Sunday, December 29, 2013

PATHAKON SE


अपने पाठकों से-
                                                                      मन की बात
     वर्षों से छात्र-छात्राओं के बीच पठन-पाठन से जुड़े रहने के कारण कहानियों, कविताओं, शिक्षण सम्बन्धी समसयाओं तथा उनके व्यवहारिक सुझाव देने में, पढ़ने लिखने में बच्चों और अभिभावकों की आने वाली कठिनाइयों के सरल समाधान देकर उन्हें आगें बढ़ा सकने में सहायता की रूचि ही मेरे लेखन की प्रेरणा रही है।
      बाल आवस्था से संवेदनशील किशोर और किशोर से कर्मठ युवा में विकासित होते बच्चे ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। उन्हें बहुत करीब से देखने का मुझे मौका मिला है। मैं स्वयं को उनसे जुड़ा महसूस करती हूँ और उनके बारे में सोचना तथा लिखना मुझे अच्छा लगता है।
      दौड़ती भागती दुनियाँ, एकल होते परिवार हैरान परेशान माता-पिता, गिरते नैतिक मूल्यों, पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण एक ऐसी ‘‘अपसंस्कृति’’ को जन्म दे रहा है जहाँ नई पीढ़ी हतप्रभ है ओर पुरानी दुखी और बेबस (शौक्ड)। क्या करे कैसे सन्तुलन करे जब अपने सिद्धांतों विचारों का व्यवहारिक फल (पक्ष) कार्य रूप में उभर कर सामने आता है तो नई पीढ़ी के 20-25 वर्षों का अन्तराल निकल जाता है और लगता है अरे यह क्या? ऐसा हो जायेगा यह तो कभी सोचा ही न था’’। परिवार की परिभाषा बदल रही है, सोच और दिशा बदल रही है। हर बच्चा, बड़ा, बूढ़ा जवान नितांत अकेला है कन्फ्यूज्ड है मन ही मन डरा हुआ है। समय भाग रहा है, मुठ्ठी के रेत की तरह फिसलती जा हरी है खुशियाँ। यही सब बेचैन कर देती है मुझे और आप ही उठ जाती है कलम। मेरी रचनाओं के विषय अलग-अलग है- परिवार मनोविज्ञान, शिक्षा, बच्चे किशोर बूढ़े रिटायर्ड, पति-पत्नि माता-पिता सभी के पक्षों को छुआ है मैने। हर की सोच और आवश्यताये बदलती रहती है। हर स्तर की हल्की-फुल्की रचनायें।
      भाषा के सम्बन्ध में कही सरल और कही साहित्यक मेरे विदेश में रहने वाले बच्चों के लिये हिन्दी के प्रति रूचि जगाना भी मेरा उद्देश्य है। कुछ अंग्रेजी के प्रचलित रोज दिन के जीवन में प्रयोग आने वाले शब्द भी है तो कही पर अच्छी साहित्यक शुद्ध शब्दों का जो हिन्दी भाषा को अच्छी तरह जानते समझते है और आनन्द ले सकते है।
     हाँ इतना जरूर कहुँगी अगर कभी थोड़ा सा भी समय हो, पाँच मिनट ही सही। कुछ पढ़े जरूर। कोई जरूरी नही कि यही साइट हो।
    और अपने बारे में मै स्वयं लिखूँ? यह उचित नहीं। वह तो लिखेगे आप मेरे पाठक, मेरे बन्धु मेरे अपने। एक बात मै जरूर कहना चाहुगी कि जो मुझसे मिलता है मेरे सम्पर्क में आता है कहीं न कही मैं उसके मन मस्तिष्क को छू जरूर लेती हूँ। विचारों के शान्त झील में एक छोटे से कंकड़ की तरह गिर कर हलचल मचा देती हूँ थोड़ी देर के लिए ही सही। भावों के समुद्र में देश काल से परे सार्वभौमिक सत्य से जुड़कर उसे अपना बहुत आत्मीय बन्धु बना लेने की सामथ्र्य शायद मेरे व्यक्त्वि की पहचान है। बस यही है मेरे बारे मे मैं सबकी और आप सब मेरे है।
     पढि़ये और लिखिये जरूर, निसंकोच इंगलिश या हिन्दी जिसमें स्वयं को सहज महसूस करें भावों और विचारों की अभिव्यक्ति हो हम सब को जोड़ती है।
     समय-समय पर जब भी मेरी नई रचना पढे़ अपने विचार अवश्य दें। आपकी प्रतिक्रियाओं का मुझे विशेष रूप से इन्तजार रहेगा।
     
                               








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