अपशकुन
जब कभी आपका दिन अच्छा बीतता है तो अनायास मन चहक कर सोचने लगता है कि आज किसका मुँह देख कर उठा था कि सब कुछ इतना अच्छा और सफल बीत रहा है। और यदि कहीं सुबह से ही कुछ गड़बड़ होने लगे तो दुखी मन से आह निकल पड़ती है ‘‘न मालूम किस मनहूस का चेहरा देखा था, कौन सा अपशकुन हुआ जो सारा दिन ही बिगड़ गया शकुन और अपशकुन सब मन का भ्रम है। इसी को बताती प्रस्तुत हे एक लघुकथा का व्यंग्य नाट्य रूपान्तर-देखने में छोटी लगे घाव करे गंभीर। विचारों और सोच में उथल-पुथल मचाने वाली, अकबर और बीरबल के माध्यम से उनकी कहानी का नाट्य रूपान्तर अपशकुन।
(कमरे की सजावट- दीवार घड़ी, पलंग पर मखमली पलंगपोश, सिरहाने दोनो तरफ तिपाई पर सुराहीदान, पानी, फूलदान, पलंग के साने पायदान उस पर मखमली जयपूरी जूती। अकबर के गले में मोतियों की माला, कानों में कुण्डल सिल्कन शेरवानी या अचकन, अलीगढ़ी पायजामा पलंग पर लेटे सोने की मुद्रा में लेटे हुये अकबर सुन्दर शान्त शयन कक्ष। परदा खुलता है।
दीवार की घड़ी ने दस बजाये और उसकी आवाज के साथ ही हड़बड़ कर अकबर उठ बैठे
अकबर (मन ही मन जोर से आँखे मलते हुए अगड़ाई लेकर)
अरे यह क्या। आज तो इतनी देर तक हम सोते ही रह गये? दिन के दस बज गये और पता ही नहीं चला? (चारपाई से उतर कर जूती पहनते है बालों को हाथों से सवारते है) जोर से।
‘‘या खुदा, परवरदिगार! आज मन कुछ उदास और उदास परेशान सा क्यों लग रहा है’’
(उठ कर आगे बढ़ते है सामने मंच की ओर अचानक सामने ही सफाई करने वाले जमादार से आँखे मिलती है।
ज्मादार: (सकपका कर) आदाब बजाता हूँ जहाँपनाह झुककर तीन बार जमीन को छूते हुये सलाम करता है और धीरे-धीरे पीछे खिसकते हुये आँखों से दूर कर मंच से बाहर निकल जाता है।) (नाखुश अकबर जैसे ही वापस पीछे मुुड़ते है कालीन में पैर फँस कर गिरने का अभिनय कर झुझलाते हुए)
अकबर - आज मैने यह किसका चेहरा सुबह-सुबह देख लिया। न जाने यह क्या-क्या दिखायेगा? (अचानक उनका ध्यान अपनी उगलियों पर जाता है आश्चर्य से)
अकबर- अरे मेरी रूबी अगूँूठी! कहाँ गई (ढ़ूढने का प्रयास करता है)
यह कैसी है दिन की मनहूस शुरूआत!
