कैम्पस-गासिप
कितना नीरस है एक स्कूल टीचर का कार्यक्रम। बरसों लगाता एक ही सा बोरिंग पाठ्यक्रम, करेक्शन । सुबह नौ बजे से दोपहर तक की घण्टियों में बँटी जिन्दगी। वही क्लास, वही बच्चों के साथ दिन की शुरूआत ऐसम्बली, प्रार्थना,न्यूज रीडिंग, और अन्त में जनगणमन। बच्चों की अटेंडेन्स कुछ डाँटडपट, उपदेश, अनुशासन की बाते और भविष्य सुधारने के एक लेक्चर के बाद पाठों का पढ़ाना शुरू।
मगर हाँ, शैक्षिक सत्र के शुरू होने के साथ साल में दो बार कुछ दिनों के लिये नई हलचल, नये बैच के स्टूडेन्ट्स, नई रूटीन, और फिर जनवरी फरवरी का महीना, साल का अन्त होते-होते कुछ फुरसत के पल।
फरवरी का महीना विद्यालय में-दशम व द्वदश वर्ग के छात्रों का फेयरवल, टेस्ट, प्रीटेस्ट की कापियों का करेक्शन रिजल्ट फिर एक ब्रेक बस एक दो दिन का, इन दिनों स्टाफ रूम का रंग ही बदला हुआ दिखाई देता, कापियों का ढ़ेर के पीछे छिपे टिचर्स के चेहरे अब बाल सूर्य की तरह दमकते चंचल चुहुल करते, चहकते एक दूसरे को छोड़ते रिलैक्स्ड दिखाई पड़ता चिर प्रतिक्षित फुरसत के कुछ पल छिन मस्ती से भरे।
हाँ तो अब बताओं। नये सेशन अप्रैल में क्या-क्या होने वाला है? इस फाइनल बैच में तो छुट्टी मिली। भज्जी क्या कहते हो?’’ क्या कहें? तुम्हें क्या यार! तुम तो मैनेजमेन्ट के तुरूप के पत्ते हो! ताश के जोकर! जहाँ चाहो जैसे चाहो फिट हो जाओगे बस-बस तुम्हारा फ्यूचर नेक्स्ट सेशन में पक्का, बिल्कुल पक्का, कौन सा सब्जेक्ट है जो तुम पढ़ा नहीं सकते? फिजिक्स, केमेस्ट्री, बायो, मैथ यहाँ तक कि इको और कामर्स पर भी तुम्हारी पूरी पकड़ है। जैक आॅफ आल ट्रेड का मुहावरा तुम्ही पर तो फिट बैठता है। मिस्टर बनर्जी ठहा कर हँस पड़े। मेज पर जोर से मुक्का है मारते हुये बोले-तो हो जाये पार्टी इसी बात पर।
और पप्पे जी। आपका बायो डिपार्टमेन्ट! तो कुछ गरदिश में दीख रहा है। बाय द वे कितने स्टूडेन्ट थे अबकी 12वीं में चार-- बस--- केवल चार। कोई बात नहीं इस साल से नया कम्पलसरी सब्जेक्ट जो आ गया है एनवायरमेन्टल इसलिये पूरा का पूरा क्लास जनरल पढ़ना पड़ेगा और या तो फिर क्लास 1 से 12 बायो आपके नाम हो जायेगा। आपकी नौकरी पक्की! ऐशकरोजी ऐश, पप्पे जी! मिस्टर खान ने अपनी केमेस्ट्री खत्म की गहरा सावला रंग अनएजूमिंग सी पर्सनेलिटी छोटा कद, दूबला पतला शरीर। है लेकिन कोई न कोई गजब का आकर्षण इनमें साहित्य और विज्ञान का सुन्दर और संतुलित काम्बीनेशन! बतो मेें कुछ हास्य और व्यंग का पुट वाक् चातुर्य और बहुमुखी रूचियाँ। किसी सब्जेक्ट पर भी बाते कर लीजिए। फुलकान्फीडेन्स चलते फिरते इनसाइक्लोपीडिया‘‘।छोटे बड़े आबाल वृद्ध सबकी सद्भावना प्राप्त और स्नेह दुलार से भरपूर शिष्ट पापाजी के नाम से लोकप्रिय किसी को चाकलेट टाफी देकर प्रसन्न करते, तो किसी को दोहे शायरी या कविताओं की पंक्तियों से रिझाते देखे जा सकते है व्यंग और चुटकुले तो उनकी पाकेट में ही रहते। ये है हमारे मिस्टर वर्मा।
