीरबल! आज का सारा दिन मेरा बड़ा ही मनहूस और परेसानियों से भरा बीता है। हो न हो यह सब उस अभागे का ही बुरा प्रभाव का ही बुरा प्रभाव हो। आज सबसे पहले उस झाड़ू लगाने वाले जमादार को ही मैने देखा और तब से मेरी हर चीज उल्टी-पुल्टी और गलत होती जा रही है। मैं चाहता हूँ उस अपशकुनि मनहूस जमादार को मृत्यु दण्ड दिया जाय। कल सुबह होने से पहले उसका सर धड़ से अलग कर दिया जाये।
बीरबल- जैसी आपकी इच्छा और आज्ञा आलम पनाह! (बीरबल शान्तिपूर्वक कहा और चुपचाप जल्दी से कमरे के बाहर निकल गये।)
(परदा गिरता है नपथ्य से)
जब जमादार को यह पता चलता है कि उसकी मौत इन्तजार कर रही है राजा ने उसे मौत का फरमान सुनाया है (परदा खुलता है। जमादार और बीरबल मंच पर दिखाई देते है।)
जमादार- मेरे प्राणों की रक्षा करें, महाराज मेरे प्राणों की रक्षा करें। मेरी इसमें क्या गलती है? मैने कौन सा अपराध किया है केवल आप ही मुझे जहापनाह के क्रोध से बचा सकते है।
   यदि मैं मर जाऊँगा तो मेरे बाल बच्चों और पत्नी का क्या होगा उन्हें कौन देखेगा? (पैरों को पकड़ कर गिड़गिड़ाता और रोता है)
बीरबल (पैरों से उठाते हुये) अपने आँसुओं को पोंछ डालों। मैं तुम्हो बचाने की पूरी कोशिश करँूगा ।
(परदा गिरता है)
दूसरे दिन राजा का सुबह होने से पहले प्रार्थना करना और खुश तथा शान्त महसूस करना कमरे में शान्त मुद्रा में। खटखटाहट
(बीरबल का प्रवेश)
(बीरबलल को देख कर अचानक राजाज्ञा का याद आना)
अकबर- क्या जमादार के लिये दी गई सजा दी गई? (कुछ दुख के साथ)
बीरबल- सारी तैयारी पूरी हो चुकी है शाह आलम। लेकिन जमादार एक बात को बार-बार कह रहा है मै समझ नही पा रहा हूँ कि क्या किया जाय। मैं कैसे इसका विरोध करूँ जहाँपनाह!
   पहला आदमी जो आपने कल देखा था वह जमादार था आपने उसे अपशकुन समझा और माना और आपका सारा दिन बुरा बीता।
    परन्तु जहाँपनाह, जमादार ने जिस व्यक्ति को सबसे पहले देेखा वह आप थे महाराज! (विनय के साथ झुककर बताते हुये)
     जमादार का मानना है कि आपका चेहरा देखना उसके लिये ज्यादा दुर्भाग्यशाली रहा आपके द्वारा उसका चेहरा देखा जाना वह मौत को गले लगाने जा रहा है उसकी मौत होने वाली है क्योंकि जो सबसे पहला आदमी उसने देखा वह आप ही थे महाराज
   (बीरबल ने अकबर की ओर देखा। वह चुप थे सोच की मुद्रा में गंभीर थे)
बीरबल- देर हो रही है महाराज। क्या मैं मौत देने वाले को अपनी कार्यवाही शुरू करने का आदेश दे दूँ कह दूँ कि अपना काम पूरा करें।
(राजा अकबर अपना हाथ उठा कर रोकते हुये)
अकबर- ठहरो बीरबल मैने अपना विचार और निर्णय बदल दिया है जमादार को जाने दो। वह सही कह रहा है उसके सटीक तर्क ने उसकी जान बचा ली।
     या यह तुम्हारी बुद्धि का कमाल है? आओं बीरबल! ज्यादा भोला बनने की कोशिश मत करो। मै बिल्कुल भी नाराज नहीं हूँ। जमादार से कहो उसके राजा ने उसको माफ कर दिया है।
     तुम्हारी मध्यस्थता के लिये धन्यवाद बीरबल! मैं बहुत खुश हूँ।