दूसरा दृृश्य
(कमरे में चुपचाप बैठे हुये, कपड़े बदलते हुये सामने टेबल पर कुछ फल रखे है। अपने ठुढ्ढी को बार-बार सहला रहे है और स्वयं से बात कर रहे है।)
अकबर - नाई ने दाढ़ी बनाते समय उस्तरे से कुछ ज्यादा ही गहरा जख्म (घाव) कर दिया।
(थोड़ा दुखी हो कर चुपचाप फलों की ओर देखते है एक फल को उठा कर काटते है फिर खाते हुयेू अलग रख देते है।
अकबर- छिः कितने बेस्वाद है ये फल! छोड़ कर पुनः टहलते है इधर से उधर
(अचानक दूत का प्रवेश)
दूत- जहा पनाह अत्यन्त दुख की खबर है आपके चचेरे भाई का इन्तकाल हो गया है।‘‘ कह कर एक ओर खड़ा हो जाते है (अकबर सिर पकड़ कर चिल्लाते हुये)
अकबर- दूर हो जाओ मेरी आँखों से, यह तो परेशानियों और दुख का इन्तेहाँ है। बीरबल ------ बीरबल कहाँ है? इसी वक्त बीरबल यहाँ हाजिर हों जाओं ----जाओं उन्हें मेरे पास भेजों।
(दूत का बाहर निकल जाना और बीरबल का मंच की दूसरी ओर से प्रवेश) बीरबल को देखते ही लगभग चीखते हुये
अकबर- बीरबल! आज का सारा दिन मेरा बड़ा ही मनहूस और परेसानियों से भरा बीता है। हो न हो यह सब उस अभागे का ही बुरा प्रभाव का ही बुरा प्रभाव हो। आज सबसे पहले उस झाड़ू लगाने वाले जमादार को ही मैने देखा और तब से मेरी हर चीज उल्टी-पुल्टी और गलत होती जा रही है। मैं चाहता हूँ उस अपशकुनि मनहूस जमादार को मृत्यु दण्ड दिया जाय। कल सुबह होने से पहले उसका सर धड़ से अलग कर दिया जाये।
बीरबल- जैसी आपकी इच्छा और आज्ञा आलम पनाह! (बीरबल शान्तिपूर्वक कहा और चुपचाप जल्दी से कमरे के बाहर निकल गये।)
(परदा गिरता है नपथ्य से)
जब जमादार को यह पता चलता है कि उसकी मौत इन्तजार कर रही है राजा ने उसे मौत का फरमान सुनाया है (परदा खुलता है। जमादार और बीरबल मंच पर दिखाई देते है।)
जमादार- मेरे प्राणों की रक्षा करें, महाराज मेरे प्राणों की रक्षा करें। मेरी इसमें क्या गलती है? मैने कौन सा अपराध किया है केवल आप ही मुझे जहापनाह के क्रोध से बचा सकते है।
यदि मैं मर जाऊँगा तो मेरे बाल बच्चों और पत्नी का क्या होगा उन्हें कौन देखेगा? (पैरों को पकड़ कर गिड़गिड़ाता और रोता है)
बीरबल (पैरों से उठाते हुये) अपने आँसुओं को पोंछ डालों। मैं तुम्हो बचाने की पूरी कोशिश करँूगा ।
(परदा गिरता है)
दूसरे दिन राजा का सुबह होने से पहले प्रार्थना करना और खुश तथा शान्त महसूस करना कमरे में शान्त मुद्रा में। खटखटाहट
(बीरबल का प्रवेश)
(बीरबलल को देख कर अचानक राजाज्ञा का याद आना)
अकबर- क्या जमादार के लिये दी गई सजा दी गई? (कुछ दुख के साथ)
बीरबल- सारी तैयारी पूरी हो चुकी है शाह आलम। लेकिन जमादार एक बात को बार-बार कह रहा है मै समझ नही पा रहा हूँ कि क्या किया जाय। मैं कैसे इसका विरोध करूँ जहाँपनाह!
पहला आदमी जो आपने कल देखा था वह जमादार था आपने उसे अपशकुन समझा और माना और आपका सारा दिन बुरा बीता।
परन्तु जहाँपनाह, जमादार ने जिस व्यक्ति को सबसे पहले देेखा वह आप थे महाराज! (विनय के साथ झुककर बताते हुये)