छोटा कद गेहुआ रंग गोल चेहरा कमानीदार सुनहला चश्मा स्लिम-ट्रिम कद काठी छोटी पतली मँूछें। खली पीरियड में अपने स्वयं के रोलर से सिगरेट बनाकर पीते या कभी-कभी पर्सनेलिटी को गंभीर और गरिमामय बनाने के प्रयास में पाइप से धुआ उड़ाते दार्शनिक और स्टूडियस’’ होने का आभास देते लोगों में बाबू मोशाय के नाम से लोकप्रिय मिस्टर भट्टी की अपनी खासियत है। लड़को के बीच के छोटे -मोटे झगड़े निपटाते सुलह कराते समझाते देखे जा सकते है।
प्रसिद्ध माडल जान अब्राहम से साम्यता रखने वाले मिस्टर झा का पोनर इम्प्रेशन पतली लम्बी छः फीट की काया गौरवर्ण पतली म ूछे सुबदर श्वेत चमचमाती दन्त पंक्ति पतला लम्बा चेहरा तीखी सुतवानाक, बोलने में कुशल मन्दहास्य कुछ लजाया शरमाया आकर्षक व्यक्त्वि, किसी भी कार्यक्रम के कुशल संचालक (आयंकर) कम्प्यूटर जगत के जाने माने ज्ञाता। कुलमिला कर तीखे व्यक्तित्व वाले मिस्टर झा सर, चाल इतनी तेज की कि बगल से तेज हवा का झोका सर्र से निकल गया हो।
गोलमटोल गोलगप्पे से चेहरा, धनी मूँछें बालों का एक गुच्छा अलसाया सा चैड़ा उन्नत ललाट पर झूलता गुरूगंभीर आवाज, धीरे-धीरे सोच-सोच कर बोलने पर विशिष्ट लहजा, सधे कदमों से चलना उठना, बैठना और काम न होने पर हाथ पीछेे कमर पर बाँधे स्टाफ रूम मे ही चहलकदमी करते रहना मैथ्स के मिस्टर नागर के व्यक्तित्व का एक हिस्सा है। उई माँ तो पागल हो जाऊँगी के परेशान स्वर स्टाफ रूम में अक्सर ही गँूजते रहते। क्या लिखा है लगता है हिन्दी का लिटरेरी ट्रान्सलेशन आई विल ड्रिंक हिज ब्लड मै उसका खून पी जाऊँगा। शेक्सपीयर तो अपनी यह दुरदशा देख कर शायद किसी नदी में कूद कर आत्महत्या कर लेंगे। ‘‘ही वाज ब्वाइलिंग विथ ऐंगल’’वह गुस्से में उबल रहा था। ‘‘आई वान्ट टू टच योर लेग’’ ‘‘व्हाट अ हरिबुल लाइन?’’ मेरी तरफ देख कर हाथ पैर पटकती वह चिल्लाने लगती। मै स्टाफ रूम की खिड़की से कूद जाऊँगी क्या? किस बुरी घड़ी में मैने इंगलिश में एम0 ए0 कर ट्रेनिंग ली की मुझे ऐसे बच्चे पढ़ाने पड़ रहे है। कितनी भी मेहनत करा, समझाते-समझातेे गला सूख जाता है मगर फिर वही ढ़ाक के तीन पात। उनकी आँखों से आँसू टपकने वाले होते है। बेचारी मिस खन्ना।
कभी गम्भीर, कभी मन्द-मन्द मुस्कराते, और अपनी ही कही बात पर जोर से ठहाका लगाते। चाहे और किसी को हँसी आये या नहीं मगर खुद ही हँस कर दूसरो का ट्यूब लाइट बताने का लहजा थोड़ी देर के लिये सबको शरमिन्दा कर देता। बड़ी कक्षा के छात्राओं से बेहद दोस्ताना व्यवहार और लोकप्रियता-सस्ती चिप्पड़ लोकप्रियता के प्रतीक मिस्टर दूबे जिसे सब मिस्टर डूबे’’ के नाम से सम्बोधित करते। कक्षा में पढ़ाते-पढ़ाते कोई न कोई काण्ड कर ही देते और आग बबूला होकर क्लास से बाहर निकल आते। छोटे-मोटे गोरे इतने कि गुस्से में लाल आग का गोला ही लगते। स्टाफरूम में कापी किताब पटक कर नये जमाने के छात्रों के लिये अपशब्द कहते झनकते पटकते और फिर शान्त हो जाते। स्तब्ध शान्त अन्य शिक्षक अनकी ओर हतप्रभ देखते ही रह जाते मौन बिल्कुल मौन।
