परिवर्तन सृष्टि का नियम है । चलते रहना जीवन और रुक जाना मृत्यु । समाज के विकास में भी यही नियम है मान्यताएं बदलती है , आव्यशकता अनुसार विचार भी बदलते हैं , सोच और दिशाएँ बदलती हैं । नहीं बदलतें हैं तो शाश्वत नैतिक मूल्य । नैतिक मूल्यों में और उनके व्यावहारिक प्रयोग में निरंतर गिरावट देखी जा रही है । माता , पित्ता, परिवार के सदस्य , विद्यालय , अध्यापक , शिक्षा शास्त्री , हैरान परेशान हैं । मौखिक रूप से हर व्यक्ति अपनेस्तर पर दया , प्रेम, परोपकार, आदर सम्मान सहयोग भाई चारा आदि के संस्कार को देने की कोशिश कर रहे है । लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं । जितना नैतिक शिक्षा पर बल दिया जा रहा है लोग सतर्कता बरत रहें हैं उतने ही भयानक और विपरीत प्रभाव हमें दिखाई पड़ रहे हैं ।
क्या है इसका कारण ? कहाँ हम चूक रहे हैं ? कौन है जिम्मेदार? कौन सी चीजें हमें पतन की और खींच रहीं हैं ? सभी अपने अपने दायित्वों को सही बता कर मीडिया को ही दोषी सिद्ध कर रहे है। क्या सारा दोष मीडिया का ही है? मीडिया भी तो व्ही दिखा रहा है जो पब्लिक देखना चाहती है । कारण मिले तो समाधान भी मिल सकता है ।
Monday, June 8, 2009
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