शब्द और उसका प्रभाव
‘‘शब्द एक शक्ति हैं’’। हाँ सामान्य नही- इसे दैवीशक्ति कहा जा सकता है। ये ‘‘शब्द’’ मनुष्य के विचारों के कम्पन से जाग्रत होते है, और विचार सम्बन्धित होते है चेतना या आत्मा से’’।
मनुष्य जो कुछ भी बोलता है उसका प्रभाव कितना गहरा और सजीव होगा यह निर्भर करता है कि मन के कितनी गहरी सच्चाई से वह कहा गया है। अधिकवाचालता, बिना सोचे समझे कुछ भी कह देना, शब्दों की महत्ता को कम कर देता है शब्दों का बोलना यदि ‘‘आत्मिक शक्ति’’ से पूर्ण न हो, तो व्यर्थ और प्रभावहीन है। इसलिए कबीरदास के सहज अनुभूत विचारों को इस दोहे में देखा जा सकता है।
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय
औरन को शीतल करें, आपँहु शीतल होय।।
यही नही, वाणी शब्दों का प्रस्तुतीकरण अगर कहीं आपके बिगड़े काम को अनायास ही बना सकता है तो कभी बने हुये काम को पूरा होते-होते भी बिगाड़ सकता है। खूब सोच समझ कर हृदय रूपी तराजू पर तौल कर ही शब्दों को मुख से बाहर निकालना चाहिए। इस ‘‘राम बाण औषधि’’ और समस्याओं का समाधान करने वाले के रूप में ‘‘शब्द’’ को देखा जा सकता है। कहा भी गया है-
वाणी एक अमोल है, जो कोई बोले जानि,
हिये तराजू तौल कर, तब मुख बाहर आनि।।
इसके लिये धैर्य, सावधान और सचेत रहने की जरूरत होती है। प्रायः लोग अपनी धुन में, अहंकार में, जो मन मेें आया बोल देते है, कह जाते हैं। यह नहीं समझ पाते कि इसका क्या प्रभाव सुनने वाले पर पड़ेगा। जीभ तो कुछ सोच समझ नहीं सकती, वह तो सिर्फ बोलना जानती है सोचने का काम तो दिमाग, बुद्धि करती है। जीभ तो कुछ भी उल्टा बोली, उन शब्दों के प्रभाव से उस व्यक्ति को अपमानित होना पड़ता है सिर पर जूते पड़ते है। इसलिए कहा गया है
जिह्वा ऐसी बाबरी, कह गई सरग-पताल
आप तो कह भीतर भई, जूती खात कपाल।।
ये तो है सामाजिक व्यवहार और प्रभाव शब्दों का सही उच्चारण, विश्वास, सिन्सीयेरिटी, कविक्शन और इन्टयूशन, से भी कहे गये शब्दों का कम्पन या तीव्रता बमों की तरह विपल्वकारी होता है जो जब फेका जाता है तो बड़ी से बड़ी चट्टानों को भी चूर-चूर कर देता है विनाशकारी होता है।
ईश्वर ने हमको इच्छाशक्ति, और विश्वास दिया है एकाग्रता दी है, सामान्य ज्ञान, सूझ-बूझ दी है। हमे इन शक्तियों का प्रयोग शब्द बोलते समय करना चाहिए।
सद्भावना, प्यार, साकारात्मकता, और दृढ़ता के साथ जब हम किसी शब्द को बोलते है तो वही मन की योग्यता को प्राप्त कर लेता है। एक बिन्दू या शब्द या वर्ण में समाहित शक्ति विस्फोट के समान प्रभावशाली बन जाती है। इस प्रकार सकारात्मक व नकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत शब्द का प्रभाव सृष्टि (या रचना) और नाश दोनों के लिये हो सकता है।