दुबली-पतली नाजुकता की परिभाषा रंग बिरंगी गुडि़या सी सजधज, गले की आवाासज को दबाकर बनावटी-सी शी्रल्ड आवाज, प्रत्येक को नाम से सम्बोधित कर गुड माॅर्निंग मिस्टर शर्मा या फिर कोई और नाम। पर होता है सबका व्यक्तिगत सम्बोधन प्रशांसा करने लायक कलात्मक शौक विशेषकर स्वयं को प्रस्तुतिकरण। भव्य सुन्दर गौरवर्ण किन्तु भावहीन चेहरा। सब कुछ यान्त्रिक संवेदनाशून्य व्यवहार। सबके प्रति कोई न कोई व्यंग भरा कमेन्ट। कभी-कभी स्टाफ में प्रवेश कर वातावरण को गंभीर बना जाती मिस रूबी। कोई व्यक्तित्व इतना बोझिल भी हो सकता है यह सोचने को विवश करता है।
अनुशासन की छड़ी तेजतर्रार, स्पष्टवादी छोटी-सी फिरकनी की तरह इधर-उधर दौड़ती, फुर्ती इतनी की फ्रन्टियर मेल का खिताब पा चुकी गंभीर तनाव ग्रस्त चेहरा। मुस्कान तो कभी भूले भटके ही इधर का रास्ता नापती है और खुदा न खास्ता भटक गई तो अन्दर का हृदस मोम की तरह कोमल हेल्पफुल । फिल्मों के मस्ती भरे रोमान्टिक गीतों को गुनगुनाता चहकता चेहरा देखा जा सकता है। किन्तु ये पल दुर्लभ ही होते है। मिसेज महाजन का जबाब नही।
लम्बा चैड़ा आकार, छः फीटी काया, तीखी धूप सा गोरारंग चैड़ा माथा लम्बी कमर तक झूलती केशराशि कुल मिला कर झाँसी की रानी खेल कूद में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली स्पोर्ट्स वुमेन का आपना ही स्थान है स्टाफ रूम में जिसके प्रवेश करते लगता है भूकम्प एक झटका और डोलने लगती है धरती। कुर्सी पर बैठे लोग उछलपड़ते है जगहें बदल जाती है हलच लमच जाती है। धराप्रवाह व्यंग, धक्का मुक्की छेड़ छाड़। खुशनुमा माहौल। सभी क्या लेडिज क्या जेन्ट्स सब मधुर रस में सराबोर हो जाते। मानों होली के रंगों की पिचकारी चलरही हो रंग अबीर गुलाल आस-पास छलक बरस रहे है। टिफिन को लेकर छीना झपटी, धूम-धूम कर हा किसी के टिफिन को सूघते खाते। बस एक ही लाइन याद आती है’’ होली खेले मिस राधा- होली खेले मिस राधा (स्टाफ रूम)
आनन्द मन की अनुभूति है वह बाहर से नही आती जब अन्दर बाहर का वातावरण सहज हो तो खुशियाँ छलक पड़ती हैं। संतोष और अपनेपन का अहसास ही इसका मूल कारण होता है। काम करने की जगह हो अपनेपन के साथ जोड़ कर कार्य की गुणवत्ता और करने के जोश को बदला जा सकता है। और इन्ही दिनों की मस्ती, पूरे साल रह-रह कर मन को चहका कर प्रेरित करती रहती है। काम में डूबा हर शिक्षक सोच-सोचकर मन ही मन मुस्करा उठता है और जुट जाता है कापी करेक्शन तथा नोट की तैयारी में। नये पाठों के लिये। कमर कस लेता है कि अबकी कुछ नया होकर रहेगा। आकाश में एक नया तारा चमकेगा। स्कूल हमेशा की तरह कोई नया कीर्तिमान स्थपित करेगा।
No comments:
Post a Comment