Sunday, March 30, 2014

GHAR KA BHEDI

                                                                   घर का भेदी
      जाडे़ के दिनों में मार्निग वाक्  का नियमित समय सुबह 5ः30 का न होकर कब और कैसे सात बजे का हो गया कुछ पता ही न चलाए, शायद कोहरा और ठंड की वजह से, तेजी से कदम बढ़ाते-बढ़ाते जगह-जगह पर कुछ घर में काम करने वालियों का झुण्ड मीटिंग करते हुये दिखा। छोटी-बड़ी बूढ़ी युवतियाँ हर तरह की वेशभूषा, हर रंग की सजधज सड़क पर अभी आवागमन शुरू नहीं हुआ था बस यही कुछ लोग दिख रहे थे और जोर-जोर से बातचीत सुनाई पड़ रही थी।
    मुझे याद आ गई दीपावली के अवसर पर उत्तर भारत में मनाई जाने वाली भाई दूज के अवसर पर कही जाने वाली एक लोक कथा जिसमें एक कुएँ  के जगत पर हर घर में जलाई जाने वाली दिये इकठ्ठे होती है अपने-अपने घर के मालिक-मालकिन की, परिवार के दुख-सुख की बाते एक दूसरे से शेयर करती है। शायद ऐसा ही कुछ यहाँ भी था। सभी कामवालियाँ अपने-अपने घरों का कच्चा चिट्टा खोलने में मगन थी। उपहास व्यंग्यों के, अपशब्द, प्रशंसा सभी प्रकार के शब्दों के बाण चल रहे थे।
     मेरी चाल स्वतः ही धीमी हो गई। तरह-तरह की बातें, सुनाई पड़ रही थी ये जब हर घर की ब्रॉडकास्टिंग  रेडियो स्टेशन है। जो चीजे, बाते कोई नहीं जानता वो ये जानती है और जगह जाहिर करती है अतः प्रत्येक परिवार को अपनी प्राइवेसी बनाये रखने के लिये अपने व्यवहार बात चीत संतुलित ही रखने  चाहिए इसी में भलाई है।

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