जमादार का मानना है कि आपका चेहरा देखना उसके लिये ज्यादा दुर्भाग्यशाली रहा आपके द्वारा उसका चेहरा देखा जाना वह मौत को गले लगाने जा रहा है उसकी मौत होने वाली है क्योंकि जो सबसे पहला आदमी उसने देखा वह आप ही थे महाराज
(बीरबल ने अकबर की ओर देखा। वह चुप थे सोच की मुद्रा में गंभीर थे)
बीरबल- देर हो रही है महाराज। क्या मैं मौत देने वाले को अपनी कार्यवाही शुरू करने का आदेश दे दूँ कह दूँ कि अपना काम पूरा करें।
(राजा अकबर अपना हाथ उठा कर रोकते हुये)
अकबर- ठहरो बीरबल मैने अपना विचार और निर्णय बदल दिया है जमादार को जाने दो। वह सही कह रहा है उसके सटीक तर्क ने उसकी जान बचा ली।
या यह तुम्हारी बुद्धि का कमाल है? आओं बीरबल! ज्यादा भोला बनने की कोशिश मत करो। मै बिल्कुल भी नाराज नहीं हूँ। जमादार से कहो उसके राजा ने उसको माफ कर दिया है।
तुम्हारी मध्यस्थता के लिये धन्यवाद बीरबल! मैं बहुत खुश हूँ।
पर्दा गिरता है
जब कभी आपका दिन अच्छा बीतता है तो अनायास मन चहक कर सोचने लगता है कि आज किसका मुँह देख कर उठा था कि सब कुछ इतना अच्छा और सफल बीत रहा है। और यदि कहीं सुबह से ही कुछ गड़बड़ होने लगे तो दुखी मन से आह निकल पड़ती है ‘‘न मालूम किस मनहूस का चेहरा देखा था, कौन सा अपशकुन हुआ जो सारा दिन ही बिगड़ गया शकुन और अपशकुन सब मन का भ्रम है। इसी को बताती प्रस्तुत हे एक लघुकथा का व्यंग्य नाट्य रूपान्तर-देखने में छोटी लगे घाव करे गंभीर। विचारों और सोच में उथल-पुथल मचाने वाली, अकबर और बीरबल के माध्यम से उनकी कहानी का नाट्य रूपान्तर अपशकुन।
(कमरे की सजावट- दीवार घड़ी, पलंग पर मखमली पलंगपोश, सिरहाने दोनो तरफ तिपाई पर सुराहीदान, पानी, फूलदान, पलंग के साने पायदान उस पर मखमली जयपूरी जूती। अकबर के गले में मोतियों की माला, कानों में कुण्डल सिल्कन शेरवानी या अचकन, अलीगढ़ी पायजामा पलंग पर लेटे सोने की मुद्रा में लेटे हुये अकबर सुन्दर शान्त शयन कक्ष। परदा खुलता है।
दीवार की घड़ी ने दस बजाये और उसकी आवाज के साथ ही हड़बड़ कर अकबर उठ बैठे
अकबर (मन ही मन जोर से आँखे मलते हुए अगड़ाई लेकर)
अरे यह क्या। आज तो इतनी देर तक हम सोते ही रह गये? दिन के दस बज गये और पता ही नहीं चला? (चारपाई से उतर कर जूती पहनते है बालों को हाथों से सवारते है) जोर से।
‘‘या खुदा, परवरदिगार! आज मन कुछ उदास और उदास परेशान सा क्यों लग रहा है’’
(उठ कर आगे बढ़ते है सामने मंच की ओर अचानक सामने ही सफाई करने वाले जमादार से आँखे मिलती है।
ज्मादार: (सकपका कर) आदाब बजाता हूँ जहाँपनाह झुककर तीन बार जमीन को छूते हुये सलाम करता है और धीरे-धीरे पीछे खिसकते हुये आँखों से दूर कर मंच से बाहर निकल जाता है।) (नाखुश अकबर जैसे ही वापस पीछे मुुड़ते है कालीन में पैर फँस कर गिरने का अभिनय कर झुझलाते हुए)
अकबर - आज मैने यह किसका चेहरा सुबह-सुबह देख लिया। न जाने यह क्या-क्या दिखायेगा? (अचानक उनका ध्यान अपनी उगलियों पर जाता है आश्चर्य से)
अकबर- अरे मेरी रूबी अगूँूठी! कहाँ गई (ढ़ूढने का प्रयास करता है)
यह कैसी है दिन की मनहूस शुरूआत!
दूसरा दृृश्य
(कमरे में चुपचाप बैठे हुये, कपड़े बदलते हुये सामने टेबल पर कुछ फल रखे है। अपने ठुढ्ढी को बार-बार सहला रहे है और स्वयं से बात कर रहे है।)
अकबर - नाई ने दाढ़ी बनाते समय उस्तरे से कुछ ज्यादा ही गहरा जख्म (घाव) कर दिया।
(थोड़ा दुखी हो कर चुपचाप फलों की ओर देखते है एक फल को उठा कर काटते है फिर खाते हुयेू अलग रख देते है।
अकबर- छिः कितने बेस्वाद है ये फल! छोड़ कर पुनः टहलते है इधर से उधर
(अचानक दूत का प्रवेश)
दूत- जहा पनाह अत्यन्त दुख की खबर है आपके चचेरे भाई का इन्तकाल हो गया है।‘‘ कह कर एक ओर खड़ा हो जाते है (अकबर सिर पकड़ कर चिल्लाते हुये)
अकबर- दूर हो जाओ मेरी आँखों से, यह तो परेशानियों और दुख का इन्तेहाँ है। बीरबल ------ बीरबल कहाँ है? इसी वक्त बीरबल यहाँ हाजिर हों जाओं ----जाओं उन्हें मेरे पास भेजों।
(दूत का बाहर निकल जाना और बीरबल का मंच की दूसरी ओर से प्रवेश) बीरबल को देखते ही लगभग चीखते हुये
अकबर- बीरबल! आज का सारा दिन मेरा बड़ा ही मनहूस और परेसानियों से भरा बीता है। हो न हो यह सब उस अभागे का ही बुरा प्रभाव का ही बुरा प्रभाव हो। आज सबसे पहले उस झाड़ू लगाने वाले जमादार को ही मैने देखा और तब से मेरी हर चीज उल्टी-पुल्टी और गलत होती जा रही है। मैं चाहता हूँ उस अपशकुनि मनहूस जमादार को मृत्यु दण्ड दिया जाय। कल सुबह होने से पहले उसका सर धड़ से अलग कर दिया जाये।
बीरबल- जैसी आपकी इच्छा और आज्ञा आलम पनाह! (बीरबल शान्तिपूर्वक कहा और चुपचाप जल्दी से कमरे के बाहर निकल गये।)
(परदा गिरता है नपथ्य से)
जब जमादार को यह पता चलता है कि उसकी मौत इन्तजार कर रही है राजा ने उसे मौत का फरमान सुनाया है (परदा खुलता है। जमादार और बीरबल मंच पर दिखाई देते है।)
जमादार- मेरे प्राणों की रक्षा करें, महाराज मेरे प्राणों की रक्षा करें। मेरी इसमें क्या गलती है? मैने कौन सा अपराध किया है केवल आप ही मुझे जहापनाह के क्रोध से बचा सकते है।
यदि मैं मर जाऊँगा तो मेरे बाल बच्चों और पत्नी का क्या होगा उन्हें कौन देखेगा? (पैरों को पकड़ कर गिड़गिड़ाता और रोता है)
बीरबल (पैरों से उठाते हुये) अपने आँसुओं को पोंछ डालों। मैं तुम्हो बचाने की पूरी कोशिश करँूगा ।
(परदा गिरता है)
दूसरे दिन राजा का सुबह होने से पहले प्रार्थना करना और खुश तथा शान्त महसूस करना कमरे में शान्त मुद्रा में। खटखटाहट
(बीरबल का प्रवेश)
(बीरबलल को देख कर अचानक राजाज्ञा का याद आना)
अकबर- क्या जमादार के लिये दी गई सजा दी गई? (कुछ दुख के साथ)
बीरबल- सारी तैयारी पूरी हो चुकी है शाह आलम। लेकिन जमादार एक बात को बार-बार कह रहा है मै समझ नही पा रहा हूँ कि क्या किया जाय। मैं कैसे इसका विरोध करूँ जहाँपनाह!
पहला आदमी जो आपने कल देखा था वह जमादार था आपने उसे अपशकुन समझा और माना और आपका सारा दिन बुरा बीता।
परन्तु जहाँपनाह, जमादार ने जिस व्यक्ति को सबसे पहले देेखा वह आप थे महाराज! (विनय के साथ झुककर बताते हुये)
जमादार का मानना है कि आपका चेहरा देखना उसके लिये ज्यादा दुर्भाग्यशाली रहा आपके द्वारा उसका चेहरा देखा जाना वह मौत को गले लगाने जा रहा है उसकी मौत होने वाली है क्योंकि जो सबसे पहला आदमी उसने देखा वह आप ही थे महाराज
(बीरबल ने अकबर की ओर देखा। वह चुप थे सोच की मुद्रा में गंभीर थे)
बीरबल- देर हो रही है महाराज। क्या मैं मौत देने वाले को अपनी कार्यवाही शुरू करने का आदेश दे दूँ कह दूँ कि अपना काम पूरा करें।
(राजा अकबर अपना हाथ उठा कर रोकते हुये)
अकबर- ठहरो बीरबल मैने अपना विचार और निर्णय बदल दिया है जमादार को जाने दो। वह सही कह रहा है उसके सटीक तर्क ने उसकी जान बचा ली।
या यह तुम्हारी बुद्धि का कमाल है? आओं बीरबल! ज्यादा भोला बनने की कोशिश मत करो। मै बिल्कुल भी नाराज नहीं हूँ। जमादार से कहो उसके राजा ने उसको माफ कर दिया है।
तुम्हारी मध्यस्थता के लिये धन्यवाद बीरबल! मैं बहुत खुश हूँ।
पर्दा गिरता है
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