                                                               पर्दा गिरता है                                                                                                                                                                                                            

Pachtawa

                                                                      पछतावा                                   
      मन बहुत घबरा रहा है। डा0 की रिपोर्ट आ गई है कुछ अच्छा संकेत नहीं है। बरामदे में बैठी चुपचाप अस्त होते हुयेे सूर्य को देख रही हँू। आकाश में पश्चिम दिशा में लालिमा लिये शान्त वातावरण और पक्षियों का कलरव करते हुये घोसलों पर वापस लौटना खगों की पंक्तियों का एक समूह परिवार की तरह आकाश में उड़ते गन्तव्य की ओर अग्रसर तभी नजर पड़ी एक अकेली चिडि़या पर शायद थोड़ा छूट गई थी। निस्सीम आकाश और और अकेली एक छोटी-सी चिडि़या पंख थक रहे थे अपनों से बिछड़ती आसरे के वृक्ष को खोजती।
     कही यह मैं ही तो नही? मै और मेरी इकलौती बेटी। दिल काँप उठा। व्याकुल होकर बरामदे में टहलने लगी। ओह कुछ टूट रहा है मन डूब रहा है लगता है अब समय नही है। मेरा तो सूरज डूब रहा है। मगर मेरी बेटी तारा उसका क्या होगा कहाँ रहेगी? कैसे? पार होगा उसका जीवन। आर्थिक रूप से समृद्ध भी तो नहीं। 3000 की टीचरी नर्सरी की शिक्षिका। सुख-सुविधाओं में पाली। पानी का एक गिलास तक नही उठवाया। और अब तो आदत भी बिगड़ गई है। अपने आप सोचने, निर्णय लेने की क्षमता तो मैने ही समाप्त कर दी।मैं ही उसके लिये सब सोचती रही। कितना पढ़ना है कौन सा विषय लेना है कैसे जाना है नौकरी नही करने देना है बस-घर, कार, टी0वी0 घर का कमरा और इण्टर नेट। क्रिकेट देखने का शौक पागलो की हद तक। अमिताभ बच्चन फेवरेट उनके ट्विटर फेस बुक पर रहना गिने चुने मित्र न घर पर दोस्तो का आना जाना। बस में ओह मेरी तारा अगर उसकी शादी हो गई और वह पति के घर चली गई तो मरेा क्या होगा। मै तो उसके साथ कभी नही जा सकती। पति की अचानक हार्ट अटैक से मृत्यु के बाद विदेश में बस गये बेटे-बहू के पास जाने का तो प्रश्न ही नही उठता बस तारा हो तारा ही रहेगी साथ यही सोच कर मै रिश्ते की बात तो चलाती इश्तहार देती दरवने दिखाने का उत्साह व नाटक देखाती बक्सी के बक्से कपडे़ खरीद कर जमा करती दिया नई-नई डिजाइनों के गहने से लाकर भी भर दिया ताकि उसे यही लगे की मै उसकी शादी और घर बसाने के लिये चिन्तित हूँ लड़के ढ़ूढ़ रही हूँ और बीच-बीच मे यह भी कहती हूँ कि अगर तुम्हेू कोई पसन्द हो तो बताओं कर दूँगी। मगर किसी से मिलने-जुलने पर सख्त पाबन्दी मेरी ही लगी रहती। किसी का फोन आता तो दूसरे कमरे में दरवाजे से सटकर सुनती कसी लड़के का तो नही। और परेशान हो जाती कि अगर किसी को पसन्द कर लिया शादी की जिद कर बैठी तो-----? हर तरह से असुरक्षित मैं कुण्डली मिलाने घर परिवार को देखने के कार्यों को तेजी कर देती। लेकिन मै जानती थी यह मेरी सान्तवना थी तारा के लिये, मेरा कनर्सन दिखाने का।
          40 की उम्र पार हो गई। अब क्या शादी होगी। समय निकल गया। अब तो समझौते की होगी शादी। बच्चो और परिवार बढ़ाने का तो प्रश्न ही नहीं उठेगा। जब से मेरी बीमारी की रिपोर्ट आई है उसे भी गुम-सुम चुप देख रही हैं। उसके मन मं क्या चल रहा होग मैं सोच पा रही हूँ पैसा तो बैंक से भरपूर है पर न रहने पर जायेगी कहाँ जायेीगी? रहेगी कहाँ? भाई-भाभी के जीवन में अनचाहे बोझ की तरह। पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं। हाय मेरी तारा। मेरी बच्ची मैने यह क्या किया? एक भाई वह भी इतनी दूर। जब तक हाथ पैर चलेंगे तब तक तो ठीक मगर कही कुछ वृद्धावस्था की बीमारी? 
   कब तारा पीछे आकर खड़ी हो गई गले में हाथ डाल कर बोली क्यों उदास हो माँ मैं जानती हूँ तुम क्या सोच रही हो मत चिन्ता करो। मै ठीक हूँ काम करती हूँ घर तो तुमने मेरे लिये कर ही दिया है। बीमार पड़ुँगी तो आस पड़ोस कोई न कोई हास्पीटल पहुँचा ही देगा। क्या अकेले कोई रहता नहीं। अकेले तो होना ही है सब अकेले है माँ। मुझमें साहस है मैं जी लूँगी। चलो तुमको दवा खिला दूँ।

