Sunday, December 8, 2013

MAIM JI


                                                                 मैम जी
      कक्षा अष्टम वर्ग के साठ बच्चो में से एक छात्र ने न जाने क्यों कब और कैसे अपने ओर मेरा ध्यान आकृष्ट कर लिया था बहुत सोचने पर भी मुझे कोई कारण समझ में न आता। सामान्य कद का गोरा रंग न मोटा न लतला परन्तु शैतानी से चमकती मटकती आँखें और होठों पर मन्द मोहक सी मुस्कारन कक्षा में प्रवेश करते ही मैम जी, मैम जी आज आपने जो निबन्ध लिखवाने को कहा था मैने लिखा है देखिये ना मैम जी। टेबल पर मेरे पहँचने से पहले ही वह वहाँ खड़ा रहता। हर वाक्य के आगे मैम जी, पीछे मैम जी। बड़ा अजीब सा अनोखा व्यवहार लगता मुझे मगर फिर मन को कही अच्छा जरूर लगता। हर समय सहायता को तत्पर। मेरे लिये सबसे लड़ने को तैयार। काम में चुस्त-दुरूस्त। कुल मिला कर मनमोहक व्यक्तित्व। प्रतिदिन कक्षा मुझे उसके उपस्थिति की आदत सी पड़ गयी थी। अनुशासन के लिये सबको समझाता और हर एक की छुपी-छुपी शैतानियों व हरकतों से मुझे अवगत कराता।
     मैम जी! अजय हिन्दी की कापी डेस्क पर रख कर नीचे गोद में केमिस्ट्री की किताब मैम जी देखिये-देखिये और मैं जोर से पुकार उठती अजय! और वह सकपका कर खड़ा हो जाता क्या कर रहे हों? नो नो मैम कुछ नही हिन्दी मुहावरे याद कर रहा हूँ । केमिस्ट्री कौन पढ़ रहा है? किताब लेकर आओ। और मैम जी को रिपार्ट करने वाला लड़का गंभीर मुद्रा में अपनी किताब में आँखे गड़ाये-------कोई पकड़ ही नही सकता कि यही है वह मैम जी कहने वाला --
      इधर हफ्ता दस दिन से वह क्यों नहीं आ रहा था? बार-बार उसकी छवि आँखों के सामने घूम जाती। बहुत दिनों के बाद पता चला वह मेधावी छात्र ‘राधव’ इलाहाबाद के अनाथाश्रम स्वराज भवन से आता था। अनाथ बच्चा! पढ़ने में अच्छा। किसी ने अडाप्ट कर लिया था। इतना बड़ा। उड़ती खबर मिली थी शहर के नामी वकील का दत्तक पुत्र पागल, भोला, अल्हड़ ‘राघव’ दो साल बाद इसी स्कूल के छात्रावास में नये रूप रंग में राघव को देख कर मैं आश्चर्य चकित रह गई।
      भोलेपन की जगह लेती थी परिपक्वता ने, सरलता बदल चुकी थी गम्भीरता में, चुलबुलापन परिपक्वता में। हल्की हल्की मूँछे, सुडौल होती आकृति गाल भर आये थे। पुष्ट और मांसलता की ओर बढ़ता शरीर, रंग और निखार आया था आत्मविश्वासी, आँखो डाल कर निर्भीक बाते करने का लहजा उसे कुछ विशिष्ट बना रहा था।
        दो साल के अन्तराल के बाद विद्यालय के छात्रावास में उसका आगमन। चर्चा का विषय बना ‘राधव’ कक्षा-10 के फाइनल इयर में अडमिशन लिया था उसने। कहाँ रहा इतने दिन।
         स्टाफ रूम के बाहर खड़ा मेरे बाहर आने का इन्तजार करता हुआ। अरे राधव? कहाँ रहे इतने दिन। कितना बदल गये हो? एक साथ ही इतने सारे मेरे सवालो से घिर कर वह चुपचाप मुझे देखता रहा बोला कुछ भी नहीं। चुप बस चुप। अरे कुछ तो बोलो? क्या बोलू? एक संक्षिप्त सा उत्तर! और झुक कर पैर छू लिये उसनेे।
      ऊपर उठाते हुये उसे हृदय से लगा लिया मैने। उसकी आँखों से आँसू गिर रहे थे फिर।जो वाणी न कह सकी  वह आसुओं ने कह दिया। सुख के या दुख के। सुख के ही होंगे शायद। निशब्द सिर झुकाये आँसू गिरते रहे और फिर अचानक ही घूम कर सीढि़यों की ओर मुड़ गया वह 
        अनमने मन से मै लौट आई स्टाफ रूम में। कौन सी घटनाये, स्मृतियाँ और
परिस्थितियाँ किसको कहाँ किस प्रकार ला पटकती है इसे न आज तक कोई जान पाया है और ना ही जान सकेगा। मैं व्यस्त हो गई अपने रोज की दिनचर्या में। अब मेरा कोई भी पीरियड राघव के क्लास में नहीं होता, ना ही मुलाकात होती न ही उसके विषय में कुछ खास पता चलता।
       कब दिन बीत, महीने बीते और फाइनल एग्जाम बोर्ड के आ गये। एक पत्र मेरे टेबल पर पड़ा था?
प्रिय मैम,        
                  आपने कहा था न मै कुछ कहूँ, बोलू, आज मेरे एग्जाम का आखिरी दिन।
मै रिलैक्स्ड महसूस कर रहा हूँ मुझे नया घर, मेरे पापा मेरी मम्मी, मुझे मिली। अनाथाश्रम की अधेरी गन्दी बदबूदार कोठरी से निकाल कर मैं आ गया श्री अरविन्द कुमार एडवोकेट के विशाल कोठीनुमा बंगले   में सब कुछ सपने सा लग रहा था। क्या ईश्वर मुझपर इतना मेहरबान होगा क्या मेरे जीवन में भी खुशियाँ आयेगी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। दो साल लग गये समझने और संभलने में। बड़े अच्छे लोग हैं एक बहन और एक भाई। माँ और पापा जिन्हें मैं अंकल और आन्टी कहता हूँ कुछ समय तो लगेगा न मैम जी। मै चाहता हूँ उन्होंने जो उपकार मुझ पर किया है मैं एक अच्छा आज्ञाकारी, और अच्छे नम्बर से पास होकर उनके प्रति अपने आभार को प्रकट करते हुये मम्मी पापा कहूँ। तो ज्यादा अच्छा नहीं रहेगा? मैम जी
मै क्यों आपके करीब अपने आप को महसूस करता हूँ। मेरे लिये प्रार्थना कीजिए, दुआ माँगिये। मैं अपने नये मम्मी पापा के लिये उनके आशा के अनुरूप बन सकूँ वे बहुत अच्छे है मेरे लिये क्या कुछ नहीं किया है? मेरा रोम-रोम ऋणी है मैम जी! मुझे आशीर्वाद दीजिए।
      मेरा मन भर आया। मेरे बच्चे! ईश्वर तुम्हारी सहायता करें। मन ही मन कह कर मै काॅपी करेेक्शन में लग गई।
   
  


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