भारत के स्वतन्त्रता की कहानी लगातार संघर्ष ,अथक प्रयासों ,एवं बलिदानों की कहानी है. पन्द्रह अगस्त को भारतएकस्वतंत्र देश घोषित कर दिया गया .अऔर उसी दिन से प्रति वर्ष हम अपनी मिली हुई आजादी को बनाए रखने का संकल्प करते हैं . देश की प्रगति का लेखा- जोखा करतें हैं . विचार विमर्श करतें हैं . अऔर फिर से जागरूक व सतर्क रहने के लिए तैयार होतें हैं.की फिर किसी गलती या भूल के कारण अनेक संघर्षों के बाद मिली आजादी को खो न दें . आजादी को मिले इकसठ साल पूरे होने जा रहें हैं सभी भारतीयों के ।मन में यह विश्वास था की अंग्रेजों की दासता से मुक्त होकर देश प्रगति करेगा. आदमी सुखी अऔर संपन्न होगा तथा समाज पारंपरिक मूल्यों और संस्कृति को अपनाएगा .नईक्रान्ति के साथ नया समाज और नए विचार देश का बहुमुखी विकास करेगें .पर स्तिथी इसके विपरीत दिखती है ।
यह प्रपंचवाद का युग है ,घोटालों का युग है, नारे और विज्ञापनों का युग बन गया है .आज एक ऎसी उपभोक्तावादी संस्कृति अपने पैर पसार रही है जिसने हर वस्तु को उपभोग बना दिया है .यहाँ तक की धरोहर के रूप में मिले उच्च जीवन मूल्यों को भी अवसरवादी मानसिकता , सुविधा भोगी जीवन ने " भ्रष्टाचार " को "शिष्ट" आचार बना दिया है. जिस बदलाव और प्रगति की आकांशा थी वह परिणाम पारिवारिक, सामाजिक, और राजनीतिक विघटन में दिखाई पड़ता है.आज देश में गांधी,विनोबा भावे ,और स्वामी विवेकानंद जैसे कोई कद्दावर नेता नहीं हैं जो राष्ट्र को एक नई दिशा दे सकें .क्या यह घोर अनैतिकता नहीं है ?की जिस पदवी या कुर्सी के लिए हम योग्य नहीं हैं उस पर कूद कर जा बैठें हैं?
Wednesday, March 17, 2010
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