Friday, June 12, 2009

जीवन - संध्या में

स्नेह का ये स्रोत उमडा,
कब किधर से कुछ न जाना ।
कठिन जीवन सिक्त होगा
धार इसकी मत सुखाना
राह लम्बी, भार गुरुतर
झेलने कंटक पडेगें -,
फ़िर भ्रमर बंदी बनेगें ,
फ़िर पवन झोंके चलेगें ,

फ़िर खिलेगें फूल प्यारे ,
फ़िर सजेगें नील
नभ में चाँद तारे
,झर झर झरेगी चांदनी
,बस मगर इक हम न होंगें .
गर कहीं कुछ मन दुखा हो
गर कहीं कुछ टूटता हो ,
जब कभी मन डूबता हो ,
याद करना वे सुखद दिन ।
बीतते सुख से चलेगें ,
रस भरे हर पल लगेगें ।
बस मगर इक हम न होंगें ।
बस मगर इक हम न होंगें

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