मई का महीना ,चिलचिलाती धूप ,गंगा दशहरा के अवसर पर सन्यासियों का एक जत्त्था चला जा रहा था हरिद्वार की परम पावनी गंगा की ओर ,.रस्ते में कुछ समय के विश्राम के लिए उचित स्थान खोजते हुए उन्हें दिखाई पडा एक सुंदर सा घर , उपवन से घिरा , साफ़ , सुथरा । गृहस्थ जीवन से संतुष्ट शायद किसी दंपत्ति का स्वर्ग । मुखिया सन्यासी ने दरवाजा खटखटाया , गृहस्वामिनी ने द्वार खोला तो पूछा ,"क्या कुछ समय के लिए हम विश्राम कर सकते हैं ? एक घंटे बाद हम चले जायेगें ।
" आइये बैठिये,,इस बरगद की छाया में बने चबूतरे पर आपके लिए व्यवस्था किए देतें हैं । " जक्पन की व्यवस्था बड़े ही आदर सत्कार से किया । संतुष्ट सन्यासी ने सारा घर द्वार , आँगन , बाडी घूम कर देखा। गृहस्वामिनी और परिवार के सहयोग से सब कुछ अति उत्तम था । उसी समय एक भूरी बिल्ली उधर से गुज़री ।
सन्यासी ने कहा "अहा, यह भूरी बिल्ली ,--इस घर में तो लक्ष्मी का वास है । नित नया विकास होगा । धन , संपत्ति बढ़ती रहेगी । ऐसा मैं देख पा रहाहूँ ईश्वर आपकी सब कामनाओं को पूरा करेगा " प्रसन्न दंपत्ति ने सर झुका कर चरण स्पर्ष किए और उनके आर्शीवाद को सर आंखों पर स्वीकार किया । "
परिवार जब भी मिल बैठता - भूरी बिल्ली की प्रशंशा करता । और उसे भाग्यशाली मानता , इस तरह दिन बीतते गए ।। कुछ वर्षों के अन्तराल में उस सुंदर उपवन ने जंगल का रूप धारण कर लिया । परिवार अपने नित प्रति के कर्मों और परिश्रम से विमुख होने लगा .जब " भाग्य में है तो मिलेगा ही " धीरे धीरे आलस्य और अकर्मण्यता अपने पैर पसारने लगी । आगे पीछे घर के पेड़ पौधे घंस फूस उग आई । आगे बेर के पेड़ , और पीछे रेड के वृक्ष सर उठा कर खडे हो गए। किसी ने ध्यान ही न दिया । रोगों ने अपने पैर जमा लिए । घर पर मानो नज़र ही लग गई हो ।
दंपत्ति उस सन्यासी के आने की आस लगाए राह देखते और कहते - भूरी बिल्ली तो हमारे घर में सुख संपत्ति का प्रतीक है । मगर ये क्या हो रहा है ? वे विस्मित थे ।
कुछ वर्षों के बाद व्ही सन्यासी मंडली उधर से गुज़र रही थी । सहसा , यंत्रवत सन्यासी के पैर उस घर के सामने ठहर गए । उस घर की दुर्दशा देख कर उन्हें विश्वास ही न हुआ की यह व्ही जगह है जिसे कुछ वर्ष पूर्व उन्होनें उपवन के रूप में देखा था । उन्हें जिज्ञासा हुई , वह रुके , और दरवाजा खटखटाया ।
ग्रह्स्वामिनी स्वामी जी को देख कर प्रसन्न हुई । " अहो भाग्य , स्वामी जी आ गए '
आदर सत्कार किया और उनके विश्राम के उपरांत पूछ ही दिया " आपने कहा था यह भूरी बिल्ली सुख संपत्ति सब लाएगी ।। " यहाँ लक्ष्मी का वास है। तब से हम लोग इसकी सेवा ही कर रहे हैं मगर ---
सन्यासी बोले " बेटा, मुझे लगता है तुम सदाब अपने अपने कर्तव्यों से विमुख हो गए
"आगे बेर , पीछे रेड का पेड़ , एक भूरा बिलार क्या करेगा भाई" कर्म क्यों छोड़ा ? घर की देख रेख साफ़ सफाई उद्योग परिश्रम प्रयत्न ये हमारे कर्तव्य हैं । इनके साथ ही भाग्य भी कम करता है ।। घर के सामने इतना बड़ा बेर का पेड़ हो गया और पीछे रेड का वृक्ष ? यह तो कम न करने और आलस्य का प्रतीक है । एक अकेली भूरी बिल्ली { भाग्य} क्या करेगी भाई ?
दंपत्ति का विस्मित होना अतार्किक था । भाग्य के भरोसे सब कुछ नहीं छोड़ा जा सकता । हम अपने कर्तव्य ,लगन और परिश्रम से विमुख नहीं हो सकते । शायद दंपत्ति सन्यासी की बातों को नहीं समझ सका .----------- मगर----
Wednesday, June 24, 2009
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