स्वीकार
नदी का उफान ही था
झंझा भरा तूफान ही था
रूकने लगा थमने लगा
अब सहज स्वीकार्य है
प्रकृति का या दैव का
यह रूप शिरोधार है
सब सहज स्वीकार है
समय से बढ़ कर नही कुछ
तीव्र कितनी वेदना हो
घाव भरने में नही कुछ
गहन जितनी साधना हो
संघर्ष देेता गति समय को
तोड़ कर हर विघ्र बाधा
जोश भरता जीतने का
सब सहज स्वीकार है।
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