Tumhara Path Ujjawl Hai

                                                              तुम्हारा पथ उज्जवल है            
हम तो बीते, रीते, रीते
काँटे चुनते, राह बनाते
धीरे-धीरे आ पहुँचे--
अब इस पड़ाव पर
आने वालों! बढ़ते आओ,
                                 निर्भय होकर, पुलकित होकर
                                पद चिन्हों का आश्रय लेकर
                                और उन्हें कुछ सुगम बनाकर
                                तन-मन हर्षित है, आलोकित,
                                और तुम्हारा पथ उज्जवल है।
मार्ग अगर है टेढ़ा-मेढ़ा
ऊँचा-नीचा फिर अति ऊँचा
स्ंकरा, पतला चौड़ा फैला
या------ अति गहरा
शिथिल हुये तुम थक जाते हो
                                ठहरो, पल भर कुछ सुस्तालों
                                देखो मनोरम चिन्ताहारक हारक
                                दृश्य चतुर्दिक बहते झरनों की
                                किलकारी, पशु, पक्षी कलरव
                                कोलाहल, कही छाँव में--
                                सोचो प्यारों, पलभर सोचों
नई ऊर्जा भरकर खुद में
नई मानसिकता का आसव
दृढ़ हो भय डर कैसा अरे
 आत्मा विश्वासी मानव हो
तुम वीर साहसी------
और तुम्हारा पथ उज्जवल है।
                               जगह-जगह सेकेत बनाते
                               चलते-चलते चलना जीवन
                               जूझ-जूझ कर जीना जीवन
                               औरो के हित जीना जीवन
                               मेरा तो गन्तव्य यहीं तक
आगे हमसे राह बनाना
काम तुम्हारा लक्ष्य तुम्हारा 
इसी तरह चलता जायेगा
जीवन पथ बढ़ता जायेगा
                              और-और कुछ और---
                              हजारों वर्ष बनेगे
                              हम न रहेंगे तुम न रहोगे
                              आना जाना लगा रहेगा
                              पथ का कोई अन्त न होगा
महाजनों का नाम रहेगा
पदचिन्हों का शेष रहेगा
इसी लिये कुछ ऐसा करदो
रह जाये बस नाम तुम्हारा
नाम तुम्हारा, पथ उज्जवल है
                                                  स्नेह चन्द्रा