Thursday, March 25, 2010

मेरी गौरैया

मेरे घर उपवन में ,फूलों में ,और
पौधों के बीच ,झूले पर झूलते ,
गौरैये के झुण्ड को मैं ,
अक्सर देखती हूँ .मेरी बेटी ,
मेरी सों न चिरैया ---
मुझे तुम बहुत बहुत याद आती हो ,
मैं जानतीं हूँ तुम दूर बहुत दूर
सात समुन्दर पार ,
ऐसे ही अपने उपवन में
फूलों से घिरी सोच रही ,होगी
बीते दिनों की यादों में , खोई
बचपन के दिन खोज रही होगी
ओह कितना प्यारा है यह कलरव ,
मेरे घर आँगन में .मेरे उपवन में
ये रुनझुन ये गुनगुन , ,मेरी बेटी
hमेरी सोनचिरैया ,मेरी गौरैया .

4 comments:

namitaverma said...

Well written. A poem full of nostalgia, sensitivity and childhood memories.
Namita Verma

Unknown said...

Lovely poem. It comes and caresses like a whiff of cool breeze on a hot summer evening.
- P K Verma

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

farhan said...

very thoughtful the poem is
bahut khub

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posted by farhan