Sunday, September 22, 2013

soch


                                                                       सोच   
      पिता को नाराज कर रोहन अपने बच्चों और के साथ इस नये पाश  इलाके के बंगले में रहने चला आया सारे प्यार आदर त्याद के बन्धन तोड़ कर। पाँच वर्ष की आयु में माँ के गुजर जाने के बाद पापा का बस एक ही उद्देश्य था कि उसकी माँ के सपने को पूरा कर रोहन को बड़ा डाक्टर बनाये। उन्होंने दूसरी शादी नहीं की। हर क्षण पल माँ को भूले नही और रोहन को भी याद दिलाते रहे कि उसे डाक्टर ही बनना हे कोई कोर कसर नही छोड़ी। वही पुराना घर, गलियाँ आस-पास के वातावरण से बचाते छिपाते वे अपने लक्ष्य में सफल हुये। बड़े घर में ब्याह कर दुल्हन रोहन के लिे लाये बच्चे हुये बगिया खिल गई। और एक दिन रोहन ने कहा वह ‘‘रूपा’’ उसकी बीवी चाहती है कि घर बदल कर नये पाश कालोनी में रहना चाहिये। बच्चो की संगत सही नही है। गन्दी पुरानी गली, छोटे विचारों वालो की संगति!
       अचानक ही क्रोधित पिता बोले क्या? बाप दादा का घर छोड़कर दूसरे घर में तुम यही पढ़कर इतने ऊँचे ओहदे पर पहुँचे हो यही अब खराब और गन्दी जगह लगने लगी। नही यह नही हो सकता। तुम बीबी के गुलाम हो गये हो क्या। होश में बात करो। समझाने की बहुत कोशिश की रोहन ने। मगर पिता की एक ही रट थी। तुम्हारी माँ के सपने को मैने यही रह कर कितनी तकलीफे सह कर पूरा किया है और तुम------
    रोहन के मुँह से निकला पापा मेरी माँ भी तो आपकी पत्नी ही थी। आपने अपनी पत्नी के सपने को पूरा करने के लिये क्या नहीं सहा? मेरी पत्नी तो सिर्फ एक मकान बदलने की बात कर रही है क्योंकि बच्चो के लिये यहाँ का माहौल अब ठीक नहीं है।
      बड़े जब कोई काम स्वयं कर उसे सही सिद्ध करते है तो छोटों के वही करने पर उन्हे एतराज क्यों? यह मुझे आज तक समझ में नहीं आया है। जो रिश्ता बेटे की माँ के साथ पिता का था वही बेटे का अपनी बच्चों की माँ के साथ ही तो है।                                